एससीईआरटी में दो दिवसीय उत्तराखंड मातृभाषा उत्सव संपन्न
डेढ़ दर्जन भाषाओं से रूबरू कराया छात्र/छात्राओं ने
तीर्थ चेतना न्यूज
देहरादून। राज्य शैक्षिक अनुसंधान एवं प्रशिक्षण परिषद के बैनर तले आयोजित दो दिवसीय उत्तराखंड मातृभाषा उत्सव जीआईसी आराकोट उत्तरकाशी के छात्रों ने बंगाणी भाषा में नाट्य संवाद और हारूल गीत मोड़े मुड़ाये, राजा कैन मोड़ाये के साथ संपन्न हो गया।
दो दिवसीय मातृभाषा उत्सव में प्रदेशभर से चयनित छात्रों ने अपनी – अपनी लोकभाषा में शानदार प्रस्तुतियों से कार्यक्रम का समा बांध लिया। जनपद अल्मोड़ा की छात्रा हर्षिता ने सकुना दे और पौड़ी की चित्रा पाठक ने गढवाली मांगल गीत गाकर सबको मंत्रमुग्ध किया।
पलायन, बेटी पढ़ाओ और दहेज प्रथा जैसे गंभीर मुद्दों पर जब नन्हे मुन्ने बच्चों ने प्रस्तुतियां दी तो बात बड़ों तक भी पहुंची। थान, टिहरी की छात्रा वैष्णवी ने जौनपुरी मांगल गीत और थत्यूड़ टिहरी की छात्रा मानसी, बबीता, वैष्णवी और आरजू ने नाट्य संवाद में शानदार अभिनय किया।
कार्यक्रम में थारू, रंवाल्टी, रं-ल्लू, बंगाली, पंजाबी, बावरी आदि भाषाओं में छात्रों ने मनमोहक प्रस्तुतियों से खूब तालियां बटोरी। जागर विधा में टिहरी और चंपावत के छात्रों की प्रस्तुति आकर्षण का केंद्र रही। वहीं जब बच्चों के उत्साहवर्धन के लिए पुरुस्कार मिले तो बच्चों के चेहरे खिल उठे।
इस मौके पर कार्यक्रम में विशिष्ट अतिथि लोकगायिका पद्मश्री बसंती बिष्ट मौजूद रही। निदेशक अकादमिक शोध एवं प्रशिक्षण (एआर टी) सीमा जौनसारी और अन्य वरिष्ठ अधिकारियों ने बसंती बिष्ट और अपर सचिव शिक्षा मेजर योगेन्द्र यादव को शॉल ओढ़ाकर सम्मानित किया।
इस मौके पर बसंती बिष्ट ने कहा कि हम अपनी रीति रिवाजों और संस्कृति के धनी हैं। हम दूसरों को भी यह दे सकते हैं। उन्होंने बच्चों को खेती – बगीचे के काम के लिए प्रेरित करते हुए कहा कि यदि बच्चे एक पौधा भी लगाएंगे तो उन्हें बहुत खुशी मिलेगी। बिष्ट ने अपने अनुभव बांटते हुए कहा कि हमे नई पीढ़ी को पुस्तैनी खेती की पद्धति को सिखाने की जरूरत है।
उन्होंने गोरिया देवता और नरसिंग देवता का जागर जल में विष्णु, तल में विष्णु गाकर दर्शकों को भावविभोर किया। वहीं बच्चों को संबोधित करते हुए मेजर यादव ने कहा कि इस प्रकार के कार्यक्रम निरंतर होते रहने चाहिए। जिससे प्रतिभा को अधिक सींचा जा सके। उन्होंने कहा कि किसी क्षेत्र की बोली, भाषा सीमित दायरे में न रहे।
इसका आदान – प्रदान जनपद और खण्ड स्तर पर भी किया जाना चाहिए। ताकि बच्चे अन्य भाषाओं से भी परिचित हो सके। कार्यक्रम में निदेशक एआरटी सीमा जौनसारी ने कहा की ऐसे कार्यक्रम बच्चों में लोकसंस्कृति के प्रति सम्मान की भावना पैदा करने के साथ ही प्रतिभावान छात्रों को बेहतरीन अवसर भी देते हैं।
वहीं अपर निदेशक एससीईआरटी डॉ आरडी शर्मा ने कहा कि इस प्रकार के कार्यक्रम बच्चों को अपनी संस्कृति से जोड़ने में कारगर साबित होंगे। वहीं कार्यक्रम समन्वयक कैलाश डंगवाल ने बताया कि राज्य के सभी विद्यालयों में एक दिवसीय मातृभाषा उत्सव का आयोजन किया गया। जिसके बाद खण्ड और जनपदीय स्तर पर चयनित प्रतिभागियों का राज्यस्तीय कार्यक्रम के लिए चयन किया गया है।
कार्यक्रम का संचालन गिरीश बडोनी, ओम बधानी, कामाक्षा मिश्रा, डॉ नन्द किशोर हटवाल, डॉ देवकी नंदन भट्ट और डॉ मोहन बिष्ट ने किया। इस मौके पर निदेशक माध्यमिक शिक्षा आरके कुंवर, एससीईआरटी विभागाध्यक्ष प्रदीप रावत, संयुक्त निदेशक आशा रानी पैन्यूली, उप निदेशक रायसिंह रावत, एनसीईआरटी दिल्ली से डॉ निधि, डॉ उमेश चमोला, हरीश बडोनी, सचिन नौटियाल, शिव प्रकाश वर्मा, डॉ ऊषा कटियार, डॉ रमेश पंत, डॉ आलोक प्रभा पांडे, सोहन नेगी, डॉ हरीश जोशी, अखिलेश डोभाल, मनोज शुक्ला, देवराज राणा, राकेश जुगरान, सुरेंद्र आर्यन, डॉ साधना डिमरी, देवेंद्र दत्त भट्ट, शशि भूषण मैखुरी, मनोज बहुगुणा, रविदर्शन तोपाल, शैलेंद्र अमोली, शिवानी राणा, डॉ अनूप कठैत और संदीप ढौंडियाल आदि तमाम लोग मौजूद रहे।
कार्यक्रम में लोकभाषा पर आधारित तीन पुस्तकों का विमोचन किया गया। डायट पौड़ी की ओर से डॉ महावीर कलेठा और जगमोहन कठैत के संपादन में आंगनबाड़ी से कक्षा पांच तक की गढ़वाली पुस्तक का विमोचन किया गया। बलबीर सिंह रावत की बंगाड़ी भाषा समाज एवं लोकसाहित्य के साथ ही जितेंद्र बहादुर मिश्र के संपादन में डायट पिथौरागढ़ की राजी भाषा, सामाजिक आर्थिक एवं शैक्षिक सरोकार पुस्तक का विमोचन किया गया।