तीर्थनगरी ऋषिकेश की भव्यता आध्यात्मिकता और नैसर्गिकता के लिए ग्रहण बना अतिक्रमण
प्राकृतिक आपदा के लिए चारों ओर से न्योता
तीर्थ चेतना न्यूज
ऋषिकेश। तीर्थनगरी ऋषिकेश की भव्यता, आध्यात्मिकता और नैसर्गिकता पर अतिक्रमण ग्रहण साबित हो रहा है। अतिक्रमण/कब्जे तीर्थनगरी के चारों ओर से प्राकृतिक आपदा को न्योता दे रहे हैं।
तीन जिलांें पौड़ी, टिहरी और देहरादून की सीमा पर स्थित तीर्थनगरी ऋषिकेश अतिक्रमण/कब्जों से कराह रही है। तीनों जिलों का प्रशासन ने सरकारी जमीनों (ं गंगा के तट, बरसाती नदियों के तटों, नाले-खालों के किनारे, हाइवे और अन्य सड़कों के किनारे) पर हुए अतिक्रमण को हटाने की जरूरत तक महसूस नहीं की।
परिणाम अब तीर्थनगरी ऋषिकेश में अतिक्रमण और कब्जे परंपरा बन गई है। जो ऐसा नहीं कर रहे वो स्वयं को ठगा सा महसूस करते हैं। जो ऐसा कर रहे हैं उन्हें एक तरह से व्यवस्था से प्रोत्साहन मिल रहा है। एक मामले में सिस्टम ने अतिक्रमण के खिलाफ एक्शन लिया तो सफेदपोश व्याकुल हो गए। अतिक्रमणकारियों के पक्ष में बड़ा दिखने की होड़ मच गई।
इसी होड का परिणाम है कि तीर्थनगरी ऋषिकेश की भव्यता, आध्यात्मिकता और नैसर्गिकता पर अतिक्रमण ग्रहण साबित हो रहा है। अतिक्रमण/कब्जे तीर्थनगरी के चारों ओर से प्राकृतिक आपदा को न्योता दे रहे हैं। अतिक्रमण/कब्जे का ये लोभ लालच कभी भी तीर्थनगरी ऋषिकेश के अस्तित्व पर बड़ा संकट बन सकता है। ऋषिकेश के चारों ओर से इसकी पटकथा लिखी जाने लगी है।
यकीन न हो तो गंगा के बीचों बीच बन रहे टापू, चंद्रभागा का बेड का आबादी तक पहुंचाना और प्राकृतिक जल निकासियों का समाप्त होना देखा जा सकता है।
इन दिनों टिहरी जिले के मुनिकीरेती और पौड़ी जिले के स्वर्गाश्रम क्षेत्र में भारी बारिश में हो रहे जल भराव से प्रशासन काफी कुछ समझ भी गया होगा। मगर, अधिकारी इसके लिए अतिक्रमण/कब्जों को जिम्मेदार बताने से बच रहे हैं। बारिश समाप्त होने के बाद अतिक्रमण फिर से शुरू हो जाएगा और बरसात में फिर से आम लोगों के लिए परेशानी खड़ी करेगा।