वनों के संरक्षण हेतु नवाचारों पर फोकस
प्रो. गोविंद सिंह रजवार।
संयुक्त राष्ट्र सामान्य सभा ने 21 मार्च को अंतर्राष्ट्रीय वन दिवस के रूप में मनाने की घोषणा के आलोक में इस दिन पर सभी प्रकार के वनों के महत्व एवं उनके संरक्षण हेतु जागरूकता के लिए मनाया जाता है।
इस वर्ष की थीम वन एवं नवाचार है। इस दिवस में दुनिया जहां में वनों से संबंधित क्रीया कलापों जैसे स्थानीय, राष्ट्र व अंतर्राष्ट्रीय पर व्यापक वृक्षारोपण एवं अन्य कार्य किए जाते हैं। इस दिवस को मनाए जाने हेतु संयुक्त राष्ट्र वन फॉरम तथा खाद्य एवं कृषि संगठन आयोजक के रूप में काम करते हैं। इसके अंतर्गत विश्व के देश वनों के बचाव एवं संरक्षण हेतु काम करते हैं। इस काम में देशों की सरकारें और वनों से संबंधित संगठनों की सहभागिता होती है।
कहते हैं कि पृथ्वी यदि शरीर है तो वन उसके फेफड़े होते हैं, जो वायु को शुद्ध करने के अतिरिक्त कई प्रकार की पारिस्थितिकीय सेवाएं प्रदान करते हैं। सीधे शब्दों में वन पृथ्वी के अस्तित्व के लिए जरूरी हैं। पृथ्वी का एक तिहाई भाग वनों से अच्छादित है। संयुक्त पृथ्वी का वन क्षेत्र ब्राजील, कनाडा, चीन एवं संयुक्त राज्य अमेरीका के संयुक्त क्षेत्र के बराबर है। पृथ्वी के चार अरब हेक्टेयर क्षेत्र में फैले वन मात्र हरियाली नहीं हैं, बल्कि वन इस ग्रह पर जीवन के प्रत्येक स्वरूप के लिए जीवित घटकों के रूप में महत्वपूर्ण हैं।
वन ऐसे पारिस्थितिकी तंत्र का निर्माण करते हैं जिसमें विस्तृत जैवविविधता विद्यमान होती है। इसमंे 6000 वृक्ष प्रजातियां, उभयचर प्रजातियांे का 80 प्रतिशत, 75 पक्षी प्रजातियां एवं विश्व के स्तनधारी प्रजातियों का 68 प्रतिशत जैवविविधता पाई जाती है। अतः वृक्ष ऐसे पारिस्थितिकी तंत्र का निर्माण करते हैं जो न केवल पृथ्वी की विभिन्न जीव प्रजातियों को आवास प्रदान करते हैं बल्कि एक अरब लोगों को जीवन यापन भी कराते हैं।
वन सात करोड़ लोगों के घर हैं, जो कि वहां के मूल निवासी हैं। ये मूल रूप से वनों के प्राथमिक देख भाल करने वाले एवं संरक्षक हैं। क्योंकि वनों के होने से ही इन मूल निवासियों की उत्तरजीविता भी सुनिश्चित हो पाती है। वनों का प्रमुख महत्व है अरबों मीट्र्रिक टन कार्बनडाइ ऑक्सासइड का अवशोषण तथा आक्सीजन का उत्पादन, जो पृथ्वी पर जीवन के लिए जरूरी है।
काबर्नडाइऑक्साइड का अवशोषण जलवायु परिवर्तन दुष्परिणामो को कम करती है। कार्बनडाइऑक्साइड के अतिरिक्त अन्य ग्रीन हाउस गैसों जैसे मीथेन आदि को भी वन क्षेत्र अवशोषित करने की क्षमता रखते हैं। वन कई प्रकार की पारिस्थितिक सेवाएं प्रदान करते हैं जैसे वैश्विक स्तर पर वर्षा का नियंत्रण, जल स्रोतों की उपलब्धता एवं इनका संरक्षण, खाद्य पदार्थ, जड़ी बूटियां, ईंधन एवं इमारती लकड़ी इत्यादि, जिनसे मानव एवं अन्य प्रजातियों को कई प्रकार की वन संपादाएं जीवन यापन हेतु उपलब्ध होती हैं। वनों के कटान एवं अन्य प्रकार के अनियंत्रित दोहन, तथा निवाश से वन क्षेत्रों में लगातार कमी हो रही है।
