एलटी/प्रवक्ता में खप जाती है सेवा, कैसे मिलेगा प्रमोशन का मेवा
हाय शिक्षक तेरी यही कहानी, जर्रे-जर्रे में सेवा और आंखों में पानी
तीर्थ चेतना न्यूज
देहरादून। प्रधानाध्यापक के फीडर पद (एलटी/ प्रवक्ता) पर 25-30 साल की सेवा कर चुके शिक्षकों को इंटर कालेज के प्रिंसिपल पद के अर्ह नहीं माना जाता। ये सिस्टम निर्मित बैरियर है।
जी हां, उत्तराखंड में ऐसा ही कुछ है। कहा जा सकता है-हाय शिक्षक तेरी यही कहानी, जर्रे-जर्रे में सेवा और आंखों में पानी। इसके लिए सिर्फ और सिर्फ शिक्षक जिम्मेदार हैं। शिक्षक अपने जायज मांगों की एडवोकेसी करना भूलकर विभाग और शासन के सम्मुख याचक की मुद्रा में हैं।
आगे स्थिति इससे भी भयावह होने वाली है। एक डिप्टी ईओ विभाग का डायरेक्टर पद तक पहुंचेगा और एलटी/प्रवक्ता हेड मास्टर बनने के लिए तरसेंगे। दरअसल, पूरा मामला ये है कि सरकार/शिक्षा विभाग माध्यमिक के शिक्षकों की अधिकांश सेवा एलटी/प्रवक्ता पद पर खपा देती है।
25-30 साल की सेवा में किसी तरह से उन्हें पहला प्रमोशन हाई स्कूल के हेड मास्टर के पद पर मिलता है। तब तक सेवानिवृत्ति के साल भी दो-चार के बीच ही बचते हैं।
इंटर कालेज के प्रिंसिपल पद के लिए हेड मास्टर पद पर पांच साल की सेवा को अर्ह मानने का नियम है। परिणाम हेड मास्टर प्रिंसिपल बनने के अर्ह नहीं हो पाते। सिस्टम निर्मित इस पेंच का सरकार का लाभ होता है। हां, शिक्षा को नुकसान होता है।
इन दिनों विभाग इस बात को स्वयं प्रचारित भी कर रहा है कि राज्य में 1389 प्रिंसिपल के पदों में से 958 रिक्त हैं। हाई स्कूल में तैनात कोई भी हेड मास्टर की निर्धारित अर्हकारी सेवा नहीं है कि उसे प्रिंसिपल पद पर प्रमोट किया जा सके। इसलिए उन्हें कार्यवाहक प्रिंसिपल बनाने की तैयारी है। यानि काम प्रिंसिपल का करेंगे और वेतन हेडमास्टर का लेंगे।