चुनाव में हार का डर नहीं, तो जनता किस खेत की मूली

चुनाव में हार का डर नहीं, तो जनता किस खेत की मूली
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उत्तराखंड में जनप्रतिनिधियों में बढ़ रहा अभिमान, मरखोडया बन रहे नेता

तीर्थ चेतना न्यूज

ऋषिकेश। नेताओं की जान वोट में बसती है। वोट जनता का है। जनप्रतिनिधियों का जनता के साथ दिखने, खड़े होने और जनका को जनार्दन मानने की यही वजह है। अब जब नेता के भीतर से चुनाव में हार का डर समाप्त हो जाए तो जनता किसी खेत की मूली। उत्तराखंड में कुछ-कुछ ऐसा ही होता दिख रहा है।

पिछले कुछ सालों में दिख रहा है कि हवा/नारों और खास चेहरे की वजह से चुनाव जीतने वाले कुछ नेता अतिअभिमानी हो गए हैं। बगैर पसीने बहाए और बगैर मेहनत के चुनाव जीत जाने की वजह उनकी ऐरोगेंसी चरम पर पहुंच गई है। इस ऐरोगेंसी की जद में अब जनता जनार्दन आ रही है।

चुनाव में शर्तिया जीत का ही परिणाम है कि अब ऐसे जनप्रतिनिधियों के व्यवहार से साफ झलता है जैसे वो बोल रहे हों कि जनता किस खेत की मूली होती है। ऐसा दिख भी रहा है और नेताओं के क्लोज में देखा भी जा सकता है। कुछ नेताओं की ऐरोगेंसी अब इतनी बढ़ गई है कि वो मरखोडया बन गए हैं।

मरखोडया ऐसा इकनडया प्राणि जो बिना वजह किसी पर भी हमला कर दे। उसके हमले का विश्लेषण करने वाले इतना स्थान छोड़ देते हैं कि हमला करना उसकी मजबूरी ठहराया जा सकें। ठहराने वाले तो पीटने वाले को हमले का असली कारण भी साबित कर देते हैं। असली हमला करने वाला अन्य में आ जाता है।

ऐसे मरखोडया नेताओं को प्रश्रय देने वाले राजनीतिक दल भी सवालों के घेरे में हैं। सोशल मीडिया में ऐसे मरखोडया नेताओं की एडवोकेसी समाज पर भी सवाल खड़े करता है। हर गलत काम के बाद ऐसे नेता स्वयं को सांस्कारित संगठन से जोड़कर प्रस्तुत कर देते हैं। संगठन भी ऐसे नेताओं को सेफ पैसेज उपलब्ध कराने में पीछे नहीं रहते।

Tirth Chetna

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