अपना वोट डाला नहीं और जीत-हार का समझा रहे गणित

ऋषिकेश। कई कथित जागरूक लोगों ने अपना वोट डाला नहीं और अब जीत-हार का न केवल गणित समझा रहे हैं। बल्कि उलझे हुए समीकरणों को दूध में शक्कर के घुलने जैसे आसान तरीके से बता रहे हैं।
चुनाव आयोग के लाख प्रयासों के बावजूद देश में मतदान प्रतिशत में खास सुधार नहीं हो रहा है। इसमें खास लोग बड़ी वजह बन रहे हैं। इसके अलावा और भी कई कारण हैं। 14 फरवरी को उत्तराखंड की पांचवीं विधानसभा के लिए हुए मतदान के बाद राजनीतिक दलों और नेता सकपकाए हुए हैं। परिणाम से पहले भितरघात की आरोप-प्रत्यारोप शुरू हो गए हैं। जितने मुंह उतनी बातें हो रही हैं।
सच ये है कि राजनीतिक दल और नेताओं की परेशानी जनता की चुप्पी बढ़ा रही है। नारों, भाषणों और खास चेहरे भी इस बार जनता की चुप्पी नहीं तोड़ सकें। इस चुप्पी का राजनीतिक दल अपने हिसाब से मतलब निकाल रहे हैं। इन मतलबों का हवा दे रहे हैं कथित जागरूक लोग। अब ये बात भी सामने आ रही है कि जिन कथित जागरूक लोगों ने स्वयं का वोट तक नहीं डाला वो जीत-हार का गणित समझा रहे हैं।
नेता और राजनीतिक दलों के पक्ष में उक्त कथित जागरूक लोगों द्वारा दिए जा रहे तर्क अब कार्यकर्ताओं के मुंह तक पहुंच गए हैं। राजनीतिक दलों के कार्यकर्ता इन तर्कों को मजबूती के साथ रख रहे हैं। अब तर्क गढ़ने वालों के बारे में पता चल रहा है कि उन्होंने खुद वोट नहीं दिया।
13 के रविवार और 14 के मतदान की छुट्टी का उक्त जागरूक लोगों ने अपने निजी हित में उपयोग किया। ऐसे लोगों की बड़ी संख्या है। स्वयं मतदान न कर मतदान के बाद हार-जीत का गणित समझाने वालों ने एक तरह से उस राजनीतिक दल के साथ भितरघात किया जिसके पक्ष में वो अब तर्क प्रस्तुत कर रहे हैं।
ये बात अब राजनीतिक दल और उनके समर्थकों की समझ में भी आने लगी है। परिणाम नए सिरे से वोट का गणित समझने के प्रयास हो रहे हैं।