शिक्षकों के लिए प्रेशर चैंबर बन रहे हैं स्कूल/कॉलेज

पढ़ाने से इत्तर कार्यों का लगातार बढ़ रहा बोझ
तीर्थ चेतना न्यूज
देहरादून। स्कूल/कॉलेज शिक्षकों के लिए प्रेशर चैंबर बन रहे हैं। ऐसा पढ़ाने से इत्तर कार्यों की अधिकता की वजह से हो रहा है। शिक्षक को पढ़ाने का कम समय मिल रहा है और प्रिंसिपल स्कूल/कॉलेजों की बेहतरी से अधिक कागजों में उलझे हैं। फरमानों में लौटती डाक का प्रेशर इतना पूछो नहीं। इससे कहीं न कहीं शिक्षा की गुणवत्ता प्रभावित हो रही है।
आज से दो दशक पहले की स्कूल/कॉलेज की शिक्षा को याद कीजिए। तब गुरू वास्तव में गोविंद होता था। गुरू की शुभकामनाएं और आशीर्वाद वास्तव में बड़े कारसाज होते थे। स्कूल में आठवीं तक नो डिटेंशन हो गया। अच्छे को पुरस्कार और बुरे को दंड देने का शिक्षक का अधिकार सरकार ने इस तर से लील लिए।
इसके स्थान पर स्कूल में शिक्षण से इत्तर कार्यों बढ़ा दिए। इन कार्यों को करते-करते स्कूली शिक्षक मल्टी टास्कर हो गए। वो ऑडिट को मैनेज करना समझ गए और स्कूल में रंगाई-पुताई का अनुपात । नून-तेल की धार उनके समझ में आ गई। कम पैंसे में कपड़े लत्ते खरीदने और जीएसटी का बिल प्राप्त करने की तकनीकी जानकारी उन्हें हो गई।
इन कामों को करने में उन्हें तमाम प्रेशर झेलने होते हैं। यही हाल माध्यमिक और डिग्री कॉलेजों का भी हो गया है। यहां शिक्षकों का पढ़ाने से अधिक समय इत्तर कार्यों में लग रहा है। नदी साफ रहे, तंबाकू का सेवन न हो इसके लिए नारे लगवाने का जिम्मा भी शिक्षक का। ये काम उसने किए हैं ये साबित करने की जिम्मेदारी भी उसी पर है।
ऐसे कार्यों में कहीं चूक न हो इसके लिए प्रिंसिपलों भी प्रेशर में होते हैं। ये काम कॉलेजोंकी प्राथमिकता बन गए हैं। इसकी फोटू समय से उन आंखों तक पहुंच जाए जो एसी में बैठे रहते हैं।मीडिया में भी आ जाए तो नौकरी पक्की और शिकायती फोन से मुक्ति।
स्कूल/कॉलेजों में लगातार बढ़ रहे इत्तर कार्यों के बोझ से अब शिक्षक/ प्रिंसिपल प्रेशन महसूस करने लगे हैं। ये कहना अतिश्योक्ति नहीं होगी कि स्कूल/कॉलेज शिक्षकों के लिए प्रेशर चैंबर बन रहे हैं। 60 साल के बाद ये प्रेशर तो और मुश्किल खड़ी कर रहा है।
इस तरह से शिक्षक/प्रिंसिपलों पर इत्तर कार्यों के प्रेशर से कहीं न कहीं शिक्षा की गुणवत्ता प्रभावित हो रही है। साथ ही स्कूल/कॉलेजों को आनंदालय बनाने के प्रयास झूठे साबित हो रहे हैं।
इसका लाभ बाजार उठा रहा है। समाज स्कूल/कॉलेजों के अंदर चल रहे पढ़ाई से इत्तर कार्यों को सही से समझ नहीं पा रहा है। उलहाने भी शिक्षकों के ही खाते में ही जा रहे हैं।