कपाट खुलने/बंद होने की प्रक्रिया से मुक्त हो चारधाम यात्रा
पर्यटन और तीर्थाटन के घालमेल से कराहने लगी देवभूमि
तीर्थ चेतना न्यूज
ऋषिकेश। अब समय आ गया है कि उत्तराखंड में चारधाम यात्रा को 12 मासी करने पर विचार हो। देवभूमि उत्तराखंड को पर्यटन और तीर्थाटन के घालमेल से बचाने के लिए ये करना अब जरूरी हो गया है।
चारधाम यात्रा को लेकर सरकार की व्यवस्थाएं यात्रा शुरू होने के 15 दिनों में ही चरमराने लगती हैं। इससे बचने के लिए सरकार के पास रेडडीमेड बहाने होते हैं। समर्थक धामों में भारी भीड़ और जाम को उपलब्धि के तौर पर भी गिना देते हैं। यात्रा के दौरान ये कथित उपलब्धियां आम लोगों पर भारी पड़ती हैं।
दरअसल, देवभूमि उत्तराखंड में पर्यटन और तीर्थाटन का घालमेल हो गया है। इस घालमेल में तीर्थाटन का कष्ट और पर्यटन की सुख सुविधाएं मिल गई हैं। सुविधाएं बाजार जनित हैं इसलिए यात्रा के प्राकृतिक कष्ट भी समाप्त हो गए। हां, व्यवस्थागत कष्ट कई गुना बढ़ गए हैं।
व्यवस्थागत कष्टों से ही राज्य के तीर्थाटन और पर्यटन दोनों को नुकसान पहुंच रहा है। बहरहाल, तीर्थाटन और पर्यटन का घालमेल राजनीतिक व्यवस्था को खूब फब रहा है। सिस्टम के पास यात्रियों को पर्यटक बताने और पर्यटकों को यात्रियों के रूप में गिनने की स्वतंत्रता होती है। ये घालमेल राज्य के मूल स्वरूप को नुकसान पहुंचा रहा है। इसके संकेत भी मिलने लगे हैं। धामों के आध्यात्म और भव्यता भीड़ की भेंट चढ़ रहे हैं।
चारधाम यात्रा के दौरान एक तरह से अफरतरफी का माहौल होता है। इससे आर्थिकी को भी उतना लाभ नहीं हो रहा है जितना होना चाहिए। ऐसे में जरूरी है कि यात्रा की परंपरागत व्यवस्थाओं को जानकारों के साथ बैठकर चर्चा कर बदला जाए।
इसमें चारधाम यात्रा को कपाट खुलने और बंद होने की प्रक्रिया से मुक्त किया जाए। धामों 12 माह खुले रहेंगे तो अप्रैल, मई और जून की भीड़ से निजात मिलेगी। तीर्थाटन और पर्यटक के बीच का अंतर बना रहेगा।
राज्य का छह माह के तीर्थाटन और पर्यटन से भी उभर जाएगा। साथ ही चारधाम यात्रा के लिए बनने वाली तदर्थ व्यवस्थाएं स्थायी होंगी। इससे धार्मिक यात्रा अक्षुण्य तो रहेगी ही साथ ही पर्यटन की नई संभावनाएं भी उभरंेगी।
ऐसा हुआ तो उत्तराखंड के चार धामों की विशिष्टता बनी रहेगी। धामों से जुड़ी महात्म और बेहतर तरीके से प्रस्तुत किए जा सकेंगे। चारधाम यात्रा के जानकारों के साथ मिलकर व्यवस्था को इस पर गौर करना चाहिए।