जलवायु परिवर्तन के दुष्प्रभावों को रोकने हेतु वनों का संरक्षण एवं वनीकरण आवश्यक है। वन विनाश एवं वनांे की कमी के संबंध में कई चुनौतियां हैं, जिनमें से प्रमुख है पाम तेल, लकड़ी एवं अन्य उन उपजों का अत्यधिक दोहन तथा इनकी वैश्विक स्तर पर बढ़ती मांग एवं राष्ट्रीय तथा अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर वन संरक्षण हेतु अपर्याप्त एवं काफी कम वित्तीय उपलब्धता जिससे वैश्विक ऊष्णता को घटाया जा सकंे। वर्ष 2012 के वन घोषणा आकलन के अनुसार किसी भी बिंदु का क्रियान्वयन नहीं हो सका है। जैसे 2030 तक वन विनाश को रोकने के उपाय तथा भूमि अधिकार संबंधी विवादों का हिमालय/पर्वतीय क्षेत्रों तथा विश्व के अन्य क्षेत्रों में इन कार्यों/समस्याओं का निराकरण नहीं हो सका है।
संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम ने कई देशों की सरकारों एवं संबंधित संगठनों के सहयोग से इस दिशा में कई कार्यों की पहल की है जिसमें प्रमुख है घाना, ब्राजील, केन्या, इक्वाडोर, कोस्टारिका, इंडोनेशिया आदि देशों में वन संरक्षण एवं वनों के आंकलन संबंधी कार्य। उपलब्ध आंकड़ों अनुसार विश्व में प्रतिवर्ष लगभग एक करोड़ हेक्टेयर क्षेत्र के वनों का कनाट/विनाश के कारण तथा अग्नि से लगभग 70 हेक्टेयर से अधिक वन नष्ट हो जाते हैं।
इस वर्ष के अंतर्राष्ट्रीय वन दिवस के आयोजन हेतु वन एवं नवाचार विषय को चूना गया है जिसमें वनों के संरक्षण, वनों का विस्तृत अध्ययन, जलवायु परिवर्तन के दुष्प्रभावों का न्यूनीकरण हेतु नई तकनीकों एवं नवाचारों को बढ़ावा देने के उददेश्य प्रमुख हैं। वन संबंधी नवाचारों में प्रमुख है नवीन तकनीकों जैसे सुदूर संवेदन द्वारा वनों की लगातार निगरानी, प्राकृतिक एवं सतत रेशों का उपयोग जैसे कॉटन, हैम्प, लिनन एवं बांस से प्राप्त रेशों से कपड़ों का निर्माण करना, फार्म-टू-टेबल भोज का आयोजन जिसमें किसनों को सम्मिलित करते हुए स्थानीय स्तर पर उपलब्ध सब्जियों एवं फलों का उपयोग करते हुए भोज का आयोजन।
इसमें स्थानीय होटलों एवं रेस्टोरेंटो को भी सम्मिलित किया जा सकता है। हरित नवाचार एवं तकनीकी जिसमें वृक्षारोपण, खाद्य सुरक्षा, अंतरिक्ष तकनीक से वनों का अध्ययन/ निगरानी, उनका संरक्षण एवं जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को कम करना आदि मुख्य है। हेम्प (भांग) काष्ठ का उपयोग करते हुए फर्श एवं फर्नीचर का निर्माण। प्रकृति का वित्तीय उपकरण के रूप मे ंउपयोग, इसमें खाली भूमि तथा विघटित वन क्षेत्र के उनके स्वामियों द्वारा संरक्षण करने पर उन्हें वित्तीय पुरस्कार देना, जिससे वन/वनस्पतियों का संरक्षण भी हो तथा इनके स्वामियों इससे आमदनी हो। प्लास्टिक के स्थान पर कॉर्क का कार्बन पॉजीटिव पैकेजिंग हेतु उपयोग।
वृक्षारोपण हेज बीच बॉल का उपयोग जो कि कम लागत एवं मेहनत से किया जा सकता है। इसके अतिरिक्त अन्य नवाचारों को नई तकनीकी का उपयोग करते हुए उपलब्ध किया जा सकता है। इस प्रकार भारत एवं अन्य देशों में नवीन तकनीकी का उपयोग करते हुए वन संरक्षण एवं जलवायु परिवर्तन की चुनौतियों का सामना किया जा सकता है।
लेखक- फैलो लीनियन सोसाइटी ऑफ लंदन हैं।