संस्कृत साहित्य में विज्ञान पर दो दिवसीय संगोष्ठी शुरू

संस्कृत साहित्य में विज्ञान पर दो दिवसीय संगोष्ठी शुरू
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ऋषिकेश। संस्कृत साहित्य में विज्ञान विषय पर दो दिवसीय संगोष्ठी शुरू हो गई। इसमें आठ राज्यों के 11 विश्वविद्यालयों के प्राध्यापक शिरकत कर रहे हैं।

राज्य शैक्षिक अनुसंधान एवं प्रशिक्षण परिषद उत्तराखण्ड के बैनर तले जयराम आश्रम में आयोजित संगोठी का संस्कृत विश्वविद्यालय, हरिद्वार के कुलपति प्रो. देवी प्रसाद त्रिपाठी ने बतौर मुख्य अतिथि शुभारंभ किया। इस मौके पर उन्होंने कहा भारत प्राचीन काल से ही ज्ञान की भूमि रहा है।

यहाँ ज्ञान की गंगा वैदिक काल से बहती चली आ रही है। वेद शब्द का अर्थ ज्ञान होता है। भारत प्राचीनकाल से ही वेद अर्थात ज्ञान का उपासक रहा है। नालन्दा और तक्षशिला जैसे विश्वविद्यालय यहाँ अपार ज्ञान के केन्द्र रहे हैं।

वर्तमान समय में संस्कृत ग्रन्थों में निहित विज्ञान को उजागर कर आमजन तक पहुंचाये जाने की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि पायथागोरस से कई वर्ष पहले बोधायन ने गणित की महत्वपूर्ण प्रमेय दी थी। इसी तरह आर्यभट ने पांचवीं शताब्दी में ही परिधि और व्यास के सम्बन्ध को दशमलव के चार स्थानों तक शुद्ध मान के रूप में प्रस्तुत किया था जिसे वर्तमान में पाई के रूप में जाना जाता है।

उद्घाटन सत्र की अध्यक्षता करते एससीईआरटी के अपर निदेश डॉ. आर.डी. शर्मा नें आशा व्यक्त की कि इस दो दिवसीय सेमिनार में किया गया विचार मंथन शिक्षा जगत को नईं दिशा देने में सफल सिद्ध होगा। उन्होंने कहा कि संस्कृत भाषा को वर्तमान समय में रोजगार से जोड़े जाने की आवश्यकता है जिससे नईं पीढ़ी का संस्कृत विषय के प्रति रूझान बढ़ेगा। उन्होंने संस्कृत विषय को प्रोत्साहित तथा इसमें निहित ज्ञान के प्रसार के लिए अनुवादकों को भी प्रोत्साहित किये जाने की आवश्यकता भी व्यक्त की।

विभागाध्यक्ष पाठयक्रम एवं अनुसंधन प्रदीप रावत ने कहा कि संस्कृत के बारे में आम धारणा है कि यह कर्मकाण्ड की भाषा है। किन्तु संस्कृत वांगमय के अध्ययन से पता चलता है कि संस्कृत आध्यात्म के साथ-साथ वैज्ञानिक ज्ञान की भी स्रोत है। उन्होंने कहा कि षड़दर्शनों के अन्तर्गत न्याय दर्शन में सत्य की पहचान के बारे में उल्लेख किया गया है।

विमानशास्त्र का उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा कि महर्षि भारद्वाज द्वारा लिखित यंत्र सर्वस्व जैसे ग्रन्थों में वर्णित ज्ञान को नईं पीढ़ी तक पहुंचाया जाना जरूरी है। रावत ने कहा कि संस्कृत भाषा को सामान्य बोलचाल की भाषा बनाये जाने तथा विद्यालय में शिक्षकों और विद्यार्थियों के बीच संस्कृत भाषा में संभाषण किये जाने की आवश्यकता है।

संस्कृत किसी जाति या धर्म विशेष की भाषा न होकर अपने में व्यापक दृष्टिकोण वाली भाषा है। उन्होंने संस्कृत भाषा के विकास, प्रसार एवं शोध के लिए अंग्रेजी के साथ इस भाषा के सामंजस्य बैठाये जाने की भी आवश्यकता जाहिर की। उद्घाटन सत्र का संचालन कार्यक्रम के समन्वयक डॉ. शशिशेखर मिश्रा द्वारा किया गया तथा कार्यक्रम के मंगलाचरण के रूप में डॉ. उषा कटियार ने संस्कृत में शारदे वंदना प्रस्तुत की।

उद्घाटन सत्र के बाद पांच सत्रों में विशेषज्ञों के द्वारा शोध पत्र प्रस्तुत किये गये। प्रथम सत्र में संस्कृत साहित्य में गणित विषय पर डॉ. मुस्तफीजुर्रहमान तथा सुनील कुमार रतूड़ी ने शोध पत्र प्रस्तुत किये। इस सत्र की अध्यक्षता डॉ. पतंजलि मिश्र असिस्टेण्ट प्रोफेसर शिक्षा विद्यापीठ वर्धमान महावीर खुला विश्वविद्यालय कोटा राजस्थान ने की तथा सत्र का संचालन डॉ. साधना डिमरी द्वारा किया गया।

दूसरे सत्र में संतोष तिवारी तथा आरती सिन्हा ने संस्कृत साहित्य में संगीत विषय शोध पत्र प्रस्तुत किये। सत्र की अध्यक्षता डॉ. प्रकाश पंत असिस्टेण्ट प्रोफेसर उत्तराखण्ड संस्कृत विश्वविद्यालय हरिद्वार ने की तथा सत्र का संचालन डॉ. आरती जैन द्वारा किया गया।

तीसरे सत्र में संस्कृत साहित्य में विमानशास्त्र तथा विमान वर्णन विषय पर कार्तिक शर्मा तथा डॉ. हरिशंकर डिमरी ने शोध पत्र प्रस्तुत किये। इस सत्र की अध्यक्षता डॉ. कुलदीपक शुक्ल असिस्टेण्ट प्रोफेसर दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय ने की तथा सत्र का संचालन गिरीश तिवारी द्वारा किया गया।

चौथे सत्र में डॉ. आरती जैन तथा राजीव पाँथरी ने संस्कृत साहित्य में राजनीति विज्ञान विषय शोध पत्र प्रस्तुत किये। सत्र की अध्यक्षता डॉ. फिरोज असिस्टेण्ट प्रोफेसर काशी हिन्दू विश्वविद्यालय वाराणसी ने की तथा सत्र का संचालन श्री सोहन सिंह नेगी द्वारा किया गया।

अन्तिम सत्र में संस्कृत साहित्य में कृषि विज्ञान विषय पर डॉ. नीलेश कुमार ने शोध पत्र प्रस्तुत किया। इस सत्र की अध्यक्षता डॉ. विजय शंकर द्विवेदी  ने की तथा सत्र का संचालन डॉ. शशिशेखर मिश्र द्वारा किया गया।

डॉ. शैलेष तिवारी विभागाध्यक्ष व्याकरण उत्तराखण्ड संस्कृत विश्वविद्यालय हरिद्वार द्वारा संस्कृत साहित्य में संगीत विषय पर अपने विचार व्यक्त किये।

इस अवसर पर डॉ. उमेश चमोला, डॉ. राकेश गैरोला, डॉ. संजीव चेतन, डॉ. अनिल मिश्र, शिव प्रकाश वर्मा, के.एस. नेगी भी उपस्थित थे।

Tirth Chetna

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