आयोग से चुना गया शिक्षक कहीं बनता है निदेशक और कहीं तरसता है प्रधानाध्यापक बनने को

ऋषिकेश। एक ही राज्य में एक ही आयोग द्वारा चुने गए शिक्षकों के सेवा में आने के बाद प्रमोशन को लेकर जमीन-आसमान का अंतर पैदा हो रहा है। आयोग से चुना गया एक शिक्षक निदेशक तक बनता है और एक हाई स्कूल का प्रधानाध्यापक बनने को तरस जाता है।
जी हां, उत्तराखंड राज्य में ऐसा ही है। राज्य का लोक सेवा आयोग उच्च शिक्षा के लिए शिक्षक (असिस्टेंट प्रोफेसर) को चुनता है। सेवा में आने के बाद असिस्टेंट प्रोफेसर, एसोसिएट प्रोफेसर, प्रोफेसर के रूप में प्रमोशन पाता है।
वरिष्ठता और श्रेष्ठता के आधार पर प्रिंसिपल बनता है। इन्हीं शिक्षकों में से एक उच्च शिक्षा का निदेशक भी बनता है। यानि उच्च शिक्षा विभाग में टॉप-टू-बॉटम शिक्षक ही शिक्षक होते हैं।
दूसरी ओर, इंटर कॉलेज के लिए भी लोक सेवा आयोग ही शिक्षक (प्रवक्ता) का चयन करता है। नियमतः इसका पहला प्रमोशन का पद हाई स्कूल का प्रधानाध्याप होता है और हद इंटर कॉलेज का प्रधानाचार्य। खास बात ये है कि जहां हायर एजुकेशन में शिक्षक निदेशक तक पहुंच रहा है वहीं स्कूली शिक्षा में प्रधानाध्यापक बनने को तरस रहे हैं।
उत्तराखंड राज्य में 2005 में इंटर कालेजों को आयोग से चुने हुए प्रवक्ता मिले। इनकी सेवाएं 15 साल से अधिक हो गई। मगर, अभी तक इनको एक भी प्रमोशन नहीं मिला। व्यवस्था ऐसी बन गई हैं कि जब तक इन्हें पहला प्रमोशन मिलेगा तब दूसरे प्रमोशन पर पहुंचने की इनकी आयु गच्चा देने लग जाएगी।
शिक्षकों के साथ हो रहे इस अन्याय पर सवाल करने पर सत्ताधीश नाराज होते हैं और विभाग के उच्च पदस्थ अधिकारी बात करने से परहेज करते हैं।
उच्च शिक्षा मे प्रशासनिक एवं शैक्षिक संवर्ग अलग अलग नही है जबकि माध्यमिक शिक्षा मे दो संवर्ग है इसलिए अंतर है!