मुकुंद आश्रम और संस्कृत साहित्य को मिले संरक्षण

मुकुंद आश्रम और संस्कृत साहित्य को मिले संरक्षण
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प्रशांत मैठाणी।

संस्कृत और ज्योतिष के प्रकांड विद्वान स्व. मुकुंद राम बड़थ्वाल दैवेज्ञ की संस्कृत और ज्योतिष विज्ञान को लेकर प्रतिबद्धता के प्रतीक मुकुंद आश्रम को संरक्षण की जरूरत है। ताकि यहां मौजूद महत्वपूर्ण संस्कृत साहित्य को सुरक्षित किया जा सके।
स्व. मुकुंद राम बड़थ्वाल दैवेज्ञ को इनसाइक्लोपीडिया ऑफ संस्कृत कहा जाना सर्वाेत्तम होगा। क्योंकि उन्होंने संस्कृत भाषा के लिए जो कुछ किया, संस्कृत में लिखे दुर्लभ पांडुलिपियां और देववाणी संस्कृत पर उनकी पकड़ आदि को देखकर उन्हें इस उपाधि से नवाजा जाना चाहिए।

मैं पिछले वर्ष प्राचीन चट्टी ग्राम कांडी के शिव महापुराण यज्ञ में शामिल होने गया था, तब मुझे अपने गांव के प्रदीप दादा जी के साथ दैवेज्ञ जी के मुकुंद आश्रम जाने का सौभाग्य मिला, मुझे तब उनके विषय में बहुत ज्यादा जानकारी नहीं थी. किंतु जब मैं वहां पहुंचा तो उनके पुत्र रमेश बड़थ्वाल जो उस समय वहां उपस्थित थे उनके द्वारा मुझे काफी कुछ बातें बताई गई।

मैंने स्वयं मुकुंद आश्रम में प्रवेश कर उनके तब के लिखे ग्रंथों को बहुत ही संक्षिप्त में देखा, इन्हें समझना कोई सरल बात नहीं है, संस्कृत में लिखे ये दुर्लभ ग्रंथ वेद, पुराण जैसे पवित्र ग्रंथ है। पुनः मैंने श्री बड़थ्वाल जी समीप बैठकर उस घर/आश्रम के विषय में और अधिक जानने का प्रयास किया, उन्होंने कहा उनके पिता द्वारा अनेक ग्रंथ लिखे गए, जिनमें कुछ का प्रकाशन हो चुका है और कुछ का नहीं हो पाया है।

उन्होंने कहा की उनके विषय में जितना कहा जाय उतना कम है, चुंकि हम बहुत ही छोटे वक्त के लिए वहां गए इसलिए ज्यादा बातें नहीं हुई, साथ ही उनके द्वारा बताया गया कि उनके पिता दैवेज्ञ जी और मेरे दादाजी स्वर्गीय वैधराज जगतराम मैठाणी जी के बहुत ही मित्रवर संबंध थे. उनकी एक किताब के पृष्ठ/आभार प्रदर्शनम जिसका प्रकाशन आषाढ़ शुक्ल 15 शुक्रवार संवत 2024 यानी वर्ष 1967-68 में वैद्य जगत राम मैठाणी जी का नाम भी उल्लेखित है उन्होंने बताया कि जब आपके दादा वैद्य जी अपने गांव बलोगी एवं सिलोगी व बद्रीनाथ में औषधीशाला खोलकर समाज सेवा कर रहे थे तब उनके पिता समाज में ज्योतिष एवं संस्कृत शिक्षा के लिए अपने आपको समाज को समर्पित कर चुके थे।

दोनों में यही समानता थी कि दोनों व्यक्ति निस्वार्थ भाव से समाज सेवा करते थे। साथ उन्होंने कहा की आपके परिवार द्वारा वैधराज जगतराम मैठाणी जी के उल्लेखनीय कार्यों और उनकी स्मृतियों को सही से नहीं संभाला गया, तब मैं निशब्द हो गया था, क्योंकि उन्होंने अकाट्य सत्य कहा। आगे बड़थ्वाल जी बताते हैं अक्सर जब आपके दादा जी इस रास्ते होते हुए बद्रीनाथ या पौड़ी जाते थे तो वे इस घर में अवश्य आते थे। मै वह यादें लेकर वापस आया, उसके बाद तब से लिखने का उन पर मन बना रहा था किंतु दैवेज्ञ जी द्वारा शायद मुझे आज ही अनुमति दी गई।

मैं दैवेज्ञ जी को या उनके व्यक्तित्व के विषय में लिखने का अपना सौभाग्य समझता हूं उन पर लिखते हुए मैं स्वयं डर रहा हूं कि कहीं कोई मुझसे गलती ना हो जाए या कहीं कोई मेरा शब्द उस महान और विराट व्यक्तित्व के लिए छोटा न पड़ जाए या कोई शब्द अर्थ का अनर्थ ना कर दे, क्योंकि दैवेज्ञ जी उस दौर में शिक्षा का प्रचार प्रसार कर चुके हैं जब शिक्षा के प्रचार प्रसार के लिए केवल ज्ञान ही माध्यम था अन्य कोई प्रदर्शनी या सोशल मीडिया माध्यम नहीं थे, उन्होंने संस्कृत साहित्य, ज्योतिष, आयुर्वेद आदि पर ऐसे दुर्लभ ग्रंथ और पांडुलिपियों की रचना की है जो हजारों साल तक मानव जाति के लिए कल्याण का कार्य करेगी. दैवेज्ञ जी के विषय में यदि लिखना शुरू किया जाए तो बहुत लिखा जा सकता है।

उनके द्वारा लिखे गए दुर्लभ ग्रंथ और उनके हजारों छात्र आज संस्कृत का पूरे भारतवर्ष में प्रचार प्रसार कर रहे हैं और बड़ी बात यह भी है कि इतने महान व्यक्तित्व हमारे क्षेत्र से रहे हैं. उनके विषय में नई पीढ़ी अभी बिल्कुल अनभिज्ञ है. कलम के धनी विराट व्यक्तित्व संस्कृत के प्रकांड विद्वान दैवेज्ञ जी का 30 सितंबर 1979 को अपने निवास स्थान मुकुंद आश्रम में स्वर्गवास हो गया था और गंगा नदी के तट पर इन महान सरस्वती पुत्र को नम आंखों से विधाई दी गई . आना जाना तो मानव का लगा रहता है, जिसका जन्म हो गया उसकी मृत्यु होना भी निश्चित है, किंतु “दैवेज्ञ”जी जैसी महान आत्मा सदैव हमारे बीच अमर रहेगी, उनके महान साहित्य के रूप में हमारा मार्गदर्शन करती रहेगी।

देववाणी संस्कृत के लिए “दैवेज्ञ जी द्वारा किया गया कठिन साधना और त्याग के लिए उनका पुण्य स्मरण चिर काल तक होता रहेगा। सदेव समाज के लिए समर्पित ऐसे महान व्यक्तित्व सदा के लिए हमसे अस्त हो गए, हमारा कर्तव्य है कि उनके द्वारा दी गई विरासत को हम सब संजोकर रखें और उसे नई पीढ़ी या भावी पीढ़ी तक पहुंचाएं।

.दैवज्ञ जी के विषय में जब मैंने अपने पिता जी से पूछा तो पिताजी बोले दैवेज्ञ जी संस्कृत और ज्योतिष के महान प्रहरी रहे हैं, उन्होंने ज्योतिष के लिए बहुत किया, पिताजी कहते हैं की दैवेज्ञ जी अपने जीवन के अंतिम दिनों तक लेखन कार्य लगे रहे, उनकी लिखीं कुछ ग्रंथ हमारे दादा जी के पास भी थी।

दैवेज्ञ जी के विषय में जब मैंने कांडी गांव के उदय सिंह नेगी  से पूछा तो वे बोले दैवज्ञ जी प्रकांड विद्वान और महान भविष्यवक्ता थे। कहा मेरी जन्मपत्री भी दैवज्ञजी ने बनाई है, दैवज्ञ जी बहुत ही अनुशासित व्यक्ति थे। वे सदैव पठन पाठन के लिए प्रेरित करते थे। नेगी ने आगे कहते हैं कि उस दौरान दैवेज्ञ जी का बहुत पत्राचार होता था, उनके परिवार से मेरे पारिवारिक संबंध रहे हैं।
ै दैवज्ञ जी ने संस्कृत और ज्योतिष शिक्षा के लिए जो किया, उनकी कठिन साधना अनुरूप वे बहुत बड़े सम्मान के हकदार हैं। इसे विडंबना ही कहेंगे कि कही दशक पूर्व किसी एक समाचार पत्र में नई दिल्ली से मुकुंद जी के प्रकाशित और अप्रकाशित ग्रंथों की विषय में खबरें साझा की गई थी लेकिन उनके गृह क्षेत्र के लोग ये सब जानते ही नहीं।

दैवेज्ञ जी को आधुनिक ज्योतिष शास्त्र का मार्तण्ड से संबोधित किया जाना चाहिए। दैवेज्ञ जी केवल एक पौड़ी गढ़वाल के एक गांव मात्र तक के नहीं हैं बल्कि वे पूरे गढ़वाल उत्तराखंड, देश और संस्कृत के महानतम विभूतियों में से एक हैं हम उन्हें संस्कृत के महान प्रहरी और धरोवर कहें तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी. श्रद्धेय दैवेज्ञ जी को अगर एक सिद्ध पुरुष या सिद्ध महात्मा कहें तो यह भी कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी , क्योंकि उनके द्वारा संस्कृत भाषा के अंतर्गत एक एक शब्द किसी सिद्ध या देववाणी से कम नहीं था. श्रद्धेय दैवेज्ञ जी के गांव ग्राम खंड हैं और वह गांव यमकेश्वर विधानसभा के द्वारीखाल ब्लॉक के अंतर्गत आता है, उसी ग्राम से यमकेश्वर विधानसभा की प्रथम विधायक श्रीमती विजया बड़थ्वाल जी चुनकर आई।

श्रीमती बड़थ्वाल जी लगातार तीन बार इस विधानसभा चुनाव जीतकर राज्य में कैबिनेट मंत्री और विधान सभा उपाध्यक्ष बनें। यहां गौर करने योग्य यह भी है कि उत्तराखंड सरकार द्वारा वर्ष 2010 में संस्कृत को अपनी द्वितीय राजकीय भाषा घोषित किया गया है, और जब कहीं या कभी संस्कृत की बात होती या होगी तब दैवेज्ञ जी का नाम सर्वप्रथम और बहुत सम्मान से लिया जाएगा, यदि सरकारों में इच्छाशक्ति होती तो दैवेज्ञ जी की एक प्रतिमा जरूर संस्कृत निदेशालय या संस्कृत विश्वविद्यालय में कबकी बन चुकी होती।

ऐसे महान आत्मा के दुर्लभ लेखन और कठिन साधना को जिस तरह से नजर अंदाज किया गया वह अत्यंत ही दुखद और सोचनीय है। मेरा इस लेख को लिखने का आशय यही है कि श्रद्धेय दैवेज्ञ जी के विषय में नई पीढ़ी तक उनके दुर्लभ लेखन और उनकी कठिन साधना से अवगत होएं, मैं इस लेख को भारत सरकार और राज्य सरकार के शिक्षा मंत्रालय को भेजूंगा। दैवेज्ञ जी संस्कृत रत्न है उन्हे और उनके द्वारा संस्कृत भाषा और ज्योतिष के लिए किए गए त्याग और कठिन साधना का प्रतिफल उनके दिवंगत हों के 44 साल बाद भी नहीं मिल पाया है।

उनके नाम से संस्कृत का सबसे बड़ा सम्मान दिया जाना चाहिए था और दैवेज्ञ जी के साहित्य साधना लिए उन्हें सर्वाेच्च नागरिक सम्मान दिया जाना चाहिए था। इस लेख को लिखते हुए मुझसे कोई गलती हो गई हो तो, मैं क्षमा प्रार्थी हूं. उन जैसे महान व्यक्तित्व के विषय में सुनना, उनके विषय में कहना, या लिखना यह अपने आप में बहुत बड़ी बात है उनके अनंत ज्ञान कि को नापना या उस सरस्वती पुत्र पर दो शब्द कहना भी अपने आप में बहुत बड़ी और गर्व की बात है. मैं खुद को सौभाग्यशाली समझता हूं कि श्रद्धेय दैवेज्ञ जी ने मुझे उनके विषय में लिखने की प्रेरणा दी है।

मैं आज की युवा पीढ़ी से कहना चाहूंगा कि वह अपने क्षेत्र के जो महानतम विराट व्यक्तित्व वाले पुरुष/महिला रहे हैं उनके विषय में अवश्य जाने, अधिक से अधिक लोगों तक पहुंचाएं. हम लोगों के पास यह समृद्ध विरासत है जिसे हमने ही संजो कर रखना है. उतराखंड के इतिहास, भूगोल, विविधता, व्यक्तित्व, साहित्य, संस्कृति बोली , भाषा पर कार्य कर रहे सम्मानित स्वतंत्र पत्रकार, स्तंभकार, बंधुओं से आग्रह रहेगा की दैवेज्ञ जी के मुकुंद आश्रम में जाकर एक बार उनके अप्रकाशित ग्रंथों के या उनके रहस्य के बारे में जाने, सदैव अभाव में जीने वाले इस व्यक्ति द्वारा आखिर किसके लिए यह संस्कृत के दुर्लभ कृतियां/पांडुलिपियां लिखी गई. श्रद्धेय दैवेज्ञ जी को प्रणाम करते हुए अपनी कलम को यही पर विराम देता हूं।
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Tirth Chetna

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