मिट्टी का दुःखः मिट्टी से जुड़ी कविताएं

एक किताब
किताबें अनमोल होती हैं। ये जीवन को बदलने, संवारने और व्यक्तित्व के विकास की गारंटी देती हैं। ये विचारों के द्वंद्व को सकारात्मक ऊर्जा में बदल देती है। इसके अंतिम पृष्ठ का भी उतना ही महत्व होता है जितने प्रथम का।
इतने रसूख को समेटे किताबें कहीं उपेक्षित हो रही है। दरअसल, इन्हें पाठक नहीं मिल रहे हैं। या कहें के मौजूदा दौर में विभिन्न वजहों से पढ़ने की प्रवृत्ति कम हो रही है। इसका असर समाज की तमाम व्यवस्थाओं पर नकारात्मक तौर पर दिख रहा है।
ऐसे में किताबों और लेखकों को प्रोत्साहित करने की जरूरत है। ताकि युवा पीढ़ी में पढ़ने की प्रवृत्ति बढे। इसको लेकर हिन्दी न्यूज पोर्टल www.tirthchetna.com एक किताब नाम से नियमित कॉलम प्रकाशित करने जा रहा है। ये किताब की समीक्षा पर आधारित होगा। ये कॉलम रविवार को प्रकाशित होने वाले हिन्दी सप्ताहिक तीर्थ चेतना में भी प्रकाशित किया जाएगा।
डा. तनु आर. बाली।
अंग्रेजी साहित्य के महान कवि वर्ड्सवर्थ कहते हैं कि भावनाएं जब चरम पर हों तो उनकी परिणिति कविता के रूप में होती है। वर्ड्सवर्थ का ये कथन कल्पना पंत की कविताओं पर सटीक बैठता है। उनकी कविताएं भावोन्मुख हैं जो लगभग प्रत्येक भाव को गहराई तक छू लेती हैं। समय साक्ष्य प्रकाशन, देहरादून से प्रकाशित उनके कविता संग्रह का शीर्षक मिट्टी का दुःख पाठक के हृदय में अनगिनत प्रश्नों को उठाता है।
मिट्टी के निश्चित तौर पर असंख्य दुःख हैं जिनके प्रत्येक पहलू को उनकी कविताएं छूती हुई प्रतीत होती हैं। उनके हृदय के आवेग उनकी कविताओं में परिलक्षित होते हैं। एक माँ बेटी के कल की बेहतरी के लिए उसे बड़ा बनने, आकाश की ऊंचाई, समुद्र की गहराई और धरती के विस्तार को छूने की हिदायत देती है तो बेटी को स्वछंद रहकर आकाश को छूना है। कल्पना पंत के लिए कविता एक ऐसा आकाश है जो चट्टान के माफिक जिंदगी की जटिलताओं को जीने का साहस देती है।
“हवा में शामिल लड़कियां“ किताबों के जरिये रोशनी बन जग पर छा जाने की कवायद है। सच ही तो है एक लड़की के हाथों किताब के होने से सुंदर कुछ भी नहीं।
“पहाड़ और दादी“ पहाडी स्त्रीके जीवन की कड़वी सच्चाई का जीता जागता आइना है, कि पहाड़ी स्त्री क्यों अपनी पूरी जिंदगी अपने लिए नही जी पाती और फिर उसके हिस्से एक अंतहीन गहराई ही आती है। उनकी कविता ’देवी’ जहां एक ओर पितृसत्तात्मक समाज मे जी रही प्रत्येक स्त्री की महागाथा है वहीं ’थप्पड़ की नाप’ स्त्रियों के स्मृति पटल पर पड़ी हुई छाप को प्रतिविम्बित है। उनकी कविताओं की स्त्रियां प्रत्येक क्षण एक नई चुनौती का सामना कर रही हैं। उनकी स्त्रियां एक निरंतर चलने वाले संघर्ष में रत होने के बाबजूद भी हार नही मानती हैं और एक उम्मीद के साथ जीवन की प्रतिकूल परिस्थितियों से सामंजय बैठाने हेतु निरंतर प्रयासरत हैं।
’दंगा और मौत’ एक व्यंग्य है उन लोगों पर जो भयावह हालातों में निष्पक्ष रहकर अपने इर्द गिर्द तक ही सीमित रहते हैं और उन्मत्त भीड़ को बेपरवाह देखते हैं।
“बारिश की बूंदों की टिप टिप“ के माध्यम से कवियित्री अकेलेपन को परिभाषित करती हुयीं प्रतीत होती हैं। एक और बहुत ही गहरी कविता “स्पर्श“ एक ऐसी स्त्री के दुःख को प्रदर्शित करती है जो जीवन के संघर्षों में धंसी जाती है किंतु जीवन के प्रति प्रेम से सराबोर है।
इस कविता से ही संकलन का शीर्षक उद्घृत है जो बेहद जमीनी है और किताब को पढ़ने की तलब को दूना कर देता है। “मुझे जाना होगा“ अमेरिकन कवि रोबर्ट फ्रॉस्ट की उन प्रसिद्ध पंक्तियों की याद दिलाती है जिससे प्रभावित हुए बिना पंडित नेहरू भी न रह पाए। द वूडस आर लवली, डार्क एंड डीप, बट आई हैव प्रोमिस टू कीप, एंड माइल्स टू गो बिफोर आई स्लीप, इन पंक्तियों की भाँति ये कविता भी एक सरल प्रेमिल जीवन को पीछे छोड़कर संघर्षों के जाल में उलझी व्यस्तता को गले लगाने की विवशता है।
“इस महानगर में“ नगरीय जीवन की कटु वास्तविकता का प्रतिबिंब है। नगर भीड़ में होकर भी तन्हा हैं, अजनबियों के सायों में अकेलेपन की छटपटाहट जीवन को बोझिल बनाती है। “अजीब समय है“ राजनीतिक व्यवस्था के चेहरे से नकाब हटाती है। शब्दो की मार सिस्टम पर सीधी टक्कर सी पड़ती है।
“प्रवंचना“ एक स्त्री के साथ सदी दर सदी हो रहे छल की जीती जागती तस्वीर है कि स्त्री जिसे भी अपना हिमायती समझती है वही उसके सपनो की कब्र सजाता है। पुरुषवादी समाज में पुरुष और स्त्री के सपनो का अंतर व्याख्यायित करती ये कविता स्त्रियों की नियति को दर्शाती है।
“क्योंकि तुम्हे प्यार करती हूँ“ एक माँ की अपने बच्चों की सुरक्षा के लिए कुछ भी कर गुजरने की जिद है। “मैं क्यों लिखती हूँ“ कवयित्री के जीवन में कविता के होने का मर्म है ये उनके भीतर व्याप्त अन्तर्वदनाओं को आप्लावित करती हैं।
“अब भी“ शेक्सपियर की लेट मी नॉट टू द मैरिज ऑफ ट्रू माइंडस एडमिट इम्पेडिमेंट की याद तरोताजा कर देती है। कि प्रेम समय के हाथों की कठपुतली नही है। ये समय के साथ प्रेम की उष्णता के बने रहने की ओर ध्यान खिंचती है।
“रहूंगी मैं“ आशाओं के बीज का रोपण है तो “गहरी अंधेरी रात“ निराशाओं का भंवर है। “वे औरतें“ सहानभूति बटोरने के लिए नहीं अपितु अनगिनत स्त्रियों के अंतर्द्वंद को दर्शाने के लिए लिखी गयी है।
“एक और हस्तिनापुर“ समकालीन विसंगतियों पर एक कटाक्ष है। जिसमे सत्ताधारियों के समक्ष सत्य भी पराजित होता है। “मिट्टी का दुख“ में कविताओ का विषय पारंपरिक न होकर समकालीन है जो नवीनतम बिम्बों से पाठको का परिचय करवाती हैं।कविताएँ वैविध्यपूर्ण हैं। ये एक ही प्रवाह में न लिखी होकर वर्ष दर वर्ष जिए हुए लम्हों का निरूपण है।
कहीं दुःखद तो कही सुखद प्रसंगों से जन्मी ये कविताएं यथार्थ को स्पष्ट, प्रखर दृष्टि से देखना है। कविता के माध्यम से कवयित्री इस मानव समाज के समक्ष गूढ़ रहस्यों को प्रस्तुत करने में समर्थ हुई हैं। उनकी कविताओं का उद्द्देश्य जीवन की सच्चाइयों को धरातल पर उकेरना है। उनकी कविताएं पाठको तक उन लम्हों की तरह आती हैं जिन्हें भूल जाना अत्यंत कठिन है । कुछ कविताएं छोटी होकर भी स्वयं में परिपूर्ण हैं। ये जबरन प्रसन्न होने की कवायद न होकर छोटी छोटी चाहनाओ के लिए अपने पक्ष को रखती हैं। ये कविताएं मात्र स्त्री की चाहनाओ तक सीमित न होकर संवेदनाओ की तरंगों को महसूस करना है।
समीक्षक डा. तनु आर बाली, गवर्नमेंट डिग्री कॉलेज में प्राध्यापिका हैं।