उच्च शिक्षाः धन्य हैं प्राध्यापक जो पढ़ाने का समय निकाल रहे हैं
तीर्थ चेतना न्यूज
ऋषिकेश। उच्च शिक्षा के प्राध्यापक धन्य हैं। धन्य छात्र/छात्राएं भी हैं कि वो तमाम जन जागरूकता के कार्यक्रमों में सक्रिय भौतिक उपस्थिति के बाद पढ़ाने और पढ़ने का समय निकाल रहे हैं।
पिछली सदी के सातवें/आठवें दशक में रोडवेज की बसों के बारे में एक मजाक होता था कि बस में हॉरन के अलावा सबकुछ बजता है। ऐसा ही कुछ अब सरकारी स्कूल/कॉलेजों के बारे में भी बोला जाने लगा है।
पहले बुनियादी शिक्षा के शिक्षक शिक्षेणेत्तर कार्यों में उलझाए गए। उसके बाद माध्यमिक और अब हायर एजुकेशन में भी ऐसा ही दिखने लगा है। उच्च शिक्षा से जुड़े गवर्नमेंट कॉलेजों में जन जागरूकता के इतने कार्यक्रम हो रहे हैं कि सवाल उठने लगा है कि प्राध्यापक पढ़ाने और छात्र/छात्राएं कक्षा में पढ़ने का समय कब निकाल पाते होंगे।
यदि प्राध्यापक पढ़ाने से इत्तर कार्यों को गाइड लाइन के मुताबिक अंजाम देने के बाद क्लास के लिए समय निकाल पा रहे हैं तो वो वास्तव में धन्य हैं। धन्य छात्र/छात्राएं भी हैं। माना जा सकता है कि उच्च शिक्षा में क्रांतिकारी बदलाव के कोंपले फूटने लगी हैं।
हालांकि जो कुछ सूचनाएं मिल रही है वो ये है कि छात्र/छात्राएं कॉलेज में जन जागरूकता से संबंधित अत्यधिक कार्यक्रमों से अब उकताने लगे हैं। कई कार्यक्रमों को कराने के लिए प्राध्यापकों को छात्र/छात्राएं जुटाना मुश्किल हो जाता है।
कार्यक्रम की सूचना पुख्ता है इसे साबित करने के लिए जीपीएस युक्त फोटो की दरकार भी हो रही है। इससे उच्च शिक्षा में भी बतर्ज बुनियादी शिक्षा जैसा अविश्वास का माहौल बन रहा है। हैरानगी की बात ये है कि उच्च शिक्षा के बड़े-बड़े पदनामधामी इस पर मुंह खोलने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहे हैं।
ये हालात किसी एक राज्य के नहीं हैं। तमाम राज्यों से इस प्रकार की सूचनाएं हैं। बहरहाल, इससे उच्च शिक्षा किस तरह से प्रभावित हो रही है इसे विस्तार से जानने के लिए पढ़ते रहें तीर्थ चेतना।