क्या उत्तराखंड में विधायक भी हैं सरप्लस
देहरादून। वर्क लोड के आधार पर सरकार शिक्षक/कर्मचारियों को सरप्लस घोषित करती है। क्या ऐसा विधायकों के मामले में भी संभव है। लगता तो है राज्य में सरप्लस विधायक हैं।
इन दिनों स्कूली शिक्षा विभाग सरप्लस शिक्षकों को एडजस्ट करने में जुटा हुआ है। चार जिलों के एलटी शिक्षकों को एडजस्ट कर भी दिया गया है। राजकीय प्राथमिक विद्यालयों में एक-दो छात्र कम-ज्यादा होने पर वर्क लोड की सुई दायें-बायें हो जाती है।
इससे शिक्षक सरप्लस हो जाते हैं। इस पर विभाग की पैनी नजर होती है। तुरंत कागज पत्र तैयार हो जाते हैं। अधिकारी स्कूलों के दौरे के समय शिक्षकों को सरप्लस होने का संकेत जरूर देते हैं। ऐसे में स्कूल में तैनात शिक्षकों हैप्पीनेस इंडेक्स ग्रीन से लाल हो जाता है।
अब ये रेगुलर प्रैक्टिस सी हो गई है। स्कूलों में छात्र संख्या घटने का सीधा-सीधा अर्थ है कि क्षेत्र की आबादी कम हो रही है। यानि क्षेत्र से पलायन हो रहा है। गांव के गांव खाली हो रहे हैं। स्कूल गांव में बने हुए हैं।
साफ है कि इससे विधानसभा क्षेत्र में वोटर भी कम हो रहे हैं। यानि माननीय का वर्क लोड कम हो रहा है। इस वर्क लोड का कहीं मूल्यांकन नहीं हो रहा है। यानि माननीय सरप्लस हो ही नहीं सकते। यूपी में रहते हुए पूरे उत्तराखंड से 21 विधायक होते थे। अब 70 विधायक हैं। सरप्लस का इससे बड़ा उदाहरण शायद ही कोई हो।