पर्यावरण संरक्षण को स्कूल से शुरू हों प्रयास
डा. किशोर सिंह चौहान।
तेजी से छीजती आदर्श पर्यावरणीय परिस्थितियों को बचाने के लिए स्कूलों से प्रयास होने चाहिए। ताकि देश को पर्यावरण की गंभीरता को समझने और इसके संरक्षण के अभ्यस्त समाज का निर्माण हो सकें।
जुलाई और अगस्त माह में प्रत्येक विद्यार्थियों के द्वारा विद्यालय परिसर एवं अपने घर आंगन तथा पार्काे में वृक्षारोपण किया जाना चाहिए और उन रोपित पौधों का पांच वर्षों तक विद्यार्थियों के द्वारा संरक्षण भी किया जाना चाहिए। ताकि एक पौधा पेड़ का रूप में विकसित हो सकें।
वर्ष 2009 में नेशनल फॉरेस्ट स्टूडेंट कांसेप्ट दिया गया था। इसमें प्रत्येक विद्यार्थी को पांच पौधों का रोपण करने की बात कही गई थी। छात्र/छात्राओं द्वारा रोपित पौधों का पांच वर्षों तक संरक्षण भी इस कंसेप्ट का हिस्सा था। इस कंसेप्ट को भारत सरकार के एनसीईआरटी एवं भारत के समस्त राज्यों के मुख्यमंत्रियों प्रधानमंत्री तथा राष्ट्रपति को ज्ञापन के माध्यम से इस विषय को पाठ्यक्रम में लागू किए जाने के लिए निरंतर प्रयास किया जाता रहा है।
गवर्नमेंट पीजी कॉलेज, कोटद्वार में नेशनल फॉरेस्ट स्टूडेंट्स एनएफएस गैर सरकारी गैर राजनीतिक महाविद्यालय के छात्रों के संगठन का गठन किया गया। जिसके माध्यम से वर्ष 2011 से जुलाई अगस्त माह में निरंतर पौधा रोपे जाते हैं ,और उन रोपित पौधों को छात्र छात्राओं के द्वारा पांच वर्षों तक संरक्षण किया गया है ।
ऐसे छात्र छात्राओं को नेशनल फॉरेस्ट टूडेंट एनएसएस का प्रमाण पत्र डीएफओ, एसडीएम और प्राचार्य के हस्ताक्षर से प्रमाणपत्र दिए जाते हैं। कोटद्वार कॉलेज में इसका एक मॉडल विकसित किया जा चुका है। कॉलेज में पर्यावरण संरक्षण का माहौल बना है। छात्र/छात्राएं हर स्तर पर इसे कई तरह से फॉलो भी कर रहे हैं।
अच्छी बात ये है कि एनसीईआरटी ने इसे पाठ्यक्रम में लागू कर दिया है। अन्य राज्यों ने भी पर्यावरण संरक्षण को विभिन्न तरह से स्कूल और कॉलेजों के पाठयक्रम में शामिल कर दिया गया है। आगामी जुलाई अगस्त माह से उत्तराखंड राज्य में भी श्री देव सुमन विश्वविद्यालय एवं कुमाऊं विश्वविद्यालय के अंतर्गत आने वाले सभी महाविद्यालयों में यह कार्यक्रम लागू किए जाने की संभावना है।
इस वर्ष मई माह में रुड़की स्वामी विवेकानंद एजुकेशन कॉलेज ने भी इसकी शुरूआत की है। इस कंसेप्ट को हर स्तर पर पसंद किया जा रहा है। हां, इसे धरातल पर उतारने की जरूरत है। यदि ऐसा होता है पर्यावरण संरक्षण में इसका व्यापक असर देखने को मिलेंगे।
स्कूल में जब छात्र/छात्राएं पांच साल स्वयं के रोपे गए पौधे की देखभाल करेंगे और उसे पेड़ के रूप में आकार लेते हुए देखेंगे तो उनका नजरिया बदलेगा। इसके साथ ही पर्यावरण की गंभीरता को समझने और इस पर विचार रखने वाले पीढ़ी तैयार होगी। इस पीढ़ी से उम्मीद की जा सकती है कि वो तेजी से छीज रही परिस्थितियों को समझेगी और इस दिशा में गंभीरता से काम करेगी।
इसका असर समाज पर भी व्यापक तौर पर दिखेगा। पर्यावरण संरक्षण धरातल पर दिखेगा। छीजते पर्यावरण से दिखने वाले प्रतिकूल असर कम होंगे।
लेखक गवर्नमेंट कॉलेज में प्राध्यापक हैं।