पुरखों की संजो कर रखी कूड़ी-पुंगड़ियों को आबाद करने को लौटें गांव

पुरखों की संजो कर रखी कूड़ी-पुंगड़ियों को आबाद करने को लौटें गांव
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डा. मंजू भंडारी।

देवभूमि उत्तराखंड का एक-एक गांव किसी तीर्थ से कम नहीं है। यहां के गांव पुरूषार्थ और सौहार्द के पर्याय रहे हैं। मगर, हाल के सालों में पुरूषार्थ और सौहार्द के तीर्थ रूपी सैकड़ों गांव घोस्ट विलेज का तमगा पा चुके हैं। मारे पलायन अधिकांश गांव इस ओर अग्रसर भी है।

पहाड़ में गांवों की आदर्श व्यवस्था को प्रख्यात लोक गायक नरेंद्र सिंह नेगी ने अपने गीत में शानदार तरीके से उकेरा है। गीत की एक-एक पंक्ति स्पष्ट करती है कि देवभूमि उत्तराखंड का एक-एक गांव तीर्थ से कम नहीं हैं। अब इन तीर्थ रूपी गांवों को बचाने की जरूरत है।

पुरखों द्वारा पुरूषार्थ की निशानी के तौर पर संजो कर रखी गई कूड़ी पुंगड़ियों को आबाद करने की जरूरत है। इसके लिए गांव लौटना होगा। सेल्फी के लिए नहीं बल्कि पुरूषार्थ और सौहार्द के तीर्थों को आबाद करने के लिए। ये बात किसी से छिपी नहीं है कि उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्र पलायन से कराह रहे हैं। सैकड़ों गांव को घोस्ट विलेज यानि आबादी शून्य गांव की श्रेणी में आ गए हैं।

मारे पलायन के अधिकांश गांव इस दिशा की ओर अग्रसर हैं। ये चिंता की बात हैं। गांव गोठयार की पहचान खूंटे अब ढूंढे नहीं मिल रहे हैं। खेती किसानी का भी यही हाल हो गया है। कभी संपन्नता के प्रतीक खलिहान बांझा पड़ने लगे हैं। ये आज की पीढ़ी पर सवाल भी खड़े करता है।

दरअसल, गांवों से पालयन की वजह से आबादी विहीन होना इस बात का प्रमाण है कि हम बुजुर्गों की संजोकर रखी गई सामाजिक पूंजी के संरक्षण के लायक नहीं हैं। जो गांव अमीरी के बजाए संपन्नता के प्रतीक थे वो आज उजड़ रहे हैं। दूध, दही मक्खन ,औषधि युक्त रसोई ,खेतों में प्राकृतिक अन्न , आपस में प्यार प्रेम रीति रिवाज बहुत ही खूबसूरत संस्कृति से भरे गांव समाप्त हो रहे हैं।

गांवों का समाप्त होना मकान, खेत और खलिहानों तक ही सीमित नहीं है। बल्कि सांस्कृतिक विरासरत का मामला है। ये चाछड़ी व चौफ़ला की गूंज और उसके बाद तिलगुल बांटना आपस में हंसी ठिठोली और स्वस्थ परंपराओं का समाप्त होना भी है।

वैश्विक महामारी कारोना के वक्त गांव रूपी तीर्थ की चिंता को राजाश्रय मिला है। इस पर और गौर किया जाना चाहिए। ताकि विभिन्न वजहों से गांव छोड़ चुके लोग गांव से भावानात्मक तौर पर तो कम से कम जुड़े रहें। मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल में एक अपना गांव अपना तीर्थ लेकर सम्मेलन हुआ जिसमें अपने गांव अपने तीर्थ लौटने की बातें हुई और उत्तराखंड से हो रही पलायन पर चिंता व्यक्त की गई।

हाल ही में राजकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय उत्तरकाशी में पूर्व छात्रों सम्मेलन में देश भर में फैले पूर्व छात्र जुटे। सभी ने एक स्वर में गांव लौटने या गांव से हर तरह से जुड़े रहने  की बात कही। । ये अच्छी पहल है और इसे समय-समय पर किया जाना चाहिए।

राज्य सरकार भी समय-समय पर पलायन रोकने को प्रोत्साहन करती रहती है। हाल ही में कोरोना जैसी महामारी के समय युवाओं के रोजगार छिन जाने से सरकार ने होमस्टे, मौन पालन, लघु कुटीर उद्योग, मत्स्य पालन, बागवानी ,कृषि आदि योजनाओं में सब्सिडी दी और बड़ी संख्या में युवाओं को लाभ भी हुआ,कुछ रुके रहे कुछ फिर से अपने कार्य स्थलों को लौटे। देखा जा रहा है कि लोग लौटने की पहल कर रहे हैं ये अच्छा संकेत है।

                                                                                                                              लेखिका गवर्नमेंट डिग्री कॉलेज में प्राध्यापिका हैं।

Tirth Chetna

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