देवप्रयाग के रामकुंड मोटर पुल की याद दिला रहा है प्रस्तावित सिंगटाली पुल
अधिकारियों ने वर्षों लटकाया, बनाया तो हवा में उड़ गया
तीर्थ चेतना न्यूज
ऋषिकेश। गंगा पर प्रस्तावित सिंगटाली मोटर पुल ने उत्तर प्रदेश के दौर की देवप्रयाग के रामकुंड मोटर पुल की याद ताजा करा दी। रामकुंड पुल को अधिकारियों ने वर्षों लटकाया और जब बनाया तो पुल हवा में उड़ गया था।
जी हां, वर्ष 1981 में देवप्रयाग के रामकुंड के पास एक मोटर पुल स्वीकृत हुआ था। इस पुल से देहरादून, टिहरी से मंडल मुख्यालय पौड़ी तक पहुंचना आसान हो जाता। मगर, ये पुल नहीं बना। वजह कुछ लोगों के स्वार्थ प्रभावित हो रहे थे। स्थानीय स्तर पर हो हल्ला हुआ तो किसी तरह से 1990 में पुल का ढांचा बनना शुरू हुआ।
1991 की एक रात को आई आंधी से ढांचा उड़ गया। इस पुल की कहानी तब खूब चर्चित हुई थी। पुल न बन सकें इसके लिए तमाम प्रपंच रचे गए। विंडो वेलोसिटी की बात तक आई। 1991 में यूपी के मुख्यमंत्री कल्याण सिंह के सम्मुख ये मामला आया तो उन्होंने फाइल तलब की।
1995 में ये पुल उत्तर प्रदेश सेतु निगम को सौंपा गया। बैलेंस कंटिलिवर पद्वति से बना ये राज्य का पहला मोटर पुल है। खास बात ये है कि जिस स्थान पर पुल का बनना संभव नहीं बताया जाता था आज पुल वहीं पर बना है और लोगों को सेवा दे रहा है।
बहरहाल, ये पुल 2001 में जनता को समर्पित किया गया। ऐसा ही कुछ-कुछ सिंगटाली मोटर पुल के साथ भी हो रहा है। पहले इसका स्थान बदला गया। बात दिल्ली तक पहुंची तो कुछ हलचल दिखी। इस हलचल ने चुनाव की हवा पक्ष में कर दी और काम निकल गया। बहरहाल, दावा किया गया कि डीपीआर तैयार हो रही है। अब चर्चा है कि सर्वे पक्ष में नहीं है।
यानि मौके पर पुल बनने में दिक्कत है। खास बात ये है दिक्कत सर्वे से पहले शुरू हो गई थी। ऐसा ही देवप्रयाग के रामकुंड पुल के साथ भी हुआ था। बहरहाल, ढांगू विकास समिति ने पुल के लिए फिर से संघर्ष शुरू कर दिया है। सोशल मीडिया में पुल को लेकर सक्रियता बढ़ी है।