उत्तराखंड में सब कुछ महंगा, बसों का किराया सस्ता
ऋषिकेश। उत्तराखंड में पिछले दो साल में सब कुछ महंगा हो गया। हां, सफर की महंगाई पर ब्रेक है। यानि प्राइवेट बसों के किराए में अनुपातिक बढ़ोत्तरी नहीं हुई। परिणाम राज्य का परिवहन व्यवसाय दम तोड़ रहा है।
उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्रों में सेवाएं देने वाली निजी मोटर कंपनियों के मोटर मालिक संकट में हैं। संकट की शुरूआत 2013 की केदार आपदा के साथ हुई। 2015 से हालात थोड़े सुधरे तो 2020 और 21 कोविड-19 की भेंट चढ़ गए।
बसें खड़ी रही और बाजार महंगाई की कुलांचे मारता रहा। डीजल 97 रूपये प्रति लीटर पहुंच गए। बीमा में 20 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी हो गई। वाहन के रखरखाव पर पहले से अधिक खर्चा आ रहा है। स्टॉफ पर पहले के मुकाबले 20-25 प्रतिशत अधिक व्यय हो रहा है।
कुल मिलाकर बसों के संचालन में 50 प्रतिशत से अधिक की बढ़ोत्तरी हो गई। चारधाम यात्रा के लिए वाहन को अपडेट करने के लिए कम से कम डेढ़ से दो लाख का खर्चा आ रहा है। इन खर्चों को मिलाकर देखा जाए तो मौजूदा अनुमन्य भाड़े में बसों का संचालन संभव नहीं है।
एक अनुमान के मुताबिक किराए भाड़े में 30-35 प्रतिशत बढ़ोत्तरी के बगैर मोटर मालिकों के लिए चारधाम यात्रा घाटे का सौदा होगी। निजी मोटर कंपनियों राज्य सरकार से लगातार किराए में बढ़ोत्तरी की मांग कर रहे हैं। मगर, सरकार ने अभी तक इस पर गौर नहीं किया।
सरकार के स्तर से हो रही इस अनदेखी का असर पूरे परिवहन व्यावसाय पर दिख रहा है। सरकार रोडवेज के संचालन में करोड़ों का घाटा सह रही है। मगर, प्राइवेट ऑपरेटर्स की खड़ी बसों का लाभ उठाने का तैयार नहीं है।
ऋषिकेश-देहरादून, ऋषिकेश-हरिद्वार के बीच प्राइवेट बसों का संचालन की अनुमति से इस व्यवसाय को समाप्त होने से बचा सकता है। प्राइवेटाइजेशन की हिमायती सरकार न जाने क्यों इस पर गौर करने को तैयार नहीं है।