दफ्तरों में बाबू बनने को उतावले हो रहे प्रोफेसर

देहरादून। राज्य के गवर्नमेंट डिग्री/पीजी कॉलेजों और विभिन्न विश्वविद्यालयों में तैनात दर्जन भर प्रोफेसर शिक्षा से संबंधित विभिन्न कार्यालयों मे अटैच होने को जोर लगा रहे हैं। अध्यापन के बेहद सम्मानित काम करने के बजाए दफ्तरों में बाबू बनने को बड़े मास्साबों में दिख रहा उत्साह सवाल पैदा कर रहा है।
जिन प्रोफेसरों को कॉलेज में पढ़ाने और शोध कार्य में लीन होना चाहिए था, वो विभिन्न दफ्तरों में ओंणी-कोणियों में बैठकर फाइलों पर चिड़िया बिठाने और कॉलेजों के प्रिंसिपलों को फोन मिलाने का काम कर रहे हैं। इससे कहीं न कहीं राज्य की उच्च शिक्षा प्रभावित हो रही है।
ये बात अलग है कि इस पर जिम्मेदार लोग कुछ बोलने को तैयार नहीं हैं। राज्य के शिक्षाविद तो अब अक्सर चुप ही रहते हैं। बहरहाल, विभिन्न विश्वविद्यालयों के सीनियर प्रोफेसर भी दफ्तरों में बाबू बनने को उतावले हो रहे हैंं।
इसके लिए वो पदनाम की गरिमा से लेकर पे-स्केल पर भी गौर करने को तैयार नहीं हैं। प्रोफेसर यूनिवर्सिटी में बड़े बाबू यानि कुलसचिव बनने को तैयार हैं। इसी प्रकार अन्य पदों पर भी एडजस्ट होने के लिए जुगाड़ लगाए जा रहे हैं।
ऋषिकेश में उतर चुके श्रीदेव सुमन उत्तराखंड विश्वविद्यालय को इसके लिए फरटाइल बनाया जा रहा है। चुनावी साल के आखिरी दिनों में करीब दो दर्जन फाइल मूव कर रही हैं। एक से अधिक खासों की फाइल के टकराने से बड़ा दरबार परेशान है। कोई समझने को तैयार नहीं।
हैरानगी की बात ये है कि चुनाव तक कोई इंतजार करने को तैयार नहीं है। हम लौट रहे की बात पर किसी को यकीन जो नहीं हो रहा है।