उत्तराखंड राज्यः 23 सालों में क्या खोया और क्या पाया
कैलाश थपलियाल।
आज उत्तराखंड राज्य गठन को 23 वर्ष पूरे हो गए है,राज्य के नेताओं से लेकर बुद्दिजीवी वर्ग द्वारा आज राज्य निर्माण आंदोलन के दौरान शहीद हुए राज्य निर्माण के जननायकों को याद किया जा रहा है। पिछले 23 सालों से ऐसा हो रहा है। अब इस पर गौर करने की जरूरत है कि आखिर राज्य गठन के बाद क्या पाया और क्या खोया।
राज्य निर्माण के आंदोलन दौरान हुई एक महत्वपूर्ण घटना जिसने पूरे इस आंदोलन में आग में घी डालने का काम किया वो थी दो अक्टूबर 1994 की घटना। उत्तरप्रदेश पुलिस के द्वारा अलग राज्य निर्माण की मांग हेतु केंद्र सरकार को चेताने के लिए दिल्ली जा रहे निहत्थे आंदोलनकारियों को मुजफ्फरनगर के नारसन-रामपुर तिराहे पर ताबड़तोड़ गोलियाँ बरसायी गइ।
इसमें 15 आंदोलनकारियों की मौत हुई। महिलाओं के साथ दुर्व्यवहार हुआ। इस काण्ड के दोषियों को आज तक सजा नहीं मिली, इन शहीदों ओर महिलाओं को राज्य निर्माण के 23वर्षाे बाद आज तक भी इंसाफ नहीं मिला।
यह वह दौर था जब मैं सातवीं कक्षा में पढता था, आंदोलन के चलते सभी शिक्षक लोग हड़ताल पर थे,स्कूलें बंद थी ,बचपन के बालमन के चलते हम सब बच्चे खुश भी थे, चलो स्कूल बंद है तो कम से कम गुरूजी के गृहकार्य ना करने व सवाल पूछने पर नहीं आने पर पड़ने वाली डंडे की मार से तो बच गए है , छुट्टियाँ थी ,इसलिए दिन में गाय चुगाने सड़क की तरफ चले जाते थे, राज्य आंदोलन चरम पर था बड़े- बूढ़ों व महिलाओं के मुँह से अलग राज्य निर्माण के लिए लगाये गए नारे जब सड़क से कोई भी गाड़ी गुजरती थी हम सब बच्चे लगाते थे।
एक दिन जब एक कार सड़क से गुजर रही थी तो हमने आज दो अभी दो,उत्तराखंड राज्य दो के नारे लगाये तो वह कार रुक गयी,उससे मफलर पहने दो युवक उतरे और उन्होंने हमारी ओर दौड़ कर कहा कि लो अभी देते है तुम्हारा उत्तराखंड।
हमने भागकर झाड़ियों में छुपकर अपनी जान बचायी , जब वो चले गए तो उधर नजदीक ही गाय चुगा रहे हमारे गॉंव के चाचा जी ने हमें डाँटा कि क्यों लगाते हो तुम गाड़ी के पीछे भागते हुए नारे,तुम्हें पता है कि वो शराब बेचने वाले है घर मैं ही आकर मार डालेंगे। तब हम भी बचा पायेंगे तुम्हें ।
आज देखता हूँ कि आज राज्य निर्माण हुए 23 साल हो गए है उन शराब माफियाओं की अलग राज्य बनने के बाद पौ बारह है,उनकी दिन दोगुनी और रात चौगुनी प्रगति हुयी है, मैं और मेरे गाय चुगाने वाले दोस्त और उत्तराखंड का आम जनमानस आज भी अलग राज्य निर्माण के बाबजूद विकास के रंगीले पिंगले सपने ही देख रहे है।
सही मायनों में अगर देखा जाये तो जिस मकसद हेतु हमने अलग राज्य निर्माण की माँग की थी आज तक वो पूरे नहीं हो पाये है ,अविभाजित उत्तरप्रदेश के दौर में नीति-नियन्ताओं की नजर इस पहाड़ी क्षेत्र तक नहीं पहुँच पाती थी और यह क्षेत्र विकास से अछूता रह जाता था।
विकास केवल मैदानी क्षेत्रों तक ही सीमित था आज भी अगर देखा जाये तो अलग राज्य बनने के 23 साल बाद भी कितनी ही सरकारें आई और गयी लेकिन इस पहाड़ी क्षेत्र में मूलभूत समस्याऐं मसलन सड़क, स्वास्थ्य, शिक्षा,रोजगार जस की तस बनी हुयी, पहाड़ी क्षेत्र में रोजगार आज तक सरकारें मुहैया नही करा पायी है, पर्यटन की कोई ठोस नीति नहीं है जिससे पर्यटन से मिलने वाला फायदा यहाँ के स्थानीय ग्रामीण के बाहर से आये व मैदानी क्षेत्रों में बसे कुछ खास लोग ही उठा रहे है।
स्वास्थ्य सुविधाएँ बदहाल हैं। सरकार डॉक्टरों को पहाड़ नही चढ़ा पा रही है। राज्य आंदलन में बढ चढ़कर शिरकत करने वाली महिलाएं व आम जनमानस स्वास्थ्य सुविधाओं के अभाव में रास्तें में दम तोड़ देते है। शिक्षा व्यवस्था केवल कागजी विभागीय डाकों के सहारे चल रही है ,जिसके चलते पहाड़ो से लोग आज इन मुलभूत सुविधाओं के अभाव के कारण मैदानों की ओर पलायन को मजबूर है और आज पहाड़ के कभी ये आबाद रहने वाले गॉंव लैंटाना की झाड़ियों में ओझल होने को मजबूर है।
इस राज्य निर्माण के बाद अगर फायदा हुआ है तो यहाँ के नेताओं का हुआ है, जो अविभाजित उत्तरप्रदेश में प्रधान बनने तक के ही सपने देखते थे, वो कैबिनेट मंत्री और मुख्यमंत्री तक बनकर देहरादून की सुख -सुविधाओं का फायदा उठा रहे है तभी तो आज तक इस पहाड़ी राज्य की राजधानी पहाड़ में स्थित गैरसैंण में स्थानांतरित नहीं हो पायी है ,आज भी पौड़ी मंडलीय कार्यालय से लेकर,कृषि कार्यालय व पहाड़ में स्थित अन्य विभागों के कार्यालय देहरादून से ही संचालित हो रहे है ।
राज्य के पहाड़ी क्षेत्रों में निवास करने वाली जनता में यहाँ के विकास की उपेक्षा को लेकर धीरे-धीरे यहाँ के नेताओं और नीति- नियन्ताओं के प्रति जनाक्रोश बढ़ रहा है और कुछ सालों में यह जनाक्रोश एक ऐसे आंदोलन की शक्ल लेने वाला है कि जो राज्य निर्माण से भी बड़ा आंदोलन होगा जिसका प्रमुख लक्ष्य होगा राज्य के पहाड़ी क्षेत्र के विकास की घोर उपेक्षा के चलते राज्य की 23 सालों से बदल-बदलकर पहाड़ के विकास की अवहेलना करने वाली सरकारों के तख्ता पलट करने की ! आखिर ऐसा लक्ष्य होगा भी क्यों नहीं ,क्योंकि जिन लक्ष्यों की प्राप्ति हेतु यहाँ की आम जनता ने अलग राज्य निर्माण हेतु यह आंदोलन किया था वो तो आज तक पूरे नही हुए है।
लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं।