शिक्षा विभाग में मुंडारा बना तबादला सीजन
विभाग/ स्कूल का टेंशन घरों तक पहुंचा
तीर्थ चेतना न्यूज
पौड़ी। शिक्षा विभाग में शिक्षकों के तबादले सरकार से लेकर शिक्षक/शिक्षिकाओं के परिजनों के लिए किसी मुंडारे से कम नहीं हैं। विभागीय अधिकारियों से लेकर सुगम/दुर्गम में तैनात शिक्षक तबादले की प्रक्रिया से इन दिनों खासे टेंशन में चल रहे हैं।
कहने को तो राज्य में तबादला कानून लागू है। इस कानून में बहुत सी अच्छी बातें भी होंगी। कानून के जानकार इसे अच्छे से बता सकते हैंें। हां, एक आम व्यक्ति के तौर पर कहा जा सकता है कि इसमें व्याप्त घिचड़/पिचड़ के चलते कानून की अच्छाइयों नेपथ्य में चली गई हैं।
शिक्षा विभाग में मार्च से जुलाई तक का समय टेंशन पीरिएड बन गया है। इस टेंशन की जद में सुगम और दुर्गम में तैनात शिक्षक बराबर हैं। सुगम वाले को ठेठ दुर्गम में जाने और दुर्गम वाले को मनपसंद सुगम न मिलने की चिंता रहती है।
विभागीय अधिकारियों का टेंशन भी कुछ कम नहीं है। थोड़ी सी चूक और लिपिकीय त्रुटि पर विभाग ही सोशल मीडिया में निशाने पर आ जाता है। छोटे-बड़े स्तर से गुंजाइश निकालने के इशारे भी अधिकारियों की परेशानी बढ़ाते हैं। कुल मिलाकर शिक्षा विभाग में तबादले किसी टेंशन से कम नहीं है।
विभाग और स्कूलों से होता हुआ ये टेंशन घरों तक भी पहुंच रहा है। इसका असर शिक्षा पर कई तरह से दिख रहा है। स्कूलों की मॉनिटरिंग का समय प्रभावित हो रहा है। शिक्षा की गुणवत्ता वर्द्धन में दिया जाने वाला समय तबादलों की फाइलों में खप रहा है।
एलटी/प्रवक्ता पद में प्रमोशन न होने से स्थिति और भयावह हो गई है। शिक्षकों के प्रमोशन न होने से दुर्गम/सुगम में रिक्तियों पर भी असर पड़ रहा है। सुगम/दुर्गम की चालू शिक्षा सत्र में सत्रलाभ रिक्तियों को प्रभावित कर रहे हैं। पहले मॉडल और अब अटल उत्कृष्ट स्कूल के चलते शिक्षकों की नई श्रेणी बन गई है।
सुगमनुमा दुर्गम नई श्रेणी सामने आई है। अब सोशल मीडिया में इसका पोस्टमार्टम होने लगा है। प्राथमिक और जूनियर हाई स्कूलों में तबादला नए तरह की परेशानी लेकर आ रहा है। हर साल स्कूल बंद हो रहे हैं। यानि सुगम-दुर्गम का बैलेंस गड़गड़ा रहा है। तबादले से ज्यादा टेंशन पोस्टिंग का है।