बच्चों में रचनात्मकता को कैसे प्रोत्साहित करें
एक किताब
किताबें अनमोल होती हैं। ये जीवन को बदलने, संवारने और व्यक्तित्व के विकास की गारंटी देती हैं। ये विचारों के द्वंद्व को सकारात्मक ऊर्जा में बदल देती है। इसके अंतिम पृष्ठ का भी उतना ही महत्व होता है जितने प्रथम का।
इतने रसूख को समेटे किताबें कहीं उपेक्षित हो रही है। दरअसल, इन्हें पाठक नहीं मिल रहे हैं। या कहें के मौजूदा दौर में विभिन्न वजहों से पढ़ने की प्रवृत्ति कम हो रही है। इसका असर समाज की तमाम व्यवस्थाओं पर नकारात्मक तौर पर दिख रहा है।
ऐसे में किताबों और लेखकों को प्रोत्साहित करने की जरूरत है। ताकि युवा पीढ़ी में पढ़ने की प्रवृत्ति बढे। हिंदी न्यूज पोर्टल www.tirthchetna.com एक किताब नाम से नियमित कॉलम प्रकाशित करने जा रहा है। ये किताब की समीक्षा पर आधारित होगा।
साहित्य को समर्पित इस अभियान का नेतृत्व श्रीदेव सुमन उत्तराखंड विश्वविद्यालय की हिन्दी की प्रोफेसर प्रो. कल्पना पंत करेंगी।
प्रो. कल्पना पंत
पुस्तक 5 अध्यायों में विभक्त है दीवार पत्रिका के साथ मेरा अनुभव, दीवार पत्रिका निर्माण कार्यशाला ,दीवार पत्रिका के साथ बच्चों के अनुभव, दीवार पत्रिका के संपादकों से बातचीत , दीवार पत्रिका के साथ शिक्षक साथियों के अनुभव और अंत में परिशिष्ट है।
पहले अध्याय में लेखक महेश पुनेठा ने दीवार पत्रिका निर्माण के अपने अनुभव को साझा किया है कि किस तरह प्रशिक्षण के दौरान उनका परिचय बाल अखबार के निर्माण से हुआ। प्रशिक्षण के दौरान उन्होंने देखा की प्रतिदिन कोई एक प्रतिभागी बाल अखबार तैयार करके प्रस्तुत करता था, जिस पर सभी प्रतिभागियों की प्रतिक्रिया को महत्व दिया जाता था।
विशेष रुप से ध्यान रखा जाता था कि बाल अखबार को बेहतर बनाने के लिए उसमें कौन-कौन से स्तंभ होनी चाहिए ऐसा क्या किया जाए कि बच्चे स्वयं से कार्य करने के अधिक से अधिक अवसर पा सके जिससे कि वह रचनात्मक आनंद को महसूस कर सकें।
लेखक ने स्वयं यह प्रयोग अपने प्राथमिक विद्यालय में विभिन्न बाल पत्रिकाओं से अच्छी-अच्छी रचनाएं ढूंढ कर उन्हें बाल अखबार में प्रकाशित करके की .इसे चार्ट पेपर पर तैयार किया जाता था अखबारों से भी बच्चों के लिए साप्ताहिक रचनाओं को संकलित कर लेखक ने दीवार पर चिपका उन्हें बच्चों के लिए बाल अखबार के रूप में पेश करने के प्रयोग को भी इस पुस्तक में प्रस्तुत करता है.पहली दीवार पत्रिका लेखक ने कपड़े पर रचनाएँ चिपकाकर की।
इसके उपरांत अपने दूसरे विद्यालय में लेखक ने नवांकुर नाम से एक पत्रिका निकाली.धीरे-धीरे लेखक ने बच्चों को लेखन के महत्व के बारे में बताते हुए इस प्रयोग से जोड़ा । बच्चे एक समय के बाद स्वयमेव इस प्रयोग में रुचि लेने लगे।
.यद्यपि यह काम बहुत आसान नहीं रहा लेकिन लेखक के अथक प्रयासों से और कार्यशाला में आयोजित करने के बाद बच्चे खुद से यह काम करने में रूचि लेने लगे । कई बच्चे बहुत अच्छी रचनाएँ लेकर आए जिनमें बच्चों के ही प्रयासों से दीवार पत्रिका को नियमित रूप से निकाला जाने लगा।
इस संबंध में मुझे एक महत्वपूर्ण पुस्तक का यहां पर जिक्र करना जरूरी लग रहा है जिसे ताराचंद्र त्रिपाठी द्वारा लिखा गया है .पुस्तक का नाम ग्यारह वर्ष है यह पुस्तक संस्थाध्यक्ष के रूप में एक अध्यापक के अथक प्रयासों का नतीजा है।
बच्चों की रचनात्मकता को प्रोत्साहित करने के लिए अपनी टीम के साथ किए गए महत्वपूर्ण प्रयोगों को एक पुस्तक के रूप में प्रस्तुत किया गया है। इतिहास में विभिन्न अध्यापकों द्वारा किए गए महत्वपूर्ण प्रयोगों और बच्चों के प्रति उनके गहरे अनुराग ने शिक्षा को नवीन दिशाएं देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है .यह भी सच है यह कार्य वही शिक्षक कर सकता है जिसका अपने विद्यार्थियों के प्रति गहरा अनुराग और शिक्षा के प्रति समर्पण हो।
