राजनीति में वोट पाने का यही तरीका है चलन में
सुदीप पंचभैया ।
भारतीय लोकतंत्र के महोत्सव कहे जाने वाले चुनाव में प्रत्याशी वोट कैसे हासिल करते हैं ? इसके लिए चुनाव से पहले क्या-क्या करना होता है ?स्वस्थ लोकतंत्र की दुहाई के बीच वोट पाने के कौन से तरीके चलन में हैं।
जी हां, ये बड़े सवाल हैं और इनके अभिलेखीय उत्तर और व्यवहारिक जवाब अलग-अलग हैं। यही व्यवहारिकता लोकतंत्र में चुनावी चैप्टर में कुछ का कुछ करा देती है। स्वस्थ लोकतंत्र की आत्म निष्पक्ष चुनाव में बसती है। निष्पक्ष चुनाव का जिम्मा जनता पर है। जनता की निष्पक्षता किसी भी प्रैक्टिस से प्रभावित न हो/ न की जा सके इसके लिए सिस्टम बना है। इस अच्छे सिस्टम के बावजूद वोट पाने के जो तरीके चलन में हैं उससे तमाम सवाल खड़े होते हैं।
वोट पाने के लिए बेहद सरल तरीका लोभ/लालच है। राजनीतिक दल और सरकारें कुछ भी दावा करें, सच ये है कि लोगों का वोट पाने के लिए नेता लालच का जाल फेंकते हैं। सरकारों का कामकाज में भी ये खूब झलकता है। कोई कुछ भी कहे, देश की राजनीति में वोट पाने का यही तरीका सबसे अधिक चलन में है।
पांच साल के फ्रेम वाली सरकार चौथे साल से वोट पाने के लिए तमाम ऐसी प्रैक्टिस करना शुरू कर देती हैं। हर उस तबके को लुभाने के प्रयास होते हैं जिनका वोट चुनाव जीतने में मदद कर सकता है। भारतीय राजनीति में तमाम ऐसी योजनाओं की अक्सर चर्चा होती है।
साड़ी/धोती से लेकर, भांडे/बर्तन, टीवी, लैपटॉप, राशन आदि, आदि योजनाओं को धरातल पर उतरता अक्सर देखा जाता है। इस प्रैक्टिस में विकास और अच्छे शासन, सबकी सुनवाई की बात को साइसे डबिंग फॉम में रखा जाता है।
इन सब योजनाओं में गरीबी और जाति का तड़का भी खूब लगाया जाता है। सच ये भी है कि चुनावी राजनीति में ये प्रैक्टिस बेहद प्रभावी हो चुकी है। इस पर वोट मिलता है। हालांकि फिर अगले तीन साल तक लोग पश्चाताप भी करते हैं।
दरअसल, इसे भारतीय चुनावी राजनीति की सचाई बना दिया गया है। इसके लिए सभी राजनीतिक दल बराबर के दोषी हैं। चुनावी सिस्टम के सिर्फ कुछ दिनों की आचार संहिता में ही प्रभावी रहने से इस पर प्रभावी अंकुश भी संभव नहीं है।
अधिकांश राजनीतिक दल और नेता वोट पाने के लिए इस प्रकार की प्रैक्टिस करते हैं। लोग चुनाव के बारे में ज्यादा कुछ न सोच सकें। अपने लिए बेहतर नेता चुनने को लेकर मनन न कर सकें इसके लिए ऐसा किया जाता है।
राजनीतिक दल और सरकारों से इत्तर वोट पाने के लिए अधिकांश प्रत्याशियों के स्तर से चुनावी दिनों में क्या-क्या किया जाना चर्चा में रहता है बताने की जरूरत नहीं है। लोभ/लालच के अलावा वोट पाने के लिए राजनीतिक दल अपने स्थापित विचारों के कोण को आगे-पीछे कर मुददों की शक्ल देकर अपने पक्ष में लोगों को करने का प्रयास करते हैं।
स्वस्थ लोकतंत्र और निष्पक्ष चुनाव के लिए जरूरी है कि इससे लोभ/लालच और इत्तर प्रैक्टिस को दूर रखा जाए। इसके लिए सिस्टम विकसित करने की जरूरत है। लोकतंत्र की शूचिता चुनावों के समय ही नहीं हर दिन दिखनी चाहिए। ये सिर्फ नेताओं, राजनीतिक दलों, सरकार पर ही नहीं आम जन पर भी लागू होनी चाहिए।