पौखाल में पोषक अनाज उत्पादन पर एक दिवसीय प्रशिक्षण
तीर्थ चेतना न्यूज
रानीचौरी। वानिकी महाविद्यालय, रानीचौरी के वैज्ञानिकों ने काश्तकारों को पोषक अनाज उत्पादन के लिए नई-नई तकनीकी के बारे में जानकारी दी। ताकि क्वालिटी और क्वांटीटी को बेहतर रखा जा सकें।
अन्तर्राष्ट्रीय पोषक अनाज वर्ष 2023 की विभिन्न मासिक गतिविधियों के मृर्तरूप के क्रम में गुरूवार को भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद द्वारा वित्त अखिल भारतीय समन्वित मोटा अनाज शोध परियोजना के अन्तर्गत वीर चन्द्र सिंह गढवाली उत्तराखंड औद्यानिकी एंव वानिकी विश्वविद्यालय के वानिकी महाविद्यालय रानीचौरी के द्वारा ग्राम सभा मगरौं (पोखाल) में पोषक अनाज उत्पादन पर एक दिवसीय प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित किया गया।
इस मौके पर असिस्टेंट प्रोफेसर/ परियोजना अधिकारी डॉ लक्ष्मी रावत, वैज्ञानिक डॉ अजय कुमार यादव, एवं प्रकाश नेगी, अजय ममगाईं एवं अमित किशोर मौजूद रहे। शोध वैज्ञानिकोें द्वारा किसानों को पोषक अनाज के पोषक महत्व व उत्पादन की नयी नयी तकनीकें बताई गई।
वैज्ञानिकोें ने बताया कि पोषक अनाज (मंडुवा, -हजयंगोरा, कोणी व चीणा) को उगाना आसान है तथा इनको उगाने में कम पानी तथा कम मेहनत करनी पड़ती है। मोटा अनाज गंेहू व चावल की तुलना में अत्यधिक पोषक होते है जिसमें रेशे की मात्रा अधिक होती हैै। साथ ही साथ शोध वैज्ञानिक पादप रोग विज्ञान डॉ लक्ष्मी रावत द्वारा किसानों को मोटे अनाज पर लगने वाले कीट व रोगों की प्रबंधन तकनीक भी बताई। डॉ. अजय कुमार द्वारा मोटे अनाज उत्पादन तकनिकी पर किसानो को व्याख्यान दिया गया।
डॉ. लक्ष्मी रावत द्वारा किसानो को अवगत करवाया गया कि मोटा अनाज कई प्रकार की किस्मों में आता है, जिनमें रागी, झंगोरा कँगनी, बाजरा, चीना, कुटकी, झंगोरा और कोदो बाजरा शामिल हैं। ये सभी अनाज पोषक तत्वों से भरपूर हैॅं। इसके अतिरिक्त, स्वाद में भी सुधार हुआ है। मोटे अनाजों से अब फूली हुई ब्रेड, स्वादिस्ट दलिया, गर्म खिचड़ी, इडली, डोसा और यहां तक कि मिठाई भी बनाई जा रही हैं।
मोटे अनाजों में प्रोटीन, रेशा, विटामिन बी,कैल्शियम, लोहा, मैंगनीज, मैग्नीशियम, फास्फोरस, जस्ता,पोटेशियम, तांबा और सेलेनियम सहित अन्य पोषक तत्व भारी मात्रा में होते हैं। उनमें प्रचुर मात्रा में एंटीऑक्सिडेंट, फ्लेवोनोइड्स, एंथोसायनिन, सैपोनिन और लिग्नन्स भी शामिल है।
ये फसलें सुदूरवर्ती क्षेत्रों के निवासियों को खाद्य सुरक्षा एवंपोषण सुरक्षा उपलब्ध कराती है, साथ ही ये स्थायी एवं टिकाऊ पर्वतीयकृषि के महत्वपूर्ण स्तम्भ हैं। मोटे अनाज की फसलें पर्यावरणकी दृष्टि से भी अत्यन्त महत्वपूर्ण है, क्योंकि इन फसलों मेंबदलते पर्यावरणीय माहौल मंे -सजय़लने की अपार क्षमता होती है।
प्रकृति के साथ अनुकूलता एवं बाजार में इन फसलों के बढ़ती मांग पर्वतीय किसानों के आर्थिक स्वालम्बन की दिशा में एक मील
का पत्थर साबित हो सकते हैं। एक दिवसीय प्रशिक्षण कार्यक्रम में ग्राम सभा मगरौं के बबली देवी, राकेश भटृ, जितेन्द्र प्रसाद सहित 60 किसान मौजूद रहे।