पिघल रही है बर्फ, कहानीकार- कुसुम भट्ट
एक किताब
किताबें अनमोल होती हैं। ये जीवन को बदलने, संवारने और व्यक्तित्व के विकास की गारंटी देती हैं। ये विचारों के द्वंद्व को सकारात्मक ऊर्जा में बदल देती है। इसके अंतिम पृष्ठ का भी उतना ही महत्व होता है जितने प्रथम का।
इतने रसूख को समेटे किताबें कहीं उपेक्षित हो रही है। दरअसल, इन्हें पाठक नहीं मिल रहे हैं। या कहें के मौजूदा दौर में विभिन्न वजहों से पढ़ने की प्रवृत्ति कम हो रही है। इसका असर समाज की तमाम व्यवस्थाओं पर नकारात्मक तौर पर दिख रहा है।
ऐसे में किताबों और लेखकों को प्रोत्साहित करने की जरूरत है। ताकि युवा पीढ़ी में पढ़ने की प्रवृत्ति बढे। हिंदी सप्ताहिक तीर्थ चेतना एक किताब नाम से नियमित कॉलम प्रकाशित करने जा रहा है। ये किताब की समीक्षा पर आधारित होगा।
साहित्य को समर्पित इस अभियान का नेतृत्व श्रीदेव सुमन उत्तराखंड विश्वविद्यालय की हिन्दी की प्रोफेसर प्रो. कल्पना पंत करेंगी।
कल्पना पंत ।
उसकी चीख उस निचाट सुनसान में आग की लपट सी आसमान छूने को बढ़ने लगी आत्मा की यह चीख है जो हमें गाहे-बगाहे दंश देती है . पीड़ा की इसी पिघलती बर्फ की दर्जनों कहानियां मौजूद है।
कुसुम भट्ट के कहानी संग्रह’ पिघल रही है बर्फ ‘में संग्रह की पहली कहानी ‘आखिरी सांस टूटने पर’ का प्रारंभ एक वृद्धा की मौत से होता है. बूढ़ी के समक्ष उसके बहू बेटे हैं बहु उसकी मौत से प्रसन्न है लेकिन बेटा अंदर ही अंदर घुट रहा है जो माँ के जीते जी उसके लिए कुछ नहीं कर सका।
कहानी जीवन के जद्दोजहद में लगने के उपरांत अंतिम समय अशक्त हो जाने के कारण द्वार- द्वार भटकती विवशता की कहानी है “बूढ़ी के देश में रहने वाले बेटों ने बूढ़ी को लगभग सभी जरूरत का सामान मुहैया कराया था.” लेकिन बूढ़ी अशक्त होने के कारण कुछ नहीं कर पाती गांव में चक्कर लगाती है। “कुछ दयालु किस्म के लोग उसके आगे थाली परोस कर पूछते ,”क्या खाने का मन है सासू जी? “ चखुली फूफू की थोड़ी सेवा टहल कर देने वाली और खाना खिला देने वाली तारा मन ही मन संतुष्ट है कि बूढ़ी कह गई है मैं तो तेरी रिणी ठहरी तारा, तेरे बच्चे तेरी सरवन कुमार जैसी सेवा करें बल..! तेरी काया में कभी कोई कष्ट न हो” संग्रह की दूसरी कहानी’ या देवी सर्वभूतेषु” वासना के वशीभूत हुए मनुष्य वेषधारी भेड़िए के अंतकी कहानी है।
इस कहानी की नयिका सोना वासना लोलुप मोटे का बड़ी चतुराई से सामना करती है और अंततोगत्वा उसको मौत के घाट उतार देती है. यहां पर कहानीकार ने महिषासुरमर्दिनि का संदर्भ लिया है. स्त्री के लिए पग- पग पर समाज ऐसी चुनौतियाँ उतपन्न कर देता है कि अंततोगत्वा उसे अपने बचने के लिए इस तरह की निर्णय लेने ही पड़ते हैं उस निर्जन में जहां उसे बचाने वाला कोई नहीं है वह स्वयं शक्ति का स्वरुप बन जाती है।
“मोटा बिलबिलाया. “ नहीं… सोना , नहीं…. सोना, त्रिशूल नीचे रख,” त्रिशूल नीचे रख कहकर पीछे खिसकने लगा , सोना भी आगे बढ़ने लगी मोटे का पैर फैसला और वह नीचे लुड़का तो सोना ने त्रिशूल उसके पेट में घुसेड़ दिया. खून का फव्वारा फूटने लगा तो भी सोना की हंसी रुकी नहींहा… हा… हा जब तक गांव वाले नहीं आए वह हँसती ही रही हा हा हा। .”
चील’ संग्रह की महत्वपूर्ण कहानी है’.चील समाज की चील है, वह चील है जो एक लड़की की जिंदगी को आसान नहीं रहने देती, उसे अपना जीवन नहीं जीने देती कहानी में मां बच्चों को जन्म देने वाली टकसाल है और बेटी समाज के मानदंडों पर जबरन विवाह की बेड़ियों में बाँध दी जाती है।
उसका पैर ही नहीं जीवन मवाद से भर जाता है ,” माँ की सोच कैसी है? एक के बाद एक सात बच्चे जने, आठवाँ अभी पेट में,मेरे लिये भी इसी संसार का स्वप्न पाले है जाहिल ! लडकी के अंग विकसित हुए नहीं कि इनकी आँखों में चील उतर आती है,”क्षमा करना केदार दो हजार तेरह में केदारनाथ में आई आपदा पर लिखी गई कहानी है, मनुष्य की स्वाभाविक मनोवृति का परिचय इस कहानी में है।
कहानी अपनी सहजता के कारण उत्तम है पर कहीं-कहीं गठन में कुछ बिखराव सा दिखता है तुम लौट आए’ कहानी पुरुष की स्वार्थी प्रवृत्ति को सामने लाती है रोशनी से प्रेम करने वाला सिद्धार्थ समाज के सामने उसे स्वीकार करने में डरता है और एक कुंवारी लड़की वृंदा से विवाह करता है उसका प्रेम मात्र दिखावा है, वृंदा के मरने के बाद वह अपनी पुत्री को लेकर रोशनी के पास आता है और उससे पहले ही जैसा संबंध चाहता है, लेकिन उसके छल ने रोशनी को बदल दिया है।
वह समझ चुकी है कि सिद्धार्थ का प्रेम एक छलावा है, वह वात्सल्य से भरी हुई है जो सिद्धार्थ की पुत्री को भरपूर प्रेम देना चाहती है, लेकिन सिद्धार्थ के लिए अब उसके पास कुछ नहीं है ,सिद्धार्थ और उसके संपर्क से हुआ पुत्र अब केवल रोशनी का है जिस पुत्र को उसने उसके पिता से संबंधित सारी सच्चाई बचा रखी है पर उस पुत्र से भी उसका परिचय नहीं कराना चाहती क्योंकि जिससे पिता होने की जिम्मेदारी ही नहीं निभाई तो उसका पुत्र कैसा?
’निर्विकार’ कहानी समाज के एक ऐसे व्यक्ति की कहानी है जो पिता की हत्या कर दिए जाने पर,अपने शुभ लक्ष्य से भटक जाता है और समाज के ढोंग की धारा में बह जाता है वह पूरी तरह से निर्विकार हो जाता है निर्विकार शब्द यहां पर बड़ा मर्मभेदी हो हो जाता है।
शारदा ताई” एक स्त्री की स्वतंत्रता और सहज विचारों को सहन न कर पाने के कारण अपने ही परिवार की स्त्रियों द्वारा समाप्त कर देने की कहानी है. मैं भी इतना तो जानती थी कि गांव में ताई ही एक चेहरे वाली है बाकी स्त्रियां छल प्रपंच में डूबी कुछ ना कुछ उपद्रव करती रहती थी ताई की उन्हें समय-समय पर फटकार मिलती रहती थी …..अमूमन पहाड़ में ऐसी वारदातें नहीं होती कहीं कुछ घटता भी है तो उसके पीछे ठोस कारण होते हैं, शारदा ताई की हत्या का कारण सिर्फकुछ स्त्रियों के साथ उनके विचारों का न मिल पाना मैं देख रही हूं और कोई ईर्ष्या द्वेष के चलते घृणा के बीच का वृक्ष बन जाना इसका एक दूसरा कारण कि बुढ़ापे में ताई अपने स्वाभिमान के साथ कोई समझौता करने को तैयार नहीं हुई।
’बेटे की माँ परंपराओं की बेड़ियों से जकड़ी बेटे के मोह में ग्रस्त उस मां की कहानी है जिसका अंधात्र मोह उसके बेटे को जेल के सलाखों के पीछे पहुंचा देता है. मां जिसने हमेशा देखा है बेटियां बोझ होती है, बेटा ही कुल का तारक होता है वह बेटे के साथ साल जेल में रहने के बाद भी बेटियों का ही दोहन बेटे के लिए करती है. माँ की जबरन गढ़ी गई आदर्शवादी छवि को भी ये कहानियाँ तोडती हैं।
’पिघल रही है बर्फ’ इस संग्रह की मुख्य कहानी है अत्यंत मार्मिक नर्मदा जो कि ष्णा से गहरा प्रेम करती है कृष्णा के किए गए विश्वासघात के कारण अपने अंदर ही अंदर टूट जाती है और स्वयंको मिटाने लगती है कहानी की भाषा अपने साथ बहा ले जाती हैं मन की समस्त बर्फ पिघल कर उद्वेग का रूप धर लेती है।
पंछी, उड़ान ,इंद्रधनुष कहानी को पढ़ते-पढ़ते तारतम्य में टूटता है पारस गुरु और आगे के कथानक में सामंजस्य का किंचित अभाव प्रतीत हुआ पर पाठ के भी कई पाठ होते हैं संभवत यह कहानी अनुराग के कई स्तरों को अभिव्यक्त करती है, ’शायद सफर खूबसूरत हो का सफर खूबसूरत नहीं है बल्कि अमावस की तरह का अंधेरा छा जाता है उस सफर में जहां शंका और भय की नागफनी आती है , सफेदपोश , आदर्शवादी प्रतीत होने वाले रचनाकारों के विद्रूप को यह कहान कहानी झटके से सामने में लाकर रख देती है, यहां जो दिखता है वैसा होता नहीं है।
तराना की डीपी तराना जैसी नहीं है और ना ही काबिल कभी अपने लेखन जैसे हैं. अपनी संपूर्णता में यह संग्रह बहुत सुंदर है, जीवन के यथार्थ , पीड़ा , विद्रूपता औरअपने परिवेश को यह कहानियां बड़ी ही समग्रता के साथ और बड़ी ही सुंदरता के साथ अभिव्यक्त करती हैं.
लेखिका स्थापित कहानीकार हैं उनके लेखन को साधुवाद!