ऐसे तो मैदान छोड़ने वाले नेता नहीं हैं त्रिवेंद्र सिंह रावत
देहरादून । उत्तराखंड राज्य में सबसे अधिक समय तक भाजपा के मुख्यमंत्री रहे त्रिवेंद्र सिंह रावत ऐसे ही मैदान छोड़ने वाले नेता नहीं हैं। इसके पीछे कुछ न कुछ पार्टी की स्ट्रेटजी है।
दो दिन पहले तक अपनी परंपरागत सीट डोईवाला से चुनाव लड़ने की तैयारी कर रहे त्रिवेंद्र सिंह रावत ने अचानक चुनाव लड़ने से ना कर दी। इसके लिए पार्टी प्रमुख को चिटठी भी लिख दी। चिटठी पढ़ने में सीधी-साधी लग रही है। मगर, इसके भाव गहरे हैं।
त्रिवेंद्र सिंह रावत को जानने वालों का कहना है कि वो ऐसे ही मैदान छोड़ने वाले नेता नहीं है। 2014 में हार तय होने के बाद भी वो उपचुनाव लड़ने डोईवाला पहुंचे। मजबूती से चुनाव लड़ा। हारे और 2017 के लिए जमीन तैयार कर गए।
2017 में डोईवाला से चुनाव जीता और मुख्यमंत्री बनें। इसका डोईवाला क्षेत्र को खूब लाभ भी हुआ। इसके बावजूद उनका चुनाव लड़ने से इनकार करने से हर कोई हतप्रभ है। माना जा रहा है कि उन्हें चुनाव से दूर रखने की पीछे भाजपा की खास रणनीति है।
दरअसल, भाजपा सिर्फ छह माह के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी को ही प्रोजेक्ट कर रही है। उन्हें के कामों का आगे रखा जा रहा है। साढ़े चार साल के अच्छे-बुरे कामों पर पार्टी पर्दा रखना चाहती है। सीधे-सीधे शब्दों में कहें तो भाजपा छह माह के काम दिखाकर पांच साल के लिए सत्ता चाहती है।
त्रिवेंद्र के चुनाव मैदान में होने से लोग उनके कार्यकाल के कार्यों का मूल्यांकन जरूर करते। हालांकि लोग भाजपा से हिसाब तो पूरे पांच साल का मांग रहे हैं।