संस्कृति और प्रकृति के संरक्षण का प्रतीक है ईगास बग्वाल

संस्कृति और प्रकृति के संरक्षण का प्रतीक है ईगास बग्वाल
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डा. नीलम ध्यानी ।

उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्र के हर तीज-त्योहारों में संस्कृतिक के साथ ही प्रकृति के संरक्षण और संवर्द्धन का तत्व मौजूद रहता है। ईगास बग्वाल भी उत्तराखंड का ऐसा ही एक त्योहार है। इसके मनाए जाने के पीछे तमाम मान्यताएं हैं। अलग-अलग तौर तरीके भी है। मगर, इसमें संस्कृति और प्रकृति का संरक्षण की बात समान रूप से शामिल है।

दीपावली के ठीक 11 दिन बाद उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्र में ईगास बग्वाल आती है। इसे भी दीपावली की तरह से ही मनाया जाता है। हां, इसमें पटाखों का धूम धड़का की जगह सांस्कृतिक गंभीरता ले लेती है। इसमें भैलों की अधिक मान्यता है। कहा जाता है कि दीप पर्व दीपावली ईगास बग्वाल के दिन ही पूरी होती है।

ईगास बग्वाल को लेकर तमाम मान्यताएं समाज में प्रचलित हैं। बताया जाता है कि श्रीराम के 14 वर्ष के वनवास के बाद अयोध्या लौटने की सूचना हिमालय में 11 दिन बाद पहुंची। भगवान श्री राम के वन से लौटने की खुशी में पर्वतीय क्षेत्र में ईगास बग्वाल मनाई जाती है।

एक और मान्यता के मुताबिक इस दिन वीर माधो सिंह भंडारी के नेतृत्व में गढ़वाल की सेना, तिब्बत का युद्ध जीतकर लौटी थी। इसी खुशी में ईगास बग्वाल का पर्व मनाया जाता है। इसके अलावा ये भी मान्यता है कि हरिबोधनी एकादशी यानी ईगास पर्व पर श्रीहरि शयनावस्था से जागृत होते हैं। इस दिन विष्णु की पूजा का विधान है।

इन सब मान्यताओं से इत्तर देखें तो ईगास बग्वाल में भैलों खेलने का खास महत्व होता है। पटाखों की धूम धड़ाक के भैलो खेलने की परंपरा है। खासकर बड़ी बग्वाल के दिन यह मुख्य आकर्षण का केंद्र होता है। भैला चीड/ भीमल ़ की लकड़ी और रस्सी से तैयार किया जाता है।

इसके बाद भैलों को खास तरीके से घुमाया जाता है। लोगों के बीच मान्यता है कि इससे धन धान्य की देवी मां लक्ष्मी सभी के कष्टों को दूर करने के साथ सुख-समृद्धि देती है। भैलो खेलते हुए कुछ गीत गाने, व्यंग्य-मजाक करने की परंपरा भी है।

इसके अलावा इस दिन पर घर के गौवंश की पूजा की जाती है। इन सब मान्यता के अलावा ईगास बग्वाल उत्तराखंड की संस्कृति और प्रकृति के संरक्षण और संवर्द्धन का प्रतिनिधि त्योहार है। हाल के सालों में समाज इसको लेकर खासा जागरूक हुआ है। अच्छी बात ये है कि इसे राजाश्रय भी मिल रहा है।

इस त्योहार के बहाने सरकार ने लोगों का गांव आने का आहवान किया है। पिछले कुछ सालों में इसका असर भी देखने को मिल रहा है। उम्मीद है कि इससे गांव सरसब्ज होंगे।

                                                                                                                                लेखिका गवर्नमेंट कॉलेज में प्राध्यापिका हैं।

Tirth Chetna

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