तीर्थनगरी ऋषिकेश को बचाना है तो मुक्त करें प्राकृतिक निकासियों को
तीर्थ चेतना न्यूज
ऋषिकेश। सुंदर और आत्यात्मिक शहर तीर्थनगरी ऋषिकेश ( देहरादून, टिहरी और पौड़ी जिले) को बचाना है तो लोगों के लोभ/लालच के नीचे दबी प्राकृतिक निकासियों को मुक्त करना होगा।
प्रकृति तीर्थनगरी ऋषिकेश को पिछले एक दशक से लगातार चेतावनी दे रही है। खतरे का अलार्म हर बरसात में बजता है। संभवतः इस बार प्रकृति ने खतरे की भोंपू तेजी से बजा दिया है। सावधान हो जाना चाहिए।
दरअसल, तीर्थनगरी ऋषिकेश का आबादी क्षेत्र निकासी विहीन हो गया है। यहां अधिकांश प्राकृतिक निकासियां लोगों के लोभ/लालच की भेंट चढ़ चुकी है। आधुनिक इंजीनियर और आधुनिक सिस्टम ने जो निकासियों बनाई हैं वो अधिकांश में इंजीनियरिंग कम और लीपापोती अधिक हैं।
डिग्रीधारी इंजीनियरों और लोकतांत्रिक व्यवस्था के म्यूचल अंडरस्टैंडिंग से बनी निकासियां दो घंटे की बारिश में ही सिसकने लगती हैं। लोगों ने इसे नियति भी मान लिया है। लोगों के ऐसा मान लेने से खतरा और बढ़ गया है।
चंद्रभागा में तीर्थनगरी ऋषिकेश के देहरादून और टिहरी वाले हिस्से के बरबादी की पटकथा लिखी जा चुकी है। चंद्रभागा नदी का बेड आबादी तक पहुंच गया है। इस पर विधानसभा में भी सवाल हो चुका है। मगर, ऋषिकेश देहरादून से बहुत दूर है। लिहाजा सरकार की नजरों में ये खतरा नहीं दिख पा रहा है।
ऋषिकेश नगर निगम और ग्रामीण क्षेत्रों में छोटी-बड़ी कालोनियों की निकासी का भी यही हाल है। प्राकृतिक निकासियां लोगों ने बेच खाई हैं। यही हाल तीर्थनगरी के पौडी जिले के स्वर्गाश्रम-लक्ष्मणझूला और टिहरी जिले के मुनिकीरेती और तपोवन का भी है।
कुल मिलाकर तीर्थनगरी ऋषिकेश को बचाने के लिए प्राकृतिक निकासियों को मुक्त करने के लिए बड़े अभियान की जरूरत है। ये बात अलग है कि प्रशासनिक अधिकारी ऐसे मामलों में मुंह तक नहीं खोलते। अतिक्रमण/कब्जों को संरक्षण देना तो नेताओं की मजबूरी बन गया है। वोट का मामला है। लोग तय कर लें तीर्थनगरी ऋषिकेश चाहिए या…….