स्कूली शिक्षा में एक ही पद पर बूढ़ा रहे हैं शिक्षक
एलटी कैडर की स्थिति हुई दयनीय
तीर्थ चेतना न्यूज
ऋषिकेश। उत्तराखंड के राजकीय हाई स्कूल और इंटर कॉलेजों में तैनात शिक्षक एक ही पद पर बूढ़ा रहे हैं। इससे स्कूली शिक्षा कई तरह से प्रभावित हो रही है। इसमें उत्साह और कुछ करने का जज्बा छीज रहा है। एलटी कैडर की स्थिति तो खासी दयनीय हो गई।
नियुक्ति के नाना स्रोत और प्रमोशन की तर्कपूर्ण प्रणाली के अभाव और व्यवस्थागत खामियों के चलते राज्य के गवर्नमेंट हाई स्कूल और इंटर कालेजों के शिक्षक (एलटी और प्रवक्ता ) एक ही पद पर बूढ़ा रहे हैं। इससे कहीं न कहीं शिक्षा प्रभावित हो रही है। व्यवस्था है कि इस पर गौर करने को तैयार नहीं है।
एलटी और प्रवक्ता के प्रमोशन के पद (हेड मास्टर ) पर हिस्सेदारी से प्रमोशन के मौके बेहद सीमित हो गए हैं। विभाग और सरकार परंपरागत तरीकों को बदलने की दिशा में कुछ भी सोचने को तैयार नहीं है। स्कूलों में वित्तीय लाभ न सही प्रमोशन के मौकों को बढ़ाया जा सकता है। प्राइवेट स्कूलों में ऐसी व्यवस्थाएं हैं। सरकारी स्कूलों में भी ऐसी व्यवस्थाएं बनाई जा सकती हैं।
एलटी कैडर की स्थिति तो खासी दयनीय है। जबकि माध्यमिक स्कूली शिक्षा का ये मूल पद है। स्कूली शिक्षा में प्रवक्ता पद नाम 1980 के बाद अस्तित्व में आया। 1991 में सीटी कैडर को समाप्त करने और एलटी में समायोजन के बाद से एलटी कैडर स्कूली शिक्षा में बेगाना हो गया है। सरकार और विभाग की तमाम स्वार्थ सिद्धि की पूर्ति इसी कैडर में हो रही है।
इसमें सीधी भर्ती के शिक्षक स्कूल से लेकर सिस्टम तक में स्वयं को उपेक्षित महसूस कर रहे हैं। इस कैडर के शिक्षकों को प्रवक्ता पद पर मिलने वाला विषयगत लाभ इस कैडर के शिक्षकों को अपनी बात एकजुटता से रखने के लिए भी एक नहीं होने देता।
एलटी के कुछ विषयों के शिक्षक आठ-10 साल की सेवा में प्रवक्ता पद पा जाते हैं तो कुछ 20-25 साल में भी टपराते रहते हैं। प्रवक्ता पद पाने के बाद अधिकांश एलटी शिक्षक सबसे पहले ये बात भूलने का प्रयास करते हैं कि वो भी कभी एलटी में थे। यही वजह है कि एलटी शिक्षकों की उपेक्षा का अंत नहीं हो रहा है।
इन दिनों विभाग द्वारा जारी स्थानांतरण की पात्रता सूची को देखें तो स्पष्ट हो जाएगा कैसे शिक्षक एक ही पद पर बूढ़ा रहे हैं। सुगम-दुर्गम और दुर्गम-सुगम की सूची पर गौर करें तो पहले 50 नाम 55 साल की आयु पार कर चुके हैं।