लेखक ने इस पुस्तक में बच्चों की रचनाओं के बहुत से उदाहरण भी प्रस्तुत किए हैं..बच्चों की रचनात्मकता के माध्यम से उनके अंदरूनी भाव ,उनकी सोच ,उनका दुनिया को देखने का उनका नजरिया हमारे सामने उपस्थित हो जाता है ,जिसको जानना एक अध्यापक के लिए आवश्यक है ,अन्यथा वह बच्चों के मन में प्रवेश नहीं कर सकता जिसके बिना सही शिक्षा देना असंभव है .मुझे फ्रात्ज काफ्का की डायरी के अंश का स्मरण है -जहां वह कहता है मेरी शिक्षा ने मुझे बहुत नुकसान पहुंचाया है उसने मुझे वह बना दिया जो मैं नहीं बनना चाहता था।
पुस्तक के लेखक को दीवार पत्रिका की यात्रा में अनेक उतार-चढ़ाव का सामना करना पड़ा है .इन्होंने एक जगह पर लिखा है ऐसे अनेक आए जब लगा कि यह काम आगे नहीं बढ़ पाएगा लेकिन बच्चों के कम रुचि लेने के बावजूद एक अध्यापक के संघर्ष ने हार नहीं मानी . कुछ बच्चों ने स्वयं पत्रिका निकालने की इच्छा व्यक्त की च्छा व्यक्त की अध्यापक के द्वारा उन्हें प्रोत्साहित किया गया और बच्चों ने बहुत अच्छा कार्य इस दिशा में किया .एक अध्यापक की सफलता इसी बात में है कि वह बच्चों की रुचि को जागृत कर उनकी क्षमताओं को पहचान कर उन्हें विकसित होने का अवसर प्रदान करें।
पुस्तक के दूसरे अध्याय में बच्चों में रचनात्मक लेखन को प्रोत्साहित करने के लिए किए गए विशेष प्रयासों को अंकित किया गया हैं.लेखक का मानना है कि बच्चों की प्रतिभा और अभिरुचियों की पहचान कर उन्हें सही दिशा में आगे बढ़ाने का अवसर प्रदान करने अप संस्कृति से बचाते हुए उन्हें मानवीय मूल्यों व संस्कृति की सही राह दिखाने ,समाज के प्रति बच्चों में सरोकार और सामूहिकता की भावना को विकसित करने के उद्देश्य से कार्यशाला की महत्वपूर्ण भूमिका है .इन कार्यशालाओं की सफलता इस बात पर निर्भर करती है कि वहा बच्चे खुशनुमा माहौल में आनंददाई गतिविधियां कर सकें।
तीसरे अध्याय में दीवार पत्रिका के साथ बच्चों के अनुभव अंकित है बच्चों की दृष्टि में दीवार पत्रिका से बच्चों को कई प्रकार के लाभ हो रहे हैं इसके द्वारा उनमें रचनात्मकता लेखन क्षमता अभिव्यक्ति की क्षमता बढ़ी है उनकी गलतियां कम हो रही है बच्चों के पूर्ण विकास के लिए यह बहुत अच्छा माध्यम है।
चतुर्थ अध्याय में दीवार पत्रिका के संपादकों से बातचीत है यह संपादक पर बच्चे हैं जिन्होंने स्वयं रूचि लेकर बहुत लंबे समय तक दीवार पत्रिका निकाली है इसमें बच्चों का इंटरव्यू लिया गया है . बच्चे इस में आने वाली कठिनाइयों को भी बताते हैं और उन कठिनाइयों के समाधान भी प्रस्तुत करते हैं।
पंचम अध्याय में दीवार पत्रिका के साथ अन्य शिक्षकों के अनुभव भी है जिन्होंने अलग-अलग विद्यालयों में दीवार पत्रिका को निकालने के प्रयोग किए हैं, इसी तरह के प्रयोग अलग-अलग स्तरों पर विभिन्न विद्यालयों महाविद्यालयों तथा विश्वविद्यालयों में भी किए जाने चाहिए।
परिशिष्ट में दीवार पत्रिका का परिचय है -जिसमें लिखा गया है कि दीवार पत्रिका एक हस्तलिखित पत्रिका है जो दीवार पर कैलेंडर की तरह लटका दी जाती है .इसमें साहित्य की विभिन्न विधाओं, रोचक गतिविधियों और चित्रकला को स्थान दिया जाता है .दीवार पत्रिका को बहुत कम लागत में आसानी से तैयार किया जा सकता है।
रचनाओं को एकत्र कर पहले सादे कागज पर सुलेख में लिख लिया जाता है और फिर सारी सामग्री एक चार्ट पेपर पर या पुराने कैलेंडर में लटका दी जाती है.पूरा चार्ट पेपर भर जाने पर उसे दीवार पर ऐसे स्थान पर लटका दिया जाता है जहां पर खड़े होकर आसानी से पढ़ लिया जाता है यह कार्य एक निश्चित समय अंतराल पर किया जाता है.दीवार पत्रिका की आवश्यकता इसलिए है कि बच्चों को अभिव्यक्ति के अवसर मिले, उनकी रूचि प्रोत्साहित हो ,भाषाई दक्षता को बल मिले जिससे कि उन्हें अपने अन्य विषयों को पढ़ने में भी आसानी हो और उनका ज्ञान बढ़े।
पुस्तक की भाषा अत्यंत सहज और सरल है यह पुस्तक लेखक मंच प्रकाशन गाजियाबाद से प्रकाशित हुई है।