उत्तराखंड की राजनीति में सेवानिवृत्त अधिकारियों को नहीं मिल रहा पसंद का ठौर
देहरादून। उत्तराखंड की राजनीति में विभिन्न सरकारी पदों से सेवानिवृत्त अधिकारियों को मनमाफिक ठौर नहीं मिल पा रहा है। ऐसे में उनकी राजनीतिक महत्वकांक्षा अब मुरझाने सी लगी है।
उत्तराखंड की राजनीति में लोग ने सेवानिवृत्त सेना के अधिकारी को सांसद, केंद्र में मंत्री और राज्य का मुख्यमंत्री बनते देखा। एक और सेना अधिकारी को विधायक, सांसद और राज्य में कैबिनेट मंत्री बनते देखा। ऐसा में विभिन्न पदों से सेवानिवृत्त अधिकारियों की राजनीतिक महत्वकांक्षा का जागृत होना स्वाभाविक है।
इसके लिए कुछ अधिकारियों ने सेवा में रहते ही राजनीतिक में बड़ी इंट्री के लिए हाथ-पांव मारने शुरू कर दिए थे। सेवा के समय नेताओं से संबंधों का भी भुनाने का प्रयास किया। मगर, सफल नहीं हो सकें। कुछ अधिकारियों ने सेवानिवृत्ति के बाद राजनीति में नई पारी की सोची। राजनीतिक दलों की सदस्यता भी ली। मगर, बात नहीं बनीं।
दरअसल, राजनीतिक दलों में मनमाफिक ठौर न मिलने से उक्त सेवानिवृत्त अधिकारियों ने स्वयं का उपेक्षित महसूस करना शुरू कर दिया। कुछ ने तो किनारा करना भी शुरू कर दिया। तो कुछ दिग्गज नेताओं के साथ सलाहकार और फाइलों को बांचने के काम में लग गए।
दरअसल, सेवा के दौरान उक्त अधिकारियों का राज्य के पक्ष में कोई ऐसा स्टैंड लोगों ने कभी नहीं देखा जो उन्हें परंपरागत बाबूगिरी से अलग दिखाता हो। किसी अधिकारी ने राज्य के बड़े मुददों पर मुंह भी नहीं खोला। राज्य के मूल निवासियों को स्थायी निवासी बना दिया गया। मगर, किसी ने मुंंह नहीं खोला।
यही नहीं सेवानिवृत्ति के बाद भी उक्त अधिकारी राज्य के मामले में मुखर नजर नहीं आए। यही वजह है कि कोई सेवानिवृत्त अधिकारी किसी भी स्तर पर जनता का ध्यान आकृष्ठ नहीं कर सकें। परिणाम राजनीति में मनमाफिक ठौर मिलना मुश्किल तो होगा ही।