महंगाई और बेरोजगारी के मुददों को दबाने के हो रहे प्रयास

देहरादून। महंगाई और बेरोजगारी राज्य विधानसभा चुनाव के बड़े मुददे बन गए हैं। इन मुददों के सामने विकास के तमाम दावे कहीं नहीं टिक पा रहे हैं। इन मुददों को दबाने के बड़े स्तर से प्रयास होने लगे हैं।
राजनीतिक दल कुछ भी दावे कर लें। कुछ भी नारे गढ़ लें या गीत-संगीत की स्वर लहरियां प्रस्तुत कर लें। धरातलीय हकीकत ये है कि उत्तराखंड राज्य का विधानसभा चुनाव महंगाई और बेरोजगारी के इर्द-गिर्द सेट हो चुका है। लोग इस पर रिएक्ट करने लगे हैं। वोट मांगने जा रहे राजनीतिक दल के कार्यकर्ताओं से सवाल होने लगे हैं।
सवालों को अक्सर नारों और बेहद स्थानीय बातों से निष्प्रभावी करने वाली राजनीतिक दलों के टेक्टिस इस बार शायद ही काम आए। लोग इस नेताओं के व्यक्तित्व पर भी गौर करने को तैयार नहीं दिख रहे। दरअसल, महंगाई से त्रस्त आम आदमी और घरों में बढ़ रहे बेरोजगार युवाओं की संख्या ने लोगों को सोचने को मजबूर कर दिया है।
कांग्रेस शासन में 400 में मिलने वाला रसोई गैस सिलेंडर 1000 तक पहुंच गया। पेट्रोल-डीजल से पसरी महंगाई किसी से छिपी नहीं है। कहा जा सकता है कि बाजार की महंगाई लोगों को डरा रही है। मारे महंगाई के लोग परेशान हैं। कोरोना से प्रभावित हुआ रोजगार अभी रेस्टोर नहीं हो सका है। नुकसान की क्षतिपूर्ति सरकार के स्तर से कैसे हुई है ये किसी से छिपा नहीं है।
निम्नमध्यम वर्ग तो एक तरह से कराह रहा है। उस पर सरकार ने कभी गौर भी नहीं किया। रोजगार न होने से महंगाई वास्तव में डायन सरीखी लग रही है। महंगाई पर नेताओं के तर्क एक तरह से लोगों के धैर्य की परीक्षा ले रहे हैं। सरकारी कर्मचारियों की नाराजगी किसी से छिपी नहीं है। पुरानी पेंशन बहाली की मांग चुनाव में बड़ा असर दिखाने वाली है।