तबादला मौसम में सयानी काकी की दो टूक

तबादला मौसम में सयानी काकी की दो टूक
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उंदू-उबु,मुंडारू और हडग्यूं मा हवा बतौण वला जवान नौना-नौनी सवाधान

पहाड़ी राज्य उत्तराखंड की सामाजिक, प्रशासनिक और राजनीतिक मिजाज की नाड़ी वैद्य सयानी काकी इन दिनों तबादला मौसम पर नजर बनाए हुए है। काकी ने पहाड़ी राज्य की नौना-नौनी को उंदू-उबु, रिंग-घूम, मुंडारू और हडग्यूं मा हवा बतौण से सावधान किया है।

सयानी काकी जब से जोशीमठ के दौरे से वापस आयी तबसे अघोषित राजधानी की खटटी-मिटठी में रंग गई। काकी भी गुनगुनाने लगी है ना उकाल न उदार, सीधू सैंणू… मेरू घर का बाटू।

काकी देहरादून में रमे भी क्यों नहीं। सारे उत्तराखंड की चाट मसाला, नमक और पकोड़ी तो वहीं हैं। सयानी काकी ने भी सोचा की क्यों न अपने बेटे के घर पर रहा जाए। बेटा सरकारी विभाग में बड़ा अधिकारी है। काकी ने सोचा इस बहाने देहरादूण रह रहे गौ गौला के लोगों से सेवा सौंली भी हो जाएगी और चुनाव में मुखड़ी देखाने वालों से भी मिल लेगी।

एक-आध दिन ही हुआ था कि सयानी काकी ने देखी कि ब्वारी का मूड आज कल कुछ ठीक नहीं है। ब्वारी नौकरी से आते ही कुछ तिलमिलाई रहती है। सुगम-दुर्गम बड़बड़ाती रहती है। सयानी काकी ने कई बार पूछा हे ब्वारी क्या बड़बड़ा रही है। ब्वारी ने कुछ जवाब नहीं दिया। अब सुगम-दुर्गम के साथ ब्यारी अंग्रेजी मा मुचल-मुचल, म्यूचल भी कहने लगी।

गुस्से में कभी गिलास फोड़ा तो कभी प्लेट तोडी। तब सयानी काकी ने अपने बेटे से पूछा कि क्या बात च रे घंतू आजकल ब्वारी का मूड ठीक नि लगनु। तिन कुछ त नी बोली रहे ब्वारी तैं। बेटे ने बताया कि ब्वारी भी सरकरी नौकरी कर दी। सुनते ही सयाणी काकी की काका की गुद जैसे बुद्धि कौंध गी।

सयाणी काकी फट समझगी कि उत्तराखंड में स्थानान्तरण का मौसम आ गया। राजधानी एवं कुछ अन्य स्थानों में आनंद ले रहे लोगों के हाथ पैर फूलने लगते है। यही हाल सयानी काकी की ब्वारी का भी था।

सयानी काकी की ब्वारी जब से राजधानी में आई तबसे अपने गावं का बाटा घौर बार कूड़ी- पुंगड़ी, रौ रिश्तेदारी सब भूल गयी। अब ब्वारी का स्थानान्तरण सुन्दर पहाड़ी जगह पर हुआ। ब्वारी है कि जाने को तैयार नहीं है।

ब्वारी को इस बात का गुस्सा है कि बड़े पद पर आसीन पति तबादला रूकवाने को कुछ नहीं कर रहा है। सयानी काकी का बेटा है तो सयानी काकी की तरह हे उसूलों वाला है और नहीं चाहता कि वो नियम विरूद्ध कोई सिफारिश करे।

अब रोज जब माहौल बिगड़ता गया तो सयानी काकी ने अपनी ब्वारी को दो टूक समझा दिया कि देखा ब्वारी उत्तराखंड हमरु अपणू और हमकू तै ही बनायुं । नौकरी कन त साब जगह जा पहाड़ों मा जावा। हमारा पहाड़ अपना उत्तराखंड का हृदय च।

उत्तराखंड की आत्मा यूं पहाड़ों मा ही बसदी। जाओ वहां छोटे छोटे बच्चों को पढाओ। अपना ज्ञान दो। यहां घंटा घर पर रहने से तुम्हारी आदत ख़राब हो गईं। सयानी काकी के ये बात ब्वारी के बरमंड चढ़ गई। उसने लमलेट लगाया और रूसाड़ा की अघोषित हड़ताल कर दी।

ये देख सयानी काकी का पारा सातवें आसमान पर और सयानी काकी ने ब्वारी का पारा नीचे उतार दिया। ब्वारी को खरी खरी सुना दी कि नौकरी करनी है तो पहड़ों में जाओ और नहीं करनी है तो घर में बैठ कर रोटी बनाओ और रोपणी लगाओ।

सयानी काकी की दो टूक थी कि जितने भी लोग उत्तराखंड के अन्दर पहाड़ों में नौकरी में जाने के लिए तमाम तरीकों से मना करते हैं उन्दू दृ उभू, रीग घूम और हडग्यूं का हवा लगने का बहाना बनाते हैं उन्हें सोचाना चाहिए कि एक राज्य के बड़े भू-भाग को दुर्गम बताना क्या ठीक है। पहाड़ों में रहना होगा तो पहाड़ों को दुर्गम नहीं कहना होगा।

Tirth Chetna

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