गौवंश के संरक्षण को कटिबद्ध डांडामंडल क्राफ्ट एसोसिएशन किमसार

मानव पलायन से पर्वतीय क्षेत्रों में गौवंश संरक्षण बना चुनौतीपूर्ण काम
तीर्थ चेतना न्यूज
ऋषिकेश। राज्य के पर्वतीय क्षेत्रों से हुए मानव पलायन का असर विभिन्न स्तरों पर दिख रहा है। खेत-खलिहान सूने हो रहे और गांवों का घोस्ट विलेज का टैग लग रहा है। कभी गांवों की सामाजिक/धार्मिक और आर्थिकी की पहचान गौवंश बुरी स्थिति में है। ऐसे में डांडामंडल क्राफ्ट एसोसिएशन, किमसार अनुकरणीय काम कर रहा है।
पुरखों की संजोकर रखी गई कूड़ी टूट रही हैं और पुंगड़ी बांझा पड़ रही हैं। कभी आबाद रहे अधिकांश गांव जंगली जनवरों के ठौर बन चुके हैं। ऐसे में गौवंश बाघ के निवाला बन रहे हैं। हालात ये हो गए हैं कि शहरों की तरह पर्वतीय क्षेत्रों में गौवंश का संरक्षण और देखभाल एक चुनौतीपूर्ण कार्य बनता जा रहा है।
शहरों में सड़कों पर गौवंश बदहाल हालत में घूमता देखा जा सकता है। पहाड़ों में स्थिति अलग तरह की है यहां लावारिस गौवंश अधिकतर बाघ का निवाला बन जाते हैं। समाज के कुछ संवेदनशील लोगों द्वारा संस्थागत तथा व्यक्तिगत स्तर पर इन गौवंश की देखभाल का पुनीत कार्य किया जा रहा है।
ऐसी ही एक संस्था डांडामंडल क्राफ्ट एसोसिएशन किमसार, यमकेश्वर, पौड़ी गढवाल के संस्थापक गिरीश कंडवाल के द्वारा भी संस्था के माध्यम से गौवंश के संरक्षण में एक महत्वपूर्ण योगदान किया जा रहा है।
इनकी गौशाला में आस पास के काफी विस्तृत क्षेत्र से गौवंश को छोड़ दिया जाता है जिसकी यहां पर बहुत श्रद्धा के साथ देखभाल की जाती है। वर्तमान में यहां पचास से अधिक गौवंश हैं। हर वर्ष बहुत सी गायें बच्चा जनती हैं और दूध देन लगती हैं।
ऐसी गायें आस पास के गांव वालों को निशुल्क दे दी जाती हैं और अधिकांश उसके बाद पुनः वापस आ जाती हैं। एक समय यहां पर गायों की संख्या नब्बे से भी अधिक हो गई थी।
उत्तराखंड सतरुद्रा ट्रस्ट ने निर्णय लिया था कि ऐसा कार्य करने वाली संस्थाओं को प्रोत्साहित किया जाय। यह गौशाला जब ट्रस्ट के संज्ञान में आई तो जानकारी जुटाई गई और ₹ 5000/ सहयोग राशि की एक किश्त अनुमोदन के उपरांत उक्त संस्था को सहयोग स्वरूप प्रदान की गई। इस मद में ट्रस्ट द्वारा ₹10000/ के वार्षिक सहयोग का अनुमोदन किया गया है जो दो किस्तों में दिया जायेगा।