हिंदी को बेचारगी के खोल से बाहर निकालेगी नई शिक्षा नीति 2020

हिंदी को बेचारगी के खोल से बाहर निकालेगी नई शिक्षा नीति 2020
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हिंदी दिवस पर विशेष

डा. नीलम ध्यानी ।

समाज में अंग्रेजी और अंग्रेजीयत के बढ़ते चलन से बेचारगी की खोल में लिपटी राजभाषा हिंदी को उसका असली रसूख हासिल होने वाला है। ऐसा संभव होगा नई शिक्षा नीति 2020 के सही तरीके से धरातल पर उतरने से। दरअसल, नई शिक्षा नीति में राजभाषा आयोग की भारतीय भाषाओं के ज्ञान और सीखने की सिफारिश को प्रभावी ढंग से शामिल किया गया है।

हर वर्ष हिंदी दिवस पर हिंदी की बेचारगी को लेकर चर्चाएं होती हैं। ये चर्चाएं अब रश्म अदायगी भी बन चुकी हैं। हर मंच पर हिंदी को लेकर ऐसी बात आम हो गई हैं। हालांकि राजभाषा हिंदी को लेकर कुछ चिंताएं जायज भी हैं। इसमें हिंदी को बोलने और समझने अधिसंख्य समाज, पर्याप्त बाजार के बावजूद देश में अंग्रेजी और अंग्रेजीयत का बढ़ना है। ये चिंता की बात है। इस पर समाज के स्तर से भी गौर किया जाना चाहिए।

दरअसल, देश के स्वतंत्र होते ही इस बात को महसूस भी किया जाने लगा था। यही वजह है कि 14 सितम्बर 1949 को देश की राजभाषा हिंदी और लिपि देवनागरी को मान्यता मिली। इसके बाद संवैधानिक कवच के साथ हिंदी का सफर शुरू हुआ। हालांकि अंग्रेजी और कुछ आंतरिक बातें हिंदी के रसूख को पचा नहीं पा रही थी। 1953 से 14 सितंबर को हिंदी दिवस भी मानया जाने लगा। इसको प्रभावी बनाने के लिए राजभाषा आयोग भी बना। हालांकि की संस्तुतियों पर अक्षरशः पालन कभी नहीं हुआ।

हां, शासन में अंग्रेजी को भी समानांतरण मान्यता मिल गई। इसने हिंदी को बेचारगी की ओर धकेला दिया। राजभाषा हिंदी जुबान पर तो खूब रही। मगर, रसूख अंग्रेजी हासिल करती रही। बीच के दशकों में विज्ञान और तकनीकी को अंग्रेजी से जोड़ दिया गया। समाज में ये बात घर कर गई कि अंग्रेजी से ही डॉक्टर, इंजीनियर बनना संभव है।

हिंदी या अन्य भारतीय भाषाओं में भी ऐसा संभव है का जोर देने का प्रयास भी नहीं हुआ। परिणाम हिंदी बेचारगी की खोल में लिपटती रही। नई शिक्षा नीति 2020 से खासी उम्मीद है कि इसके धरातल पर उतरने पर हिंदी बेचारगी की खोल से बाहर निकलेगी। नई शिक्षा नीति 2020 में हिंदी समेत तमाम अन्य भारतीय भाषाओं को इसका हिस्सा बनाया गया है। यानि राजभाष आयोग की मूल संस्तुति भारतीय भाषाओं के ज्ञान और सीखने की सिफारिश की गई है। नीति में इस बात पर जोर दिया गया है कि बुनियादी शिक्षा मातृ भाषा में हो।

कुल मिलाकर कहा जा सकता है कि नई शिक्षा नीति2020 में हिंदी समेत अन्य भारतीय भाषाओं को प्रभावी बनाने की व्यवस्था की गई है। यदि धरातल पर इसका अक्षरशः पालन हुआ तो हिंदी के दिन बहुरने में देर नहीं लगेगी। इससे तमाम बोलियों को भी बल मिलेगा। भारत भाषाओं के तौर पर और समृद्ध होगा। लुप्त हो रही बोलियां जी उठेंगी।

नई शिक्षा नीति में भाषा को प्रभावी बनाने के लिए हुए प्रयासों से इत्तर हिंदी को बाजार में भी खूब समर्थन मिल रहा है। विश्व अब भारत के बाजार की अनदेखी नहीं कर सकता। इस बहाने भारतीय भाषाएं और खासकर हिंदी को भी विश्व स्तर पर स्वीकार्यता हासिल हो रही है।

                                                                                                            लेखिका गवर्नमेंट पीजी कॉलेज में हिंदी की प्राध्यापिका हैं।

Tirth Chetna

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