संस्कृत के विकास को बनें ठोस नीति:संस्कृत प्रोत्साहन समिति
संस्कृत प्रोत्साहन समिति ने की संस्कृत शिक्षा विभाग की समीक्षा
तीर्थ चेतना न्यूज
देहरादून। देवभूमि उत्तराखंड में संस्कृत के विकास के लिए ऐसी ठोस नीति बनायी जाय, जिससे सभी को लाभ मिल सके और लोग संस्कृत को सहज भाव से पढ सकें।
ये कहना है उत्तराखंड विधान सभा की संस्कृत प्रोत्साहन समिति के सभापति भरत चौधरी का। चौधरी गुरूवार को विधान सभा में समिति की बैठक/ संस्कृत शिक्षा की समीक्षा बैठक की अध्यक्षता करते हुए बोल रहे थे। उन्होंने कहा कि संस्कृत तभी ही जन-जन तक पहुंच सकती है जब इसका उपयोग सहज हो।
समिति के सभापति भरत चौधरी ने विभागीय अधिकारियों को निर्देश दिये कि संस्कृत विनियम 2023 के अनुसार समस्त पदों में नियुक्ति शीघ्र की जाय। अनुदानित संस्कृत विद्यालयों का प्रान्तीय करण की सम्भावना को तलाशा जाय। उत्तराखण्ड की समस्त प्रतियोगी परीक्षाओं में संस्कृत के प्रश्नों को सम्मिलित किया जाय।
हाईस्कूल व इण्टर कालेज में भाषा के साथ साथ एल टी व प्रवक्ता संस्कृत के पद सृजन किये जांय। शासन स्तर पर संस्कृत के उन्नयन के लिए संस्कृत को विशिष्ट शिक्षा के रूप में विचार किया जाय तथा तदनुरूप नीति बनायी जाय। संस्कृत शिक्षा निदेशालय की निर्धारित भूमि पर अतिक्रमण से मुक्त कराये जाने के लिए विहित प्रक्रिया से भूमि का सीमांकन कर चिह्नित किया जाय।
बैठक में संस्कृत शिक्षा उत्तराखण्ड के निदेशक एस पी खाली ने विभाग की समस्त गतिविधि, उपलब्धि एवं वर्ष 2023-2024 की योजनाओं से सदन को अवगत कराया। बताया कि विभाग में संस्कृत की बेहतरी के लिए क्या-क्या किया जा रहा है।
सभापति भरत चौधरी की अध्यक्षता में समिति सदस्य विधायक सविता कपूर, दुर्गेश्वर लाल, भूपेशराम टमटा, किशोर उपाध्याय तथा उत्तराखण्ड संस्कृत विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो दिनेश चन्द्र शास्त्री, शासन के उपसचिव प्रदीप मोहन नौटियाल, संस्कृत शिक्षा उत्तराखण्ड के निदेशक एस पी खाली, समिति के कार्य अधिकारी नीरज कुमार गौड, देहरादून के सहायक निदेशक डॉ चण्डीप्रसाद घिल्डियाल, विधानसभा के अनुभाग अधिकारी राजेंद्र राठौर, उत्तराखण्ड संस्कृत अकादमी के शोध अधिकारी डॉ हरीशचन्द्र गुरुरानी उपस्थित रहे।