अतिक्रमण ने बिगाड़ी तीर्थनगरी ऋषिकेश की सूरत

सड़कों पर चलना हो रहा मुश्किल, अतिक्रमणकारियों के हौसले बुलंद
तीर्थ चेतना न्यूज
ऋषिकेश। देहरादून, पौड़ी और टिहरी जिले की सीमा का सामूहिक स्थल तीर्थनगरी ऋषिकेश की सुंदरता पर अतिक्रमण टाट का पैबंद साबित हो रहा है। सिस्टम अतिक्रमण हटाने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहा है। परिणाम यहां की सड़कों पर चलना मुश्किल हो रहा है। राजनीतिक ऑक्सीजन से अतिक्रमणकारियों के हौसले बुलंद हैं।
तीर्थनगरी ऋषिकेश में तीन जिलों का प्रशासन सक्रिय है। बावजूद इसके एक-एक हिस्सा अतिक्रमण से कराह रहा है। अधिकांश अतिक्रमण सड़कों, गंगा, और सार्वजनिक स्थानों के किनारे हुआ है और हो रहा है। देहरादून जिले वाले ऋषिकेश की तो मारे अतिक्रमण सांसे उखड़ने लगी हैं।
से सांसद/विधायक चुने गए नेता 22 साल में ऋषिकेश में एक पार्किंग नहीं बना सकें। इसका असर ऋषिकेश में कई तरह से दिखता है। यहां सड़कें मारे अतिक्रमण के संकरी हो रही हैं। अतिक्रमण इस कदर है कि छोटी सरकार के बूते इसे हटाना संभव नहीं है।
जिन सरकारी विभागों की भूमि पर कब्जे हुए हैं वो इसे हटाने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहे हैं। कोर्ट के दिशा निर्देशों का भी खास असर नहीं दिख रहा है। इसी स्थिति टिहरी जिले के ऋषिकेश यानि मुनिकीरेती और तपोवन नगर निकाय क्षेत्र में भी है।
पौड़ी जिले के स्वर्गाश्रम नगर निकाय क्षेत्र भी अतिक्रमण से कराह रहा है। यहां प्रशासन जी-20 सम्मेलन के कुछ आयोजन की तैयारी कर रहा है। मगर, अतिक्रमण पर बड़े-बड़े अधिकारी मुंह खोलने को तैयार नहीं हैं।
अजीब बात ये है कि राज्य गठन के बाद देहरादून, हरिद्वार, हल्द्वानी आदि क्षेत्रों में अतिक्रमण हटाया गया। हो हल्ला भी हुआ। मगर, ऋषिकेश में कभी अतिक्रमण हटाओे अभियान परवान नहीं चढ़ा। इसको लेकर सवाल भी उठते रहे हैं। सवालों को अतिक्रमण के हिमायमी कभी गरीबी तो कभी रोजगार के नाम पर कुंद करते रहे हैं।
अब अतिक्रमण में वोटों की फसल भी लहला रही हैं। ऐसे में राजनीतिक व्यवस्था तो शायद ही अतिक्रमण पर मुंह खोले। अधिकारी तो कई सालों से नक्शा-नक्शा खेल रहे हैं।