गुपचुप रैबारों से उकता गई है उत्तराखंड की जनता
ऋषिकेश। उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्रों की जनता को भरोसे का रैबार चाहिए। दिल्ली-देहरादून में उनकी भावनाओं की सौदेबाजी के रैबार सुनते-सुनते, देखते-देखते और महसूस करते-करते लोग उकता चुके हैं। अब हर रैबार वोट के लिए ही लगता है।
कुछ साल पूर्व प्रचंड बहुमत की सरकार के बैनर पर बंद कमरे में हुए रैबार कार्यक्रम का रैबार अभी तक जनता तक नहीं पहुंचा। उक्त कार्यक्रम में न्योते गए लोगों ने क्या रैबार दिया आज तक किसी को पता नहीं। अब चुनावी साल में फिर से रैबार देने का प्रयास हो रहा है।
इस बार रैबार का बैनर बदला हुआ है। हां, बैनर में सरकार भी दिख रही है। ये रैबार भी एक तरह से बंद कमरे जैसा ही है। यानि इसमें आम जनता के लिए क्या रैबार होगा तय नहीं है। जनता तक रैबार पहुंचेगा कैसे।
जनता चुनावी साल में ऐसे रैबार पर भरोसा करेगी। ये सबसे बड़ा सवाल है। दरअसल, उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्र की जनता का ऐसा रैबारों पर भरोसा नहीं रह गया है। जनता भरोसे का रैबार सुनना चाहती है। इसके लिए जनता ने खूब इंतजार किया। रैबार व्यापक हो इसलिए मजबूत सरकार भी बनाई थी। मगर, भरोसे के रैबार के बजाए जनता के हिस्से सिर्फ टप टप टपकारे ही आए।
दिल्ली-देहरादून में पर्वतीय समाज की भावनाओं की सौदेबाजी के रैबार सुनते-सुनते, देखते-देखते और महसूस करते-करते लोग उकता चुके हैं। हालात ये हो गए हैं कि ठगा-ठगी का माहौल बन गया है। अब हर रैबार यहां वोट के लिए ही होता है।