शिक्षणेत्तर कार्यों के बोझ तले स्कूल से लेकर डिग्री कॉलेजों तक की शिक्षा

शिक्षणेत्तर कार्यों के बोझ तले स्कूल से लेकर डिग्री कॉलेजों  तक की शिक्षा
Spread the love

तीर्थ चेतना न्यूज

देहरादून। राज्य के सरकारी स्कूल से लेकर डिग्री/पीजी कॉलेज शिक्षणेत्तर कार्यों के बोझ तले कराह रहे हैं। शिक्षणेत्तर कार्यों का बोझ समाज में दूसरी जुबान के रूप में प्रचारित होते-होते स्थापित हो चुका है।

अभी तक बुनियादी और माध्यमिक शिक्षा में ही शिक्षक/शिक्षिकाओं पर शिक्षणेत्तर कार्यों के बोझ की बात सुनी और देखी जाती थी। इसका असर सरकारी स्कूलों में किस रूप में देखा जा रहा है बताने की जरूरत नहीं है। शिक्षणेत्तर कार्यों का बोझ समाज में दूसरी जुबान के रूप में प्रचारित होते-होते अब स्थापित हो चुकी है।

स्कूलों के शिक्षक आए दिन इन बातों को समाज के सामने फेस कर रहे हैं। सरकारी स्कूलों की शिक्षा को लेकर उन्हें कई मौकों पर सफाई भी देनी पड़ती है। बावजूद इसके हालात नहीं सुधर रहे हैं। विभागीय अधिकारी कई मौकों पर अभिभावकों से रूबरू होकर सरकारी स्कूलों की विशेषताएं गिनाते हैं।

अब राज्य के गवर्नमेंट डिग्री कॉलेजों में भी ऐसा साफ-साफ दिखने और महसूस होने लगा है। जागरूकता के नाम पर कॉलेजों में होने वाली एक्टिविटी अब कनक-कनक होने लगी है। इन एक्टिविटी को कराने में शामिल शिक्षक एक तरह से शिक्षणेत्तर कार्यों में लीन होने लगे हैं।

इससे उच्च शिक्षा में भी कुछ-कुछ वैसा ही माहौल बनने लगा है जैसा शिक्षकों के शिक्षणेत्तर कार्यों में लीन होने से स्कूल स्तर पर दिख रहा है। इस माहौल से सरकारी स्कूलों में क्या प्रभावित हुआ वैसा ही अब गवर्नमेंट डिग्री और पीजी कॉलेजों में भी होने लगा है।

ये बात अलग है कि उच्च शिक्षा से जुड़े अधिकारी ऐसा नहीं मानते। अधिकांश प्रिंसिपल इसे शिक्षा का ही हिस्सा मानते हैं। अत्यधिक गतिविधियों से क्लास में पैदा हो रहे खलल की बात को भी कोई स्वीकारने को तैयार नहीं हैं।

हां, ऑफ द रिकॉर्ड कॉलेजों के प्राध्यापक स्वीकारने लगे हैं कि अत्यधिक कार्यक्रमों से छात्र/छात्राओं की पढ़ाई प्रभावित हो रही है। शोध कार्य प्रभावित हो रहे हैं। उच्च शिक्षा के स्तर से जो विचार उभरने चाहिए वैसा कुछ नहीं हो पा रहा है।

Tirth Chetna

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *