विकास का रिकॉर्ड बना सकेंगे उत्तराखंड के मुख्यमंत्री धामी
सुदीप पंचभैया।
उत्तराखंड की नई सरकार के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी राज्य की राजनीति के रिकॉर्ड होल्डर हैं। 2021 में मुख्यमंत्री बनते ही उनके नाम रिकॉर्ड बनने शुरू हो गए थे। रिकॉर्ड बनने का क्रम अभी भी जारी है। ऐसे में कहा जा रहा है कि क्या धामी विकास का रिकार्ड भी बना सकेंगे।
पुष्कर सिंह धामी उत्तराखंड के पहले ऐसे मुख्यमंत्री हैं जो विधायकी का चुनाव हारने के बावजूद पार्टी के भरोसे के चलते इस पद आसीन हुए। वो राज्य के पहले मुख्यमंत्री हैं जो दो बार मुख्यमंत्री बनें हैं। दो बार मुख्यमंत्री की शपथ लेने वालों में जरूर जनरल भुवन चंद्र खंडूड़ी और हरीश रावत शामिल हैं।
ऐसा राज्य की तीसरी विधानसभा 2007-12 में हुआ था। हरीश रावत ने 2016 में एक राजनीतिक तोड़फोड़ के बाद दूसरी बार मुख्यमंत्री पद की शपथ ली थी। खंडूड़ी और रावत की दो-दो बार की शपथ एक ही सरकार में हुई है।
धामी राज्य की चौथी विधानसभा में भी मुख्यमंत्री रहे और पांचवीं विधानसभा में प्रचंड बहुमत की भाजपा सरकार के मुख्यमंत्री हैं। यानि चौथी विधानसभा और पांचवीं विधानसभा में सरकार के मुख्यमंत्री हैं। पुष्कर सिंह धामी कभी मंत्री नहीं रहे। वो सीधे मुख्यमंत्री बनें। इस तरह से कहा जा सकता है कि उत्तराखंड की राजनीति में पुष्कर सिंह धामी रिकॉर्ड होल्डर हैं। अब उनसे विकास का रिकॉर्ड बनाने की उम्मीद लगाई जा रही है। ऐसी उम्मीद राज्य की जनता लगा रही है।
विकास का रिकार्ड बनाने के लिए उन्हें राज्य के प्रथम निर्वाचित सरकार के मुख्यमंत्री रहे पं. एनडी तिवारी का रिकॉर्ड तोड़ना होगा। तिवाड़ी के कार्यकाल 2002-07 में राज्य के हर क्षेत्र में विकास हुआ। इस बात को कोई दलीय चश्मा पहनकर भी नहीं झुठला सकता।
अब देखने वाली बात होगी प्रचंड बहुमत की सरकार के मुखिया पुष्कर सिंह धामी विकास के पायदान पर राज्य को कहां ले जाते हैं। तहसीलों का शतक बना चुके राज्य में 21 सालों में एक नया जिला नहीं बना। अजीब बात ये है कि छोटे राज्यों के हिमायती नेता छोटे जिलों की एडवोकेसी से परहेज करते हैं।
2007-12 में भाजपा सरकार के मुख्यमंत्री डा. रमेश पोखरियाल निशंक ने चार नए जिलों की घोषणा की। मगर, उनके सीएम पद से हटते ही उन्हीं की पार्टी की सरकार ने सबसे पहले इसी फाइल को दबा दिया। 2017 में मिले प्रचंड बहुमत में भाजपा सरकार को इन जिलों की याद नहीं आई।
गैरसैंण को राजधानी बनाने का मामला भी है। पर्वतीय क्षेत्रों से राज्य गठन के बाद भी लगातार बढ़ रहा पलायन बड़ी चुनौती है। रिवर्स पलायन सिर्फ प्रचारित किया जा रहा है। धरातलीय स्थिति इससे जुदा है। इस पर गौर करने की जरूरत है। नए मुख्यमंत्री विकास से जुड़े इन मुददों को कैसे लेते है ये देखने वाली बात होगी।