परीक्षाओं में घालमेल देश के युवाओं के साथ संस्थागत ठगी

परीक्षाओं में घालमेल देश के युवाओं के साथ संस्थागत ठगी
Spread the love

सुदीप पंचभैया।

देश का सिस्टम परीक्षाओं की पवित्रता को अक्षुण्य रखने में नाकाम रहा है। नीट और नेट परीक्षा की पवित्रता को लेकर उठे सवालों और हो रहे खुलासों से ये साबित हो चुका है। दावे के साथ कहा जा सकता है कि परीक्षा से संबंधित घालमेल देश के करोड़ों युवाओं के साथ संस्थागत ठगी है।

कक्षोन्नति के लिए परीक्षा, किसी डिग्री कोर्स में प्रवेश हेतु परीक्षा या सरकारी सेवा हेतु ली जाने वाली लिखित/ मौखिक परीक्षा की पवित्रता, गोपनीयता, निष्पक्षता की जिम्मेदारी सिस्टम की है। सिस्टम इस जिम्मेदारी के निर्वाहन में असफल साबित हुआ है। हाल ही में डॉक्टरी की पढ़ाई हेतु आयोजित नीट और उच्च शिक्षा में प्राध्यापक बनने के लिए जरूरी नेट मंे घालमेल की बात सामने आई।

इसको लेकर देश के युवा सड़कों को पर हैं। नीट परीक्षा कराने वाली एजेंसी के तौर तरीकों पर सवाल खड़े हो रहे हैं। केंद्र की नई-नई सरकार पहले पहल घालमेल की बात से इनकार करती रही। मगर, अब जांच की दिशा में आगे बढ़ने और दोषियों के खिलाफ एक्शन की बात कर रही है। मामला कोर्ट तक पहुंच गया है। निर्णय क्या होता है ये देखने वाली बात होगी।

डॉक्टरी की पढ़ाई करने और डॉक्टर बनकर देश की सेवा करने का सपना देखने वाले लाखों युवा स्वयं को ठगा सा महसूस कर रहे हैं। आम लोगों के मन में सवाल उठ रहा है कि आखिर ये खेल कब से चल रहा है। इस खेल से कितनी मेहनती युवाओं का हक छीना होगा। आखिर हमारे मेडिकल सिस्टम में कितने मुन्ना भाई एमबीबीएस घुस चुके हैं। वो कैसा ईलाज कर रहे होंगे। क्या फर्जी तरीके से डॉक्टरी की प्रवेश परीक्षा पास करने वालों ने कोर्स भी ऐसे ही किया होगा। क्या ऐसे डॉक्टरो ने समानांतरण मेडिकल सिस्टम विकसित कर दिया है।

ये सवाल लोगों के मन मंे हैं और उनके पास इसके जवाब भी हैं। आम लोगों के बीच जो बातें हैं उसको एड्रेस करने की जरूरत है। व्यवस्था को ऐसा करना चाहिए। मगर, व्यवस्था की ऐसा करने में कोई रूचि नहीं है। कारण जिम्मेदार लोग अब डरने लगे हैं। उन्हें लगता है कि आम लोगों के मन में और सवाल हैं। ये सच भी है। भारतीय समाज सवालों से लबालब हो चुका है।

सवालों के जवाब न मिलने और चुनाव परिणाम को सवालों का जवाब मानने की बन चुकी प्रवृत्ति ने समाज में अविश्वास का भाव पैदा कर दिया है। ये एक राष्ट्र के लिए ठीक नहीं है। इसके दुष्परिणाम कई तरह से सामने आ रहे हैं। इन दुष्परिणामों की सिस्टम के स्तर से हो रही अनदेखी और खतरनाक साबित होने वाली है। विश्वास का माहौल बनाने की जिम्मेदारी सिस्टम की है। उसे विश्वास के लीकेज को सही अर्थों में बंद करना होगा।

नीट और नेट ही नहीं देश की तमाम परीक्षाओं की पवित्रता पर सवाल उठते रहे हैं। सरकारी नौकरियों मंे घालमेल की बातें सामने आती रहती हैं। हो हल्ला होने पर कुछ लोगों के खिलाफ एक्शन होता है। जबकि एक्शन के साथ-साथ सुधार की भी गारंटी होनी चाहिए। ये बात पूरी तरह से सच है कि परीक्षाओं के पेपर लीक और सरकारी नौकरियों में बैक डोर एंट्री के पीछे कहीं न कहीं राजनीति होती है।

उत्तराखंड पेपर लीक मामले में खूब बदनाम रहा। पटवारी भर्ती घोटाले से लेकर विधानसभा नौकरी घोटाले यहां खूब हुए। इन घोटालों के उजागर होने के बावजूद हालात नहीं सुधरे हैं। अब स्थिति ये है कि हर भर्ती को लेकर अविश्वास बना रहता है। समाज हर भर्ती को संदेह की दृष्टि से देखता है। युवाओं में ये बात घर कर गई है कि बगैर जुगाड़ के कुछ नहीं हो सकता है।

दरअसल, कक्षोन्नति के लिए परीक्षा हो या किसी डिग्री कोर्स में प्रवेश हेतु परीक्षा या सरकारी सेवा हेतु ली जाने वाली लिखित/ मौखिक परीक्षा की पवित्रता, गोपनीयता, निष्पक्षता में लेस मात्र की भी कमी है तो इसे देश के युवाओं के साथ संस्थागत ठगी माना जाना चाहिए।

Tirth Chetna

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *