आध्यात्म, रोमांच, सामाजिक और भौगोलिक विशिष्टताओं को समेटे हर की दून ट्रैक

आध्यात्म, रोमांच, सामाजिक और भौगोलिक विशिष्टताओं को समेटे हर की दून ट्रैक
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यात्रा वृतांत

डा. मंजू भंडारी।

हर की दून ट्रैक के बारे जितना सुना और पढ़ा था उससे कही अधिक विविधताओं को समेटे है। ये आध्यात्म, रोमांच, सामाजिक और भौगोलिक विशिष्टताओं का क्षेत्र है। यहां वो सब कुछ है जो एक यायावर, एक समाजवेता, भूगोलवेता को बांधे रख सकता है।

मेरे साथियों ने मुझे हर की दून ट्रैक पर चलने का न्योता दिया। मैंने बहुत सोचा जाऊं ना जाऊं। पूरा एक दिन सोचने में लग गया। तमाम उधेडबुनों पर एक भूगोलवेता भारी पड़ा और मन बना ही लिया की इस बार हर की दून ट्रैक पर जरूर जाउंगी। तैयारियां शुरू की और आखिरकार तीन जून 2024 को वो घड़ी आ ही गई जब हम हर की दून ट्रैक पर हम निकल पडे।

देहरादून से निकलकर हम सात बजे यमुना पुल मसूरी बैंड (775 मी०ऊंचाई ) मार्ग विकास नगर बड़कोट 507 यमुना नदी पर बने स्थानीय नाम जमुना कॉटेज पर पहुंचे। यहां तक का सफर खासा रोमांचकारी और साथी विद्वानों के साथ क्षेत्र की सामाजिक और भौगोलिक स्थितियों पर चर्चा के साथ बीतां। जमुना कॉटेज पर गरम-गरम चाय का आनंद लिया और कुछ ही देर में निकल पड़े नैन गांव।

ये गांव टिहरी और उत्तरकाशी जिले की सीमा है। डामटा , नवगांव से होते हुए लाखामंडल पहुंचे, जहां दुर्याेधन ने साजिश करके पांडवों के लिए लाक्षागृह बनाया था। यहां से आगे बढ़ते हुए रास्ते में पुरोला (1600 मी ०)। एक खूबसूरत शहर हर की दून का प्रवेश द्वार के रूप में जाना जाता है। पूरा क्षेत्र हरे-भरे पहाड़ों और गोविंद वन्य जीव अभ्यारण से गिरा हुआ है। यहां के प्राकृतिक नजारे देखते ही बनते हैं। यहां से मोरी ब्लॉक होते हुए नेटवार से दो किलोमीटर दूरी गेचवाण गांव पहुंचे। तब तक शाम के पांच बज चुके थे।

गांव में चारों ओर सेब के बागान, सेब से लदे पेड़। हरे भरे पहाड़ मुझे बहुत ही उत्साहित कर रहे थे। ये नजारे किसी जन्नत से कम नहीं थे। यहीं से मुझे एहसास हुआ कि वास्तव में हर की दून ट्रैक जितना पढ़ा और सुना था उससे कहीं अच्छा है। रात्रि विश्राम गांव में होम स्टे में था। होम स्टे सभी सुविधाओं से संपन्न था। उत्तराखंड में होम स्टे योजना ग्रामीण क्षेत्रों में पर्यटन की संभावनाओं को पंख लगा रही है। बहरहाल, अगले दिन वाहन सांकरी ( 1940 मीटर) से होते हुए रास्ते में खूबसूरत लकड़ी और पत्थर की सामग्री से बने घरों के समूह तक पहंचें।

इन घरों की सामने मुकुट समान सुशोभित हिमालय और ऊंची ऊंची चोटियों बरबस अपनी ओर आकर्षित कर रही थी। यहां बह रही कई जलधाराएं मानों कोई दूध की धारा की मानिद लग रही थी। पहाड़ों के बीच बादलों की उमड़ घुमड़ कभी रोमांच तो कभी डर पैदा कर रही थी। ये दृश्य व्योमबाला का एहसास करा रहा था।

इसके साथ ही हम पहुंचे तालुका (2110 मीटर)। यहां पर वनस्पतियों और जीवों की विविधता के केंद्र में एक साथ पंक्तिबद्ध है गांव के किनारे सूपिन नदी का परिदृश्य पूरी तरह सुशोभित करता है। दो घंटा इंतजार करने के बाद हमें यहां की सड़कों का साथी पिकअप वाहन मिला। जो गंगाड जा रहा था। हम उसमें बैठ गए रास्ते में ऊंची ऊंची चोटियां और ओक,देवदार के पड़ो की प्राकृतिक सुंदरता मन को मोह रहे थे। प्रकृति के नयनाभिराम दृश्य बस के हिचकोलों पर भारी पड़ रहे थे।

वाहन की गति को ठहरा देने वाली स्थिति तक पहुंचा देने वाले गाढ़ गधेरे सफर को जोखिम से भर दे रहे थे। कई बार तो सांसे अटकने जैसी स्थिति पैदा हो रही थी। एक बार तो वाहन सड़क में फैले दलदल में धंस गया। बमुश्किल धक्के मारकर वाहन को को आगे बढ़ाया गया। बहरहाल, बस का सफर पूरा हम धारकोट (2530 मीटर पहुंचे। जहां से हमारी ट्रैकिंग शुरू हुई और पहुंचे गंगाड (2300 मीटर) सूपिन नदी के किनारे स्थित है । तेज बारिश शुरू हुई और हमने रुक कर वहां पर मैगी खाई, कुछ देर बाद हम स्थानीय लोगों के साथ टोंस वैली के पहले गांव ओसला की ओर चल दिए जो बहुत ही ऊबड़ खाबड़ रास्ता पतली पगडंडियों से होते हुए सूपिन नदी की किनारे किनारे लकड़ी का तंग अवस्था में बने पुल को पार करते हुये चले। नदी का उफान सातवें आसमान पर शोर करते-करते कानों को चीर कर आगे बढ़ रहा था, वहां से हमे खड़ी चढ़ाई चढ़ते चढ़ते पहुंच गए रात्रि विश्राम के लिये ओसला गांव।

यहां व्यवस्थागत बहुत सी असुविधाएं देखने को मिली। बारिश कीचड़ भरा रास्ता आगे बढ़ने में रूकावट पैदा कर रहा था। स्थानीय लोगों का कहना था चार दिन से लाइट नहीं है। पानी की आपूर्ति भी प्रभावित हुई है। गांव के सीधे सादे लोग व वहां के चारों ओर की प्राकृतिक नजारे मन को बहुत सुकून दे रही थे। अगले दिन मौसम बहुत खराब था परंतु हम बारिश में ही हर की दून ट्रैकिंग के लिए निकल पड़े जहां रास्ते में हमें बहुत सारे स्थानीय राहगीर मिले उनका कहना है कि वह अपने घोड़े, बकरियों, जानवरों को लून (नमक)देने जा रहे हैं और यह उनकी रोज की दिनचर्या है। उनका कहना है वह आधे दिन में वहां पहुंचते हैं और शाम को वापसी अपने घर पहुंच जाते हैं।

इस यात्रा में प्रोफेसर विशंभर प्रसाद सती भूगोल विभाग मिजोरम विश्वविद्यालय जिनके सहारे हम हर की दून ट्रैकिंग पर गए थे वह अपने विश्व भर में किए गए यात्राओं के अनुभवों को हमसे साझा कर रहे थे और हमें आगे बढ़ने के लिए प्रोत्साहित कर रहे थे। डॉ. किरण त्रिपाठी सभी को हिम्मत दे रही थी और डॉ. राजेश भट्ट अपनी वास्तविक कहानी सुना कर हंसी से गुदगुदा रहे थे।

Tirth Chetna

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