संविधान दिवस और भारतीय जनमानस
डा. राखी पंचोला।
आज संविधान दिवस है। आज ही के दिन यानि 26 नवंबर 1949 को भारत गणराज्य का संविधान बनकर तैयार हुआ था। बनने/ लागू होने से अब तक संविधान बड़ा सफर तय कर चुका है। वक्त के साथ जरूरत के मुताबिक इसमें संशोधन भी किए।
संविधान लिखित नियमों की ऐसी किताब है जिसे किसी देश में रहने वाले सभी लोग सामूहिक रूप से मानते है। संविधान सर्वाेच्च क़ानून है जिससे किसी देश में रहने वाले लोगों(जिन्हें नागरिक कहा जाता है)के बीच के आपसी संबंध तय होने के साथ साथ लोगों और सरकार के बीच के संबंध भी तय होते हैं। संविधान अनेक कार्य करता है जैसे यह साथ रह रहे विभिन्न तरह के लोगों के बीच ज़रूरी भरोसा और सहयोग विकसित करता है।
यह स्पष्ट करता है कि सरकार का गठन कैसे होगा और किसे फ़ेसले लेने का अधिकार होगा। यह सरकार के अधिकारों की सीमा तय करता है और हमें बताता है कि नागरिकों के क्या अधिकार है।
यह अच्छे समाज के गठन के लिय लोगों की आकांक्षाओं को व्यक्त करता है। जिन देशों में संविधान है सभी लोकतांत्रिक शासन वाले हों यह ज़रूरी नहीं है लेकिन जिन देशों में लोकतांत्रिक शासन है वहाँ संविधान का होना ज़रूरी है।
भारत का संविधान विश्व का सर्वाधिक विस्तृत संविधान है जिसका निर्माण संविधान सभा द्वारा हुआ था।संविधान सभा में 299 सदस्य थे। संविधान सभा द्वारा 26 नवम्बर 1949 को अपना कार्य पूरा कर लिया था अतः वर्तमान में इसी दिन को 19 नवम्बर 2015 को सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय ने संविधान दिवस के रूप में मनाने के भारत सरकार के निर्णय को अधिसूचित किया।भारतीय संविधान आज भी भारतीय विचारों भारतीय मूल्यों को क्रियान्वित करने का हुनर रखता है।
संविधान सभा में देश के विभिन्न हिस्सों से लोग थे स्वयं तत्कालीन कांग्रेस के अंदर कई राजनीतिक समूह और विचार धारा के लोग थे।सभा में सभी समूह, जाति,वर्ग, धर्म और पेशों की लोग थे।और अंततः संविधान सभा ने जिस तरह कार्य किया उसने संविधान को पवित्रता और वैधता दी।
संविधान आज भारतीयसमाज की बुनियादी पहचान है। संविधान द्वारा ही आधिकारिक बंधन लगा कर यह तय किया कि कोई क्या कर सकता है और क्या नहीं।डॉ अंबेडकर के अनुसार अपने राजनीतिक लोकतंत्र को हमें सामाजिक लोकतंत्र का रूप भी देना चाहिय। बिना सामाजिक लोकतंत्र के राजनीतिक लोकतंत्र सफल नहीं हो सकता।
ठस प्रकार भारत का संविधान एक विलक्षण दस्तावेज है जो अन्य देशों जैसे दक्षिण अफ्रीका के लिय एक प्रतिमान हो गया। राष्ट्र प्रेम यदि संविधान पर विश्वास के साथ स्थापित हो जाय तो ये अखंड भारत की प्रगति का मार्ग हो सकता है।
लेखिका उच्च शिक्षा में प्राध्यापिका हैं।