चांद तारे तोड़कर लाने का वादा करने वाले आखिर सिंगटाली मोटर पुल पर चुप क्यों ?

चांद तारे तोड़कर लाने का वादा करने वाले आखिर सिंगटाली मोटर पुल पर चुप क्यों ?
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तीर्थ चेतना न्यूज

ऋषिकेश। चुनाव के समय जनता के लिए चांद तारे तोड़कर लाने का दम भरने वाले नेता आखिर सिंगटाली मोटर पुल पर मुंह क्यों नहीं खोल रहे हैं ? आखिर नेताओं को किसकी नाराजगी का डर है। कौन है जो जनता के हितों और क्षेत्र की बेहतरी से उपर है।

उत्तराखड राज्य निर्माण के 23 साल बाद भी पर्वतीय समाज प्रेशर ग्रुप नहीं बना सका है। परिणाम पॉलिटिकल क्लास में उनके हितों की चिंता और उनकी नाराजगी का डर दूर-दूर तक नहीं दिखता। अब तो नेताओं में चुनाव हारने का डर भी नहीं रह गया है। दरअसल, उत्तराखंडी समाज राजनीतिक दलों का होकर रह गया है। इसका खामियाजा उसे कई तरह से भुगतना पड़ रहा है।

गंगा पर प्रस्तावित सिंगटाली मोटर पुल इस बात का प्रमाण है। ऑफ द रिकॉर्ड सिंगटाली मोटर पुल को लेकर कई कहानियां हैं। ये पुल प्रमाण है कि राज्य में जनता से और क्षेत्र से उपर भी किसी के हित हैं और उन हितों को राजश्रय प्राप्त है। सिंगटाली मोटर पुल अकेला नहीं है। ऐसा ही कुछ जानकी सेतु के साथ भी हुआ था। ये संयोग ही है कि 2004-05 में स्वीकृत जानकी सेतु का सबसे बूरा दौर 2007-12 का शासनकाल रहा।

तब इस पुल की फाइलों ने कई राजनीतिक नाच देखे। इस पुल का प्लस प्वाइंट ये था कि इसके लिए नरेंद्रनगर के विधायक सुबोध उनियाल झुकने का तैयार नहीं हुए। 2012 में कांग्रेस की सरकार आते ही पुल के निर्माण का रास्ता साफ हो गया था। ये पुल विशुद्ध रूप से आज कैबिनेट मंत्री सुबोध उनियाल की वजह से बना।

विकास की दृष्टि से जानकी सेतु से एक हजार गुना महत्वपूर्ण सिंगटाली मोटर पुल को मिली सांसद विधायक ने नाक का सवाल नहीं बनाया।

इसके पीछे भी कई बातें सामने आ रही हैं। वजह सिर्फ ये है कि पर्वतीय समाज ने कोई प्रेशर ग्रुप नहीं बनाया जिसकी नाराजगी से नेता डरें। यही वजह है कि चुनाव में चांद तारे तोड़कर लाने का वादा करने वाले नेता चुनाव जीतने के बाद पुल जैसी मूलभूत जरूरत पर भी मौन साध जाते हैं।

चुनाव हारने का डर भी समाप्त हो जाए और आड़े वक्त पार्टी चटटान की तरह से खड़ी हो जाए तो इतना तो बनता है न कि पार्टी के खास के हितों का ध्यान रखा जाए।

Tirth Chetna

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