परमार्थ निकेतन में रक्षा बंधन पर ऋषि कुमारों ने पौधों को बांधे रक्षासूत्र

पौधों का रोपण कर प्रकृति को दे राखी का उपहारः स्वामी चिदानंद सरस्वती
तीर्थ चेतना न्यूज
ऋषिकेश। परमार्थ निकेतन में भाई-बहन के रिश्ते का पावन पर्व रक्षा बंधन खास तरीके से मनाया गया। ऋषि कुमारों ने पौधों को रक्षा सूत्र बांधे और पर्यावरण संरक्षण का संदेश दिया।
परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती ने देशवासियों को रक्षाबंधन की शुभकामनायें दी। परमार्थ निकेतन के ऋषिकुमारों ने पौधों को रक्षासूत्र बांधकर प्रकृति और पर्यावरण संरक्षण का संदेश दिया। स्वामी चिदानन्द सरस्वती ने संदेश दिया कि अब तक प्रकृति और पर्यावरण हमारी सुरक्षा करते आये हैं, पर अब प्रकृति की रक्षा करने का समय आ गया है।
यह समय पेड़ों को रक्षाबंधन करने का है। पेड़-पौधे हमें जीवन प्रदान करते हैं, प्राणवायु ऑक्सीजन देते हैं, इस दृष्टि से भी हमारा कर्तव्य बनता है कि हम पौधों का रोपण करें और उन्हें संरक्षण प्रदान करें।
स्वामी ने कहा कि हमें अपने बच्चों की सुख सुविधाओं के लिये धन-दौलत, बैंक बेंलेंस के साथ ऑक्सीजन बेंलेंस छोड़ना भी अत्यंत आवश्यक है इसलिये आईये रक्षाबंधन के साथ वृक्षाबंधन मनायें; रक्षाबंधन के साथ वृक्षाबंधन का संकल्प ले। जैसे बहन अपने भाई को राखी बांधती है और भाई अपनी बहन को उसकी रक्षा का वचन देता है उसी प्रकार अब समय आ गया है कि बहन अपने भाई को राखी बांधने के पश्चात पूरा परिवार मिलकर वृक्षों को राखी बांधे और पर्यावरण की रक्षा का वचन लें। इस रक्षाबंधन पर पेड़ों को बांधे वृक्षाबंधन।
वृक्षाबंधन अर्थात सब मिलकर पेड़ों को राखी बांधना और उन्हें गले लगाना। पेड़ों से प्रार्थना करना कि हे पेड़ हम आज वचन देते है कि हम तुम्हारी रक्षा करेंगे। ऐसे अनेक धार्मिक, सांस्कृतिक और ऐतिहासिक उदाहरण हैं, जिसमें राखी का धागा धर्म और कर्म दोनों का निर्वहन करता है। राखी का यह बंधन, कल्याण की कामना, स्नेह की भावना और सबके लिये सुख-समृद्धि लाये इन्हीं शुभकामनाओं के साथ रक्षाबंधन का पर्व मनायें।
स्वामी चिंदानंद सरस्वती ने कहा कि भारतीय पर्व, त्योहार और सभी संस्कार व परंपराएं किसी न किसी रूप में प्रकृति और पर्यावरण से जुड़ी हुई हैं। पर्वों और त्योहारों को हम प्रकृति के प्रतीक के रूप में मनाते है, रक्षाबंधन का पर्व भी उनमें से एक है। आईये हम संकल्प लें कि हम अपने पर्व और त्योहारों को ईकोफें्रडली तरीके से मनायेंगे जिससे हमारा पर्यावरण भी बचेगा, परम्परा भी बचेगी, प्रकृति भी बचेगी और हमारी पीढ़ियां भी बचेगी।