चारधाम यात्राःबेहतर प्रबंधन को साहसिक निर्णय की दरकार

चारधाम यात्राःबेहतर प्रबंधन को साहसिक निर्णय की दरकार
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सुदीप पंचभैया।

देवभूमि उत्तराखंड में चारधाम समेत तमाम तीर्थों और मंदिरों की यात्रा के बेहतर प्रबंधन के लिए साहसिक निर्णय लेने की जरूरत है। ये साहसिक निर्णय चारधाम यात्रा को 12 महीने खुला रखने का होगा। आयोग परिषद, समिति, प्राधिकरण सिर्फ मॉनिटरिंग ही संभव हो सकती है।

देवभूमि उत्तराखंड स्थित आदिधाम श्री बदरीनाथ समेत हिंदुओं की आस्था के प्रतीक चारधामों की यात्रा में बेहतर व्यवस्था बनाने के लिए सरकार यात्रा प्रबंधन प्राधिकरण के गठन की ओर बढ़ रही है। इससे पहले सरकार देवस्थानम एक्ट के तहत बोर्ड का प्रयोग कर चुकी है।

देवस्थानम एक्ट को सरकार निरस्त करने के लिए मजबूर हुई। यानि बेहतर यात्रा प्रबंधन के लिए सरकार का ये प्रयोग असफल साबित हुआ। इसको लेकर जानकारों ने तमाम सवाल उठाए। दरअसल, चारधाम यात्रा के बेहतर प्रबंधन के लिए नई गवर्नमेंट बॉडी के गठन से अधिक साहसिक निर्णय लेने की जरूरत है।

गौर करना चाहिए कि आखिर चारधाम यात्रा में दो-तीन माह ही भीड़ क्यों उमड़ती है। ये भीड़ अब नकारात्मक प्रभाव छोड़ने लगी है। सिस्टम से व्यवस्थाएं नहीं संभल पा रही हैं। दरअसल, देवभूमि उत्तराखंड में तीर्थाटन और पर्यटन का जबरदस्त घालमेल हो चुका है।

सिस्टम इस घालमेल को दूर करने में नाकाम रहा है। देवभूमि उत्तराखंड को इसी घालमेल से बचाने की जरूरत है। ताकि यहां का तीर्थाटन और पर्यटन दोनों अपने-अपने स्थानों पर सुरक्षित रहें। राज्य की व्यवस्थाएं तीर्थाटन और पर्यटन दोनों उनकी तासीर के हिसाब से देखे। इससे राज्य को अधिक लाभ होगा।

इसके लिए जरूरी है कि सरकार धर्मानुरागियों, तीर्थ पुरोहितों, हक हकूकधारियों के साथ बैठकर चर्चा करें। राज्य के हित में बड़ा निर्णय ले। ये साहसिक निर्णय चारों धामों की यात्रा को 12 महीने जारी रखने का है। यदि सरकार इस दिशा में आगे बढ़ती है तो राज्य को इसका बड़ा लाभ होगा। राज्य में तीर्थाटन और पर्यटन 12 महीने का होगा। इसके मुताबिक व्यवस्थाएं बन सकेंगी। अभी राज्य में तीर्थाटन और पर्यटन दोनों की व्यवस्थाएं एक तरह से अस्थायी होती हैं।

देवभूमि उत्तराखंड में चारों धामों के कपाट छह माह ही खुले रखने के पीछे धार्मिक वजह से अधिक भौगोलिक और अत्यधिक ठंड अधिक है। विकास और सुविधाआंे में ईजाफे से भौगोलिक आर अन्य दुश्वारियां कम हुई हैं। दिसंबर, जनवरी और फरवरी में भी धर्मानुरागी चारधाम यात्रा पर आना चाहेंगे।

बर्फबारी और अत्यधिक ठंड से पर्यटकों को लुभाया जा सकेगा। ऐसा हुआ तो चारधाम यात्रा के लिए अप्रैल, मई और जून में उमड़ने वाली भीड़ और भागमभाग के पर्यटन से निजात मिलेगी। लोग देवभूमि का दीदार इत्मीनान का कर सकेंगे। यहां के तीर्थाटन और पर्यटन को महसूस करेंगे। इसके प्रचार में सहयोगी बनेंगे। यहां से अच्छे अनुभव लेकर जाएंगे। हाल के सालों में ये नहीं दिख रहा है। अब स्थिति ये बन रही है कि भीड़ से पैदा हो रही अव्यवस्थाओं से राज्य की छवि प्रभावित हो रही है।

सोशल मीडिया में लोग व्यवस्थाओं को लेकर सवाल खड़े कर रहे हैं। इस पर गौर करना होगा। ताकि तीर्थाटन और पर्यटन के क्षेत्र में राज्य की बनी अच्छी छवि को बरकरार रखा जा सकें। सरकार के स्तर पर चारधाम यात्रा प्रबंधन के लिए प्राधिकरण के गठन की बात हो रही है। यात्रा की व्यवस्थाओं की मॉनिटरिंग के लिए तो प्राधिकरण अच्छा है। मगर, दो माह ही भीड़ उमड़ने पर प्राधिकरण कैसे रोक लगाएगा।

चार धाम से लेकर सड़क, कस्बों में व्यवस्थाओं को बहुत अधिक नहीं बढ़ाया जा सकता है। भौगोलिक संवदेशीलता इसकी अनुमति नहीं देते। ऐसे में जरूरी है कि चार धाम यात्रा को 12 महीने खुला रखा जाए। ये सबसे उपयुक्त विकल्प है। राज्य की बेहतरी के लिए आज नहीं तो कल इस पर व्यवस्था को निर्णय लेना ही होगा।

चारधाम यात्रा में व्यवस्था बनाने के लिए शुरू किए गए ऑनलाइन रजिस्ट्रेशन का प्रयोग भी पूरी तरह से असफल साबित हुआ है। इससे अव्यवस्थाएं और बढ़ गई हैं। इसकी वजह से धर्मानुरागियों को बगैर यात्रा किए वापस घर लौटना पड़ा। मारे भीड़ राज्य के अधिकांश छोटे-बड़े कस्बे ट्रैफिक जाम से दो-चार हुए। जैसी भीड़ उमड़े चारधाम यात्रा मार्ग के बाजारों में उस अनुपात में रौनक नहीं दिखी। घंटों जाम में फंसने की वजह से यात्रियों का उत्साह नहीं रहा। बस किसी तरह से यात्रा धामों तक पहुंच रहे थे और लौटते हुए बुरी अनुभव बयां कर रहे थे।

Tirth Chetna

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