प्रयोगों का परिणाम है शिक्षकों की वरिष्ठता का विवाद
तीर्थ चेतना न्यूज
ऋषिकेश। राज्य की स्कूली शिक्षा में शिक्षकों की वरिष्ठता का विवाद शिक्षा पर एक के बाद एक हुए प्रयोगों का परिणाम है। राज्य गठन के बाद इन विवादों को सुविधानुसार आगे-पीछे भी खूब किया गया और किया जा रहा है।
शिक्षा में प्रयोग अक्सर पाठयक्रम में बदलाव को समझा जाता है। मगर, प्रयोग शिक्षकों के पदों के साथ भी हुआ। प्रयोग करने से पहले होमवर्क नहीं किए गए। कभी सीबीएसई को कॉपी किया गया तो कभी शिक्षक संगठनों ने प्रयोग करवा दिए। अब इन प्रयोगों के निष्कर्ष सामने आने लगे हैं। जिसे शिक्षकों की वरिष्ठता विवाद के रूप में जाना/पहचाना जा रहा है।
1990/91 में सीटी संवर्ग को किस उददेश्य के लिए समाप्त किया गया कोई नहीं बता सकता। सीटी संवर्ग समाप्त करने के बाद सरकार ने जूनियर हाई स्कूल खोलने का अभियान शुरू कर दिया। जो कि विशुद्ध रूप से सीटी संवर्ग की कक्षाएं थी।
एक झटके में सीटी से एलटी हुए शिक्षकों ने तब खुशियां मनाई। मगर, अब रिटायरमेंट पर खूशियां विवाद में बदल गई। दरअसल, इससे शिक्षकों की वरिष्ठता का विवाद जरूर पैदा हो गया। पूरा विभाग विवाद को समाप्त करने का प्रयास कर रहा है। मगर, विवाद है कि सुलझ ही नहीं रहा है।
उत्तराखंड में प्राथमिक शिक्षकों का एलटी कोटे के पीछे उददेश्य क्या था/ है किसी को पता नहीं। इसकी समीक्षा भी नहीं की गई। अब स्थिति ये है मूल एलटी हाशिए पर चला गया है। आगे चलकर ये भी शिक्षकों की वरिष्ठता विवाद बनेगा।
सरकारों द्वारा वोट के लिए शिक्षा में किए गए ऐसे तमाम अन्य प्रयोग भी शिक्षकों की वरिष्ठता के मामले में विवाद पैदा कर रहे हैं। ऐसे तमाम विवादों ने शिक्षा विभाग का काम बढ़ा भी दिया और घटा भी दिया है।
अब अधिकारियों के पद पर भी एक खतरनाक प्रयोग हो चुका है। ये प्रयोग क्या गुल खिलाएगा देखते रहिए। हां, झेलेगा शिक्षक ही। शिक्षा और स्कूल तो बेचारे बन चुके हैं।