गढ़ भोज के बहाने चर्चा में आए उत्तराखंड के प्रमुख व्यंजन

गढ़ भोज के बहाने चर्चा में आए उत्तराखंड के प्रमुख व्यंजन
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डॉ़. धनेंद्र कुमार पंवार।

उत्तराखंड जिसे हम देवभूमि के नाम से भी जानते हैं यह एक अत्यंत विविधता भरे समाज एवं संस्कृति का क्षेत्र है। यहां प्रकृति ने अपना अनुपम सौंदर्य प्रदान किया है। इसके साथ ही साथ यहां पर औषधीय गुणों से भरपूर फसलों से बनने वाले व्यंजनों को गढ़ भोज कहा गया है।

उत्तराखंड सरकार ने सात अक्टूबर को गढ़ भोज दिवस मनाने का निर्णय लिया है। इस दिवस के बहाने उत्तराखंड के तमाम प्रमुख व्यंजन चर्चा में आ गए हैं। उम्मीद है कि अब इनके कद्रदान भी बढ़ेंगे। साथ ही बेहतर रेसिपी के माध्यम से गढ़ भोग व्यापक स्तर पर प्रोजेक्ट हो सकेंगे।

गढ़ भोज में हम मोटे अनाज का भी प्रयोग करते हैं जो कि हमारे स्वास्थ्य के लिए लाभदायक होता है। डॉक्टर भी मोटे अनाज को लेने की सलाह देते हैं। इसके साथ ही साथ यहां के पारंपरिक अन्य व्यंजन भी बहुत ही स्वादिष्ट और लाभदायक हैं।

यहां के गढ़ भोजश्में जो प्रमुख व्यंजन परोसे जाते हैं इसमें स्नैक के रूप में अरसा, रोट , मिठे स्वाले (पुरी) आदि प्रमुख रूप से शामिल हैं। इसके अलावा गथवाणी , भटृवाणी , मूला का थी च्वाणी , चोलाई (मारसा का हलवा) , पिंडालू की सब्जी , पैतूड़ (बंद गोभी के), पैतूड़ (राई के पत्तों के) , पैतूड़ (अरबी के) , पलयो , आलू की थिचवाणी , छछिड़ा , गुड जोली , गुलगुले , काफली (राई के पत्तों की) , काफली ( पालक के पत्तों की) , कंडाली का साग , बाड़ी, उड़द की दाल की पकौड़ी।

करखुले (कद्दू के मुलायम पत्तों की सब्जी) , फाणु गहत ( कुल्थ) का , लेगड़ो की हर सब्जी , मीठा भात , तिल की चटनी ,भांग की चटनी , भट्ट की चटनी , झंगोरा का भात , झंगोरे की खीर , आटे का हलवा , गिंजड़ों , दयुड़ा , मड़वे की रोटी , मारछा की रोटी, बुखणा (नमकीन) , बुखणा (मीठे) , भरी रोटी गहत की , भरी रोटी सोयाबीन भट्ट और की ,भरी रोटी पहाड़ी उड़द की।

मट्ठा का झोल , दाल की भरी रोटी पहाड़ी काली मसूर की , पटुड़ी हरे प्याज की पत्तों की , पल्लर , लाल चावल , बड़ी का साग , दाल की पकौड़ी,पहाड़ी पिसा हुआ नमक इत्यादी । आज जरूरत है अपने पहाड़ी उत्पादकों का प्रयोग कर हम अपनी संस्कृति एवं परंपरागत व्यंजनों का प्रचार -प्रसार करने की जिससे यहां के व्यंजनों गढ़ भोज को नया आयाम मिल सके।
                                                                                            लेखक- उच्च शिक्षा में प्राध्यापक हैं।

Tirth Chetna

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