सुनीता चौहान की पुस्तक पहाड़ के उस पार’ और ’बरखा रानी का विमोचन

सुनीता चौहान की पुस्तक पहाड़ के उस पार’ और ’बरखा रानी का विमोचन
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देहरादून। लेखिका सुनीता चौहान की पुस्तक पहाड़ के उस पार और बरखा रानी का यहां एक कार्यक्रम में विमोचन किया गया। साहित्यकार अतिथियों ने पुस्तक की विषय वस्तु से लेकर इसके प्रस्तुतिकरण की सराहना की।

रविवार को  विश्व हिंदी दिवस की पूर्व संध्या पर आयोजित एक कार्यक्रम विकासनगर के विधायक मुन्ना सिंह चौहान, पद्मश्री लीलाधर जगूड़ी समीक्षक एवं साहित्यकार डॉ. नन्दकिशोर हटवाल आदि ने पुस्तक का विमोचन किया। इस मौके पर विधायक चौहान ने कहा कि बच्चे के चेहरे में यदि मुस्कराहट ले आए तो समझिए आपने ईश्वर का साक्षात् कर लिया।

कहा कि बच्चों के साथ धैर्य , समर्पण और सकारात्मकता की आवश्यकता है। आज समाज को मशीन बना दिया गया है। उन्होंने फिनलैण्ड का उदाहरण देते हुए कहा कि वे बच्चों को पूरा बालपन जीने का अवसर तो दें।

साहित्यकार डा. नंद किशोर हटवाल ने कार्यक्रम में पुस्तक की सारगर्भित समीक्षा प्रस्तुत की। उन्होंने कहा कि पहाड़ के उस पार उपन्यास महिला के संघर्ष की कहानी है। उन्होंने सुनीता चौहान का शोर से परे चुपचाप साहित्य साधना में लीन लेखिका बताया।

एसोसिएट प्रो. मधु थपलियाल ने पाठकीय टिप्पणी देते हुए कहा कि पुस्तक के प्रति आकर्षण तभी बढ़ता है जब वह चित्र खींच पाने में मदद करती है। लेखिका एवं कवयित्री सुनीता सौम्य और सादगी से भरी हैं । यह उनकी रचनाओं में भी आता है। उन्होंने बरखा रानी की कहानियों पर भी चर्चा की।

साहित्यकार कान्ता घिल्डियाल जी ने सुनीता जी कृत कविता का पाठ किया। एक दिन फिर लौटेगा दादी – नानी के किस्से कहानियों का घोड़ा का वाचन श्रोताओं को खूब पसंद आया ।

पदमश्री लीलाधर जगूडी जी ने कहा कि होने के बाद जो होता है वही अनुभव है। पाठक ही कल के लेखक हैं । साहित्य की जिम्मेदारी है मनुष्य को बेहतर बनाना है। साहित्य भी मनुष्य के हित में ले जा सकता है। साहित्य में बहुत ऐसा होता है जो यथार्थ मे नहीं होता।

साहित्य हमेशा अपना काम करता है। हर लेखक को अपने बचपन का एक टुकड़ा अपनी जेब में रखना चाहिए । आप बचपन को दोहरा नहीं सकते । आप बुढ़ापे में अपने बचपन को याद कर सकते । किसी ने कहा भी है कि एक जीवन जीने के लिए काफी नहीं है।

उन्होंने कहा कि अंग्रेज़ी और फ्रैंच का समृद्ध परिवेश एक दिन में नहीं हुआ। भाषाएँ दूसरी भाषाओं से भी समृद्ध होती हैं । हमें भाषा को समृद्ध करना चाहिए । नए शब्दों को शामिल करना चाहिए । एक बड़ा लेखक वही है जो अन्तिम समय तक स्वयं को शुरुआती लेखक समझता रहे ।

Tirth Chetna

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