दो माह की सक्रियता से सुगम नहीं होगी चारधाम यात्रा
सुदीप पंचभैया।
आदिधाम श्री बदरीनाथ समेत उत्तराखंड के चारधाम की यात्रा को सभा/बैठकां के बजाए धरातल पर सुगम बनाने के लिए जरूरी है कि सिस्टम इस पर साल भर गौर करें। हर यात्रा की कमियों को दूसरे वर्ष दूर करें। मगर, ऐसा हो नहीं रहा है। दरअसल, उत्तराखंड राज्य बनने के बाद भी सिस्टम चारधाम यात्रा को लेकर सिर्फ दो माह ही सक्रिय दिखता है।
इन दिनों देहरादून और धामों से संबंधित जिला मुख्यालयों में चारधाम यात्रा को सुगम बनाने के लिए बैठकों का दौर चल रहा है। मंत्री हांका लगाते दिख रहे हैं। पहली बार राज भवन की नजर भी यात्रा की तैयारियों पर दिख रही है। तैयारियों में कमी पेशी पर मंत्रियों का सोशल मीडिया पर गुस्सा भी दिख रहा है। काश ये गुस्सा पिछले वर्ष कपाटों के बंद होते ही दिखना शुरू हो जाता।
बहरहाल, कुछ दिनों से और कुछ दिनों के लिए दिख रही ऐसी कवायदों से शायद ही चारधाम यात्रा धरातल पर सुगम हो। राज्य गठन के बाद हर वर्ष ऐसा होता है। सिस्टम मीडिया के माध्यम से चारधाम यात्रा की अपनी पुख्ता तैयारियों का प्रचार-प्रसार करता है। मगर, सच ये है कि धरातल पर तैयारियां पुख्ता नहीं होती।
कम से कम उन बातों पर गौर ही नहीं किया जाता जो देश-विदेश से चारधाम यात्रा पर आने वाले यात्री फेस करते हैं। इसमें सबसे पहले है परिवहन व्यवस्था। सड़कों की व्यवस्था और पार्किंग की व्यवस्था। पिछले कुछ सालों का चारधाम यात्रा का रिकॉर्ड बताता है कि 10 दिन की चारधाम यात्रा का एक-दो दिन ट्रैफिक जाम की भेंट चढ़ जाते हैं।
जाम का ये सिलसिला यात्रा के सबसे बड़े पड़ाव ऋषिकेश से शुरू हो जाता है। अधिकांश यात्रा पड़ावों में पार्किंग की प्रॉपर व्यवस्था नहीं है। यात्रा पड़ावों में पसरे अतिक्रमण को हटाने की हिम्मत सिस्टम में नहीं दिखती। इसकी वजह हर किसी को पता है। यात्री इससे सबसे अधिक परेशान होता है।
मारे ट्रैफिक जाम उसकी यात्रा भागम भाग में तब्दील हो जाती है। वो न तो देवभूमि के नैसर्गिक सुंदरता का लुत्फ उठा पाता है और आध्यात्मिकता को ही ढंग से महसूस कर पाता है। यहां से शुरू होने वाली यात्री की परेशानी मंदिर की लाइन, रात्रि विश्राम की व्यवस्था और भोजन की व्यवस्था तक चलती है।
इन परेशानियों को भगवान का प्रसाद समझने और परीक्षा मानने वाली पीढ़ी अब नहीं रही। लौटते ही यात्री अव्यवस्थाओं पर बोल पड़ते हैं। सिस्टम को भी खूब कोसते हैं और अपने साथ बुरी यादें लेकर लौटते हैं। इसका खामियाजा राज्य के पर्यटन और तीर्थाटन को भुगतना पड़ता है।
पुलिस जरूर धरातल पर काम करती दिखती है। श्री बदरीनाथ केदारनाथ मंदिर समिति का काम दिखता है। धामों की तीर्थ पुरोहित यात्रियों को राह में हुए कष्टों को आध्यात्म के बूते कम करने का प्रयास करते हैं। यात्रा पर निर्भर लोग भी कई तरह से यात्रियों की सुविधाओं का ध्यान रखते है। यही वजह है कि तमाम नाराजगियों के बाद भी यात्रा चलती है।
चारधाम यात्रा को सुगम बनाने के लिए जरूरी है कि सिस्टम पूरे साल इस पर गौर करें। इस वर्ष की यात्रा की कमियों को अगले साल दूर करें। चारधाम यात्रा को सिर्फ दो माह के आइने से न देखे। देहरादून के बजाय यात्रा पड़ावों की व्यवस्थाओं पर फोकस हो।
श्री बदरीनाथ केदारनाथ मंदिर समिति, तीर्थ पुरोहित, हक हकुकधारियों, विभिन्न पड़ावों पर नाना प्रकार की सेवाएं देने वाले व्यापारियों के सुझावों पर गौर किया जाए। चार धाम यात्रा को 12 मासी करने की दिशा में एक राय बनाने के प्रयास हों। ताकि चारधा यात्रा को लेकर अस्थायीपन समाप्त हो सकें।