उत्तराखंड में विकास से पैदा हो रही आपदाएं
तीर्थ चेतना न्यूज
ऋषिकेश। देवभूमि उत्तराखंड मंे आपदा विकास विकास से पैदा हो रही है। कहा जा सकता है कि विकास के मॉडल में अब आपदा इनबिल्ड है। इसे प्रकृति का कोप बताना ठीक नहीं है।
जी हां, ऐसा यकीन के साथ कहा जा सकता है। आप भी अपने आस-पास गौर से देखेंगे तो पाएंगे कि वास्तव में विकास से ही आपदा पैदा हो रही है। फिर ये आपदा किसी का विकास कर रही हैं। उत्तराखंड की ये स्थायी कहानी बन चुकी है।
अनियोजित विकास, विकास से निकाली जाने वाली छीजत और विकास पर अपने-अपने हिसाब से लगाए जाने वाली परखी से विकास कमजोर हो रहा है। कमजोर विकास से आपदाएं पैदा हो रही हैं। इसे प्रकृति का प्रकोप बताना ठीक नहीं है।
ऑल वेदर रोड, रेल ट्रेक के निर्माण के बाद संबंधित क्षेत्रों का भूगोल किस तरह से बदल रहा है अब बताने की जरूरत नहीं है। नदी/नालों को कब्जाने, अतिक्रमण से किस प्रकार से आपदा आ रही है ये सरकार भी अच्छे से जानती और समझती है।
कहने को ये सब विकास की गतिविधियां हैं। इन विकास की गतिविधियों से अब आपदा पैदा हो रही है। दरअसल, ये विकास अनियोजित है, अवैज्ञानिक तरीकों से हो रहा है। परिणाम हर कोई भुगत रहा है।
ऐसे विकास को प्रचारित तो किया जा सकता है। बिल्डिंग देखकर और सड़क बनते देख विकास समझने वाले ताली भी बजा देंगे और समर्थन भी करेंगे। मगर, अनियोजित और अवैज्ञानिक विकास रोज दुख देगा।
पांच साल के फ्रेम वाले सिस्टम के उपर बहुत अधिक जिम्मेदारी भी फिक्स नहीं हो पाती। इन दिनों उत्तराखंड में बारिश से जो कुछ भी नुकसान हुए हैं उसमें प्राकृतिक अपदा की हिस्सेदारी 20-25 प्रतिशत से अधिक नहीं है। शेष अनियोजित और अवैज्ञानिक विकास की है।
हां बहुत अधिक आपदाएं मिलकर फिर से विकास को पैदा कर रही है। ये विकास किसका हो रहा है? ये विकास हो रहा है विकास कार्यों में छीजत निकालने और परखी लगाने वालों का। यकीन न हो तो अपने आस-पास देख लें। कौन क्या से क्या हो गए।
बहरहाल, आपदा के निशानों को छिपाने के नाम पर हो होने वाला विकास मजबूत होता है। ऐसे विकास को आपदा दूर-दूर तक नहीं छू सकती। वास्तविक आपदा आम लोगों के हिस्से ही अधिक आती